कॉरपोरेटी हिंदुत्व के फासीवादी फंदे से देश को निकालना ही नये साल का असली संकल्प

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2021 के अंतिम तिमाही में कालिनेम, शिखंडी, खड्गसिंह और गोडसे का जिंदा होना क्या महज संयोग है कि सोचा समझा प्रयोग। 2021 की शुरुआत महामारी की क्रूर छाया और लोकतंत्र पर फासीवाद के मरणांतक हमले के साथ हुई थी।वहीं इसका समापन भारत के किसानों की अपराजेय ताकत के दम पर विजय के साथ हुआ। एक वर्ष से ज्यादा समय तक दिल्ली को घेरे हुए लाखों किसानों ने संघर्ष के लिए गांधी के रास्ते को चुना। जिससे आधुनिक विश्व के लोकतंत्र विरोधी सरकारों में से एक सबसे क्रूर कारपोरेट परस्त हिंदुत्व की सरकार को एक बार फिर गांधी के सामने पराजित होना पड़ा। उसी तरह से जैसे इनके मालिकों को 1947 में होना पड़ा था। इसलिए नवंबर बीतते ही 2021 के आखिरी महीने में कालिनेम, खड़क सिंह और गोडसे फिर अपने पाखंड, धूर्तता, कायरता और अस्त्र-शस्त्र  के साथ अवतरित हो गए। 30 जनवरी 1948 को शस्त्र के द्वारा गांधी की कृषकाय काया को समाप्त कर देने के बाद नागपुरी चिंतकों ने समझ लिया था कि अब गांधी अप्रासंगिक हो गए हैं। हमने उन्हें इतिहास के पन्नों में कैद कर दिया है।

लेकिन उनकी इच्छा के विरुद्ध  गांधी बार-बार जी उठते हैं। किसान आंदोलन की गांधीवादी प्रतिज्ञा ने असत्य पर सत्य, हिंसा और षड्यंत्र पर अहिंसा प्रेम और न्याय , पाखंड और धूर्तता पर ईमानदारी और सद् चरित्र की विजय को सुनिश्चित कर दिया। राजशाही सड़ांध के बीच पलते और तोहफा बांटते हुए लोकतांत्रिक तरीके से चुना हुआ शासक आत्म उत्पीड़न और कष्ट सहने की गांधीवादी दिशा के सामने दुनिया के सबसे बड़े अय्याश फकीर को पीछे हटना पड़ा। तन पर एक कपड़ा लपेटे गांधी के सामने रोज कई-कई बार वस्त्र बदलने वाला लखटकिया वस्त्र धारी और लाक्षागृह में बंद शासक को अंततोगत्वा पीछे हटना पड़ा। इसलिए भारतीय जनता को ठगने के लिए कालिनेम को फिर वापस आना पड़ा। सत्य और सेवा के समक्ष खड़क सिंह फिर एक बार लज्जित हुआ और मूर्ख कायरों की फौज गांधी के खिलाफ उतार दी गई। पवित्र तीर्थ स्थल हरिद्वार में गंगा के निर्मल जल के बगल में ये सभी बौने कलुषित हिंसक जीव कर्कश स्वर में आर्तनाद करने लगे।

लेकिन गांधी तो पुनः षड्यंत्रकारियों, दंगाइयों, पाखंडी और धूर्तों-हत्यारों के लिए एक चुनौती बन चुके थे। इसलिए वह गांधी पर टूट पड़े। उन्हें लगा था कि हमने तो गांधी को स्वच्छता के अपने पाखंडी परियोजना में फंसा दिया है। लेकिन गांधी भारत की निर्मल आत्मा हैं। बुद्ध और महावीर के वारिस हैं। ज्ञान और अन्वेषण के वैदिक उपनिषद कालीन चिंतन के चरमोत्कर्ष थे। इसलिए मुसोलिनी और हिटलर की संतानों को गांधी से हारना पड़ा। आज गांधी के खिलाफ चल रहा अभियान इसी पराजय की खीझ है, हार की तिलमिलाई कायर घिघियाहट है। सत्ता के सर्वोच्च शिखर की एक सोची-समझी परियोजना है। इसलिए हमें इस डिजाइन को समझना है ।अचानक गांधी क्यों निशाने पर आ गए। नेहरू से लड़ते-लड़ते ये अपना नाक, मुंह और चेहरा लहूलुहान कर चुके हैं ।सुभाष चंद्र बोस, डॉ. अंबेडकर, पटेल  महामानव टैगोर को विकृत करते-करते स्वयं विदूषक लगने लगे हैं। इसलिए आज की परिस्थिति की नजाकत को समझते हुए भगत सिंह के वारिस अंबेडकर के अनुयायियों के साथ मिलकर गांधी के बगल में खड़े हो गए हैं। 

कारपोरेट पूंजी के टुकड़े पर पलने वाले नकली देशभक्त पराजय की घड़ी को करीब आते देख बौखलाहट में हैं। 1948 की जनवरी का भयानक मंजर फिर दिखाई देने लगा है। 

