Thursday, April 25, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: ‘सरकारी हिंसा’ की चपेट में त्रिपुरा, बीजेपी को वोट नहीं दिया तो घरों में लगाई आग

अगरतला। फरवरी की कड़कड़ाती ठंड में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों- त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में चुनावी पारा गर्मी का अहसास करा रहा था। केंद्र में सत्तारूढ़ संघ-भाजपा के मंत्रियों ने पूर्वोत्तर में डेरा डाल दिया था। उनके सियासी बयानों ने पूर्वोत्तर के अपेक्षाकृत ठंड माहौल में गर्मी ला दी थी। चुनाव के बाद तीनों राज्यों में बीजेपी गठबंधन की सरकार बन गई। सरकार बनते ही त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ता पुलिस-प्रशासन की शह पर विपक्षियों के घरों को आग के हवाले कर दिया। सत्तापक्ष दूसरे दलों को वोट देने वालों को प्रताड़ित कर रहा है। अगरतला के कई गांवों में लोगों के घरों पर हमला किया गया।

दो मार्च को चुनाव नतीजे आने के साथ ही त्रिपुरा में हिंसा का तांडव शुरू हो गया और देखते ही देखते यह अपना विकराल रूप ले लिया। लोगों के घरों को जलाने से लेकर रबर के बागों को पूरी तरह से नष्ट करने का सिलसिला शुरू हो गया। जिसको लेकर लोगों के बीच अभी भी भय पसरा है। क्योंकि पुलिस-प्रशासन औऱ सरकार में कहीं उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। घरों के आग में राख होने के बाद कई परिवार जंगलों में खुले आसमान में रहने को विवश हैं।

राजधानी अगरतला में भाजपा की जीत के बाद पूरा शहर भाजपा के झंडों से पट गया है। हर गली और चौक-चौराहों से लेकर लोगों के घरों और दुकानों में सिर्फ कमल का फूल दिखाई दे रहा है। लेकिन इन कमल के फूलों के बीच कुछ मुरझाए चेहरे हैं, जिनकी जुबान से आवाज नहीं निकल रही है, क्योंकि उनका सबकुछ हिंसा और आग की भेंट चढ़ चुका है।

जले घर के पड़े आलू

पूरा घर जलकर राख

ऐसी ही एक पीड़ित से जनचौक संवाददाता ने अगरतला में बात की। यह शख्स राजधानी अगरतला के पास दुर्गाबाड़ी के जतीन डोरा हैं, जिनका पूरा घर जला दिया गया है। स्थिति यह है कि उनके घर में एक सामान नहीं बचा है। घर के चारों ओर एक जली काली चादर सी बिछी है। जलने की महक से पूरा वातावरण भरा हुआ है। जगह-जगह जले हुए सामानों के कुछ टुकड़े पड़े हुए हैं। हम सबसे पहले जतीन डोरा के घर पहुंचे।

जतीन के घर के आसपास के दूसरे घर एकदम ठीक हैं। गली के बीच में जमीन के बड़े हिस्से में बना जतीन डोरा का घर जलकर पूरी तरह से राख हो गया है। घर में पड़ी साइकिल पूरी तरह से जल चुकी है। एक कोने में आलू-टमाटर गिरे पड़े हैं। घर में पड़ा बेड पूरी तरह से जल चुका है। लकड़ी के दरवाजे भी जले हुए हैं। घर के नाम पर अब बस मलवा ही पड़ा है।

रात 12.30 बजे लगाई आग

इस पूरी घटना पर जतीन डोरा का कहना है कि 2 मार्च को रिजल्ट आने के बाद शाम से ही धीरे-धीरे माहौल खराब होने लगा। वह बताते हैं कि दो मार्च की शाम से ही लोगों के बीच में डर का माहौल था। इसी डर के बीच रात 12.30 बजे मेरे घर को जला दिया गया।

जतीन उस दिन को याद करते हुए बताते हैं कि मंगलवार का दिन था, मैं और मेरा बेटा घर में सोए हुए थे। अचानक पेट्रोल की गंध आने लगी। इस गंध के आने के साथ ही मैं और मेरा बेटा घर से बाहर निकले। लेकिन इतनी ही देर में भाजपा के लोगों ने हमें आग में झोंक दिया। बड़ी मुश्किल से हम लोग घर से बाहर निकल पाए।

जतीन डोरा

हम सिर्फ गायों को ही बचा पाए, एक गाय जल गई

मेरे बेटे ने बाहर निकलते हुए जल्दी-जल्दी तीन गायों को खोला। इतनी जल्दी करने के बाद भी गाय जल गईं। एक गाय की तो आंख के पास का हिस्सा भी जल गया है। अब संपत्ति के नाम पर मेरे पास सिर्फ तीन गाय बची हैं। बाकी सबकुछ जल कर राख हो गया है।

वह बताते हैं कि पूरी जिदंगी की जमा-पूंजी मेरी आंखों के सामने जलकर राख हो गई। जब तक आसपास के लोग बचाने के लिए आए तब तक 10 से 12 लाख का नुकसान हो गया।