गांधी-अंबेडकर-भगत सिंह के साथ ही हजारों आजादी के बलिदानियों के संघर्ष की सर्वोच्च रचना संविधान थी। स्वतंत्रता आंदोलन की  जिजीविषा से धर्मनिरपेक्ष समाजवादी संघात्मक भारत की अवधारणा के  साथ भारत के निर्माण की पूरी स्क्रिप्ट संविधान द्वारा लिख दी गई है। इसलिए वह संविधान पर भी टूट पड़े हैं।

ये मुफ्त खोर भारत की जनता की धार्मिक आस्थाओं के दोहन की कमाई पर अय्याशी का महल खड़ा किए हुए चारों तरफ धर्म और राष्ट्र के नाम पर आतंक और नफरत फैलाते घूम रहे हैं। वे एक बार फिर आजाद भारत से लड़ने के लिए आमादा हैं। उस हिंदुस्तान से लड़ने के लिए आमादा है जो स्वतंत्रता, भाईचारा, बराबरी की परियोजना का प्रतीक है। जो समन्वय सहयोग से निर्मित प्रेम दया करुणा की भक्ति कालीन संतों की साधना से जीवन अमृत ग्रहण करता है। और बुरे वक्त में भी प्रेम की रागिनियों को छेड़कर नये जागरण का उद्घोष करता है। इसका मंत्र गान है वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर,,,,,,। ढाई आखर प्रेम का पढ़ै हो।

   इसलिए जब 2021 के आखिरी दिन से हम गुजर रहे हैं और 2022 की सुबह के सूरज की नई किरण के साथ नए भारत के रास्ते पर आगे बढ़ रहे होंगे तो हमारे सामने संकल्प होगा कि फासिस्ट कारपोरेट हिंदुत्व‌ गठजोड़ को फिर एक बार शिकस्त देने के लिए कमर कस कर खड़े हों।उसके द्वारा रचे जा रहे षड्यंत्र और धार्मिक पाखंड से  गांधी की अहिंसा, अंबेडकर के लोकतांत्रिक मूल्यों की दृढ़ता और भगत सिंह की आधुनिक प्रगतिशील दृष्टि वाली जिजीविषा और कुर्बानी की प्रेरणा के साथ लड़ेंगे।  2022 में फासिस्ट कॉरपोरेट डिजाइन के खिलाफ नए संकल्प के साथ नई विजय हासिल करेंगे। इन काली ताकतों द्वारा बौखलाहट में किए जा रहे शोर को नाकाम करते हुए आधुनिक लोकतांत्रिक भारत को शक्तिशाली बनाने के संघर्ष को आगे बढ़ायेंगे। 

   2022 में हमारे सामने चुनौती होगी असत्य की जगह सत्य, हिंसा के मुकाबले अहिंसा, घृणा के मुकाबले प्रेम, वर्ण व्यवस्था की बजबजाती जीवन प्रणाली के मुकाबले बराबरी बंधुत्व और आजादी के जीवन प्रणाली के परचम को कैसे आगे बढ़ाएं। हम संगठित हों, कमजोर और उत्पीड़ित समूहों को संगठित करें, दलितों अल्पसंख्यकों महिलाओं के अधिकारों को बुलंद करें। देश की संपदा और संस्थानों को बचाने की लड़ाई को आगे बढ़ाएं। नौजवानों छात्रों के भविष्य के सामने जो अंधकार की दीवार खड़ी है उसे तोड़े दें। भारत की राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रूर और हिंसक धर्म आधारित राष्ट्र बनाने की छवि जो रची जा रही है उसे ध्वस्त करें।  वैश्विक बिरादरी के साथ शांति अमन के साझा रिश्तों की डोर को सुदृढ़ करें।

हम किसान आंदोलन के लंबित सवालों के संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए लोकतांत्रिक मूल्यों की शपथ को दोहराएं व आजादी के मूल्यों का प्रचार प्रसार करें। हमारे लिए गांधी, अंबेडकर, पेरियार,भगत सिंह,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, टैगोर, प्रेमचंद, राहुल, नजरुल इस्लाम सभी एक लैम्प पोस्ट हैं। इनके द्वारा ज्ञान की जलाई गई रोशनी के आलोक में 2022 का सफर शुरू करें। 2022 के पहले तिमाही में भारत के लोकतांत्रिक जन गण फासीवाद के पराजय की नई स्क्रिप्ट लिखें। इस आशा और उम्मीद के साथ कि हमारी प्रिय मातृभूमि में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की लड़ाई 2022 में और आगे बढ़ेगी।यही आज हमारा लक्ष्य और हमारे लिए 2022 का  कार्यभार है। गणतांत्रिक भारत अमर रहे।

     नए वर्ष का गर्मजोशी भरा स्वागत और शुभकामनाओं के साथ।

   जयप्रकाश नारायण।

   अध्यक्ष, 

   अखिल भारतीय किसान महासभा, उत्तर प्रदेश।

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