उस दिन की घटना को याद करते हुए वह कहते हैं कि जिस दिन चुनाव के नतीजे आए हमारे पास में एक शख्स की मौत हुई थी। उनके यहां रामायण हो रहा था। आस-पास के सभी लोग वहीं गए हुए थे। जब आधी रात हो गई तो भाजपा के लोगों ने मौका पाकर घर को जला दिया।

हमने उनसे पूछा कि क्या आपका घर वोट देने के कारण जला दिया गया है? जतीन ने हमें बताया कि हां मैं सीपीएम का समर्थक हूं और वह भाजपा के लोग थे। क्या आपने किसी को देखा? हां इनमें से दो लोग तो हमारे ही गांव के थे। डर लगाता है कहीं किसी को खो न दें।

इस घटना के बाद जतीन डोरा की बेटी भी घर आई है। हमने उनसे बात की, वह कहती हैं कि घर तो पूरा जल गया है। अब तो हमलोग आर्थिक और शारीरिक दोनों तरीके से कमजोर हो गए हैं। इस घटना को सुनने के बाद मैं सुसराल से यहां आकर रह रही हूं। डर लगता है, घर जल गया है, कहीं घर के किसी सदस्य को न खो दें।

वह बड़े दुखी मन से कहती हैं- कोई किसी का क्या इस तरह से नुकसान करता है कि उसका पूरी तरह से सर्वनाश ही कर दे। हमारे साथ तो यही हुआ है। मेरे पिता पानी सप्लाई का काम करते हैं। भाई की एक छोटी दुकान है।

लोग इतने हैवान थे कि उन्होंने गाय पर भी तरस नहीं खायी। हमारी तीन गायों को नुकसान पहुंचा है। पैर जल गए हैं। हमने समय रहते उन्हें बचा लिया। अभी इलाज कराने के बाद वह थोड़ा ठीक हैं। खेतों में चर रही हैं।

जतीन के घर को जलाए जाने को लेकर आसपास के लोग भी दबी जुबान से बात कर रहे हैं। लेकिन कोई भी खुलकर इस पर बात करने को तैयार नहीं है।

चूल्हा

प्रतिनिधिमंडल ने पीड़ितों से मुलाकात की

घटना के एक सप्ताह बाद कांग्रेस और लेफ्ट के एक प्रतिनिधिमंडल ने जतीन डोरा से मुलाकात की। उनकी हर संभव मदद करने का आश्वसन देते हुए कहा कि उन्हें डरने की जरूरत नहीं है। पार्टी उनके साथ खड़ी है।

त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने जतीन डोरा से मुलाकात करने के साथ-साथ आसपास के लोगों को हौसला देते हुए कहा कि वह इन सारे मुद्दों को संसद में उठाएंगे ताकि देश के बाकी हिस्सों में भी लोगों को यहां की स्थिति के बारे में पता चल सके।

त्रिपुरा में चुनाव के बाद हुई हिंसा के बारे हमने बीजेपी के मंत्री टीटू राय से पूछा तो उन्होंने पहले पार्टी का गुणगान करते हुए कहा कि यहां बहुत ज्यादा घटनाएं नहीं हुई हैं। बाकी जो हुई हैं वह सभी प्रयोजित हैं। पुलिस के सामने ही लोगों पर हो रहे हमले पर उनका कहना था कि यह सब लेफ्ट और कांग्रेस करवा रही है।

सरकार द्वारा पीड़ित लोगों को मुआवजा की बात करने पर वह कहते हैं कि फिलहाल हमारी सरकार बनी है। इससे पहले आचार संहिता लागू थी। अब सरकार बनी है। आगे का काम अभी सरकार देखेगी।

जतीन डोरा के पड़ोसी

दो हजार लोगों को हुआ नुकसान

चुनाव के बाद हुई हिंसा के बारे में सीपीआई (एम) के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी का कहना है कि भाजपा का राज आते ही राज्य में हिंसा फैल गई है। जिसमें लगभग दो हजार लोगों को नुकसान हुआ है। लोग घरों को छोड़कर जंगलों में रहने को मजबूर हैं और भाजपा कह रही है कि सिर्फ कुछ घटनाएं हुई हैं।

वह कहते हैं कि आज भी लोगों के बीच डर का माहौल है। लोग पार्टी ऑफिस में रहने को मजबूर हैं। घर जाने पर उन्हें जान का खतरा लग रहा है।

हमने इस हिंसा को लेकर स्थानीय पत्रकारों से बातचीत करने की कोशिश की। पत्रकारों ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि चुनाव के पहले यहां लेफ्ट, भाजपा और टिपरा मोथा के बीच लड़ाई थी। जैसे ही चुनाव के नतीजे आए जिस पार्टी ने जीत हासिल की वह हारी हुई पार्टी के समर्थकों पर भारी पड़ने लगी। इनमें से कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने आपसी रंजिश का बदला लेने के लिए राजनीति का सहारा लिया।

हिंसा के बारे में हमने अगरतला के एसपी से बात करने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।

(जनचौक संवाददाता पूनम मसीह की रिपोर्ट)

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मनोज़ 'निडर'
मनोज़ 'निडर'
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1 year ago

युवा पत्रकार पूनम मसीह की रिपोर्ट ने गुजरात दंगों की याद ताजा कर दी। विरोधियों पर टूट कर मानवता को शर्मसार करती राजनीति।

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