2023 में भारत के 6,500 अमीर छोड़ सकते हैं देश

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जी हां, हेनले प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट 2023 की रिपोर्ट से इस चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा होता है कि भारत से इस वर्ष 6,500 अति-धनाढ्य लोग अपने और अपने परिवार के भविष्य की बेहतरी के लिए देश छोड़ सकते हैं। तकनीकी भाषा में ऐसे बेहद धनवान व्यक्तियों को एचएनडब्ल्यूआई (हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल) की आर्थिक श्रेणी में वर्गीकृत किया जाता है। इनके पास निवेश के लिए कम से कम 10 लाख डॉलर (8.2 करोड़ रुपये) या इससे अधिक रकम का होना आवश्यक है। इस 8.2 करोड़ रुपये में संपत्ति, नकदी एवं प्रतिभूतियां शामिल हैं।

इस प्रकार देखें तो 2023 में चीन के बाद एचएनडब्ल्यूआई व्यक्तियों के शुद्ध नुकसान के मामले में भारत का प्रदर्शन सबसे बदतरीन रहने वाला है। पिछले एक दशक से देखने में आ रहा है कि विभिन्न विकासशील देशों के अमीर एक-एक कर पश्चिमी देशों की ओर पलायन कर रहे हैं। लेकिन इसका स्याह पक्ष यह है कि दूसरे देशों की नागरिकता ग्रहण करने के साथ वे अपने साथ करोड़ों-करोड़ रुपये की संपत्ति भी साथ ले जा रहे हैं, जो उन देशों को गरीब ही नहीं बना रही है, बल्कि इससे रोजगार, उद्योग भी प्रभावित हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ पहले से दौलतमंद देशों के लिए निवेश एवं नए रोजगार के नए-नए अवसर प्रदान करने में ये अमीरजादे मदद पहुंचा रहे हैं।

इस रिपोर्ट के डेटा प्रदान करने वाले संगठन न्यू वर्ल्ड वेल्थ के प्रमुख शोधार्थी, एंड्रयू एमोईल के अनुसार, 2023 में जिन देशों को इन धनाढ्य लोगों ने अपना पसंदीदा गन्तव्य बना रखा है, उसके शीर्ष में ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर, संयुक्त राज्य अमेरिका सहित स्विट्ज़रलैंड जैसे देश शामिल हैं। वहीं दूसरी तरफ जिन देशों से सबसे बड़ी संख्या में पूंजी एवं धनाढ्य लोगों का पलायन हो रहा है, उसमें चीन, भारत, ब्रिटेन, रूस और ब्राजील चोटी पर हैं।

2022 के अंत तक भारत विश्व के उन चोटी के दस देशों में से एक था, जिनके यहां सबसे अधिक संख्या में करोड़पति थे। भारत में एचएनडब्ल्यूआई (8.2 करोड़ रुपये) की संख्या 3,44,600 थी। 100 मिलियन डॉलर (800 करोड़ रुपये) की हैसियत वाले अमीरों की संख्या 1,078 थी। जबकि 1 अरब डॉलर या 8,200 करोड़ रुपये या उससे अधिक संपत्ति के मालिकों की संख्या 123 पहुंच चुकी थी। ये अमीरजादे क्रमशः अमेरिका, जापान, चीन, जर्मनी, ब्रिटेन, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ़्रांस और भारत में सबसे अधिक संख्या में पाए जाते हैं। भारत इस सूची में दसवें स्थान पर काबिज है।

देश छोड़कर पलायन करने वाले ये अमीर कौन होते हैं?

हेनले एंड पार्टनर्स के सीईओ, ज्युरेग स्टीफन का इस बारे में कहना है, “धनाढ्य परिवार बेहद गतिशील होते हैं। उनकी देश-दुनिया में आवाजाही इतनी अधिक बनी रहती है कि उन्हें अपने देश की आर्थिक स्थिति एवं भविष्य के संकेत के बारे में पहले से ही अनिष्ट के संकेत मिलने लगते हैं। जिस प्रकार से कोयला खदान में पाई जाने वाली सर्वविदित कनारी चिड़िया, आने वाले खतरे के बारे में चौकन्ना करती रहती है, उसी प्रकार से ऐसे लोग भी अपनी धन-दौलत के लिए किसी भी संभावित खतरे को पहले ही सूंघ लेते हैं। इसके साथ ही उनके पास वे संसाधन भी मौजूद रहते हैं जिनकी मदद से वे अपनी विरासत को बचाए रखने में सक्षम होते हैं।”

इन अमीरों की सबसे पहली प्राथमिकता क्या होती है?

स्टीफन के अनुसार, “अपनी बसाहट के लिए इन बेहद धनाढ्य लोगों के लिए पहली प्राथमिकता में राजनीतिक स्थिरता, कम टैक्स एवं वैयक्तिक स्वतंत्रता हमेशा एक बड़ा कारक होती है। हालांकि बदली हुई परिस्थितियों में अब इनकी प्राथमिकताओं में बदलाव भी देखने को मिला है। इनके लिए अब अपने बच्चों का भविष्य, उनकी जिंदगी की गुणवत्ता और कैसी विरासत वे उनके लिए छोड़कर जा रहे हैं, जैसे अमूर्त लेकिन अहम पहलू शामिल हो चुके हैं।”

गौरतलब है कि 2010 से पहले तक भारत में ब्रेन-ड्रेन की चर्चा आम थी। सवाल उठाये जाते थे कि भारत में सरकार के द्वारा प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं के लिए बेहतरीन इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट एवं मेडिकल साइंस के संस्थान खोले गये हैं। किंतु अधिकांश आईआईटी छात्र पढ़ाई पूरी करने के बाद बेहतर कमाई के अवसर की तलाश में अमेरिका सहित पश्चिमी दुनिया की तरक्की में अपना योगदान देते हैं, और भारत की गढ़ी कमाई बर्बाद हो जाती है।

लेकिन अब तो ब्रेन-ड्रेन के साथ-साथ वेल्थ-ड्रेन की परिघटना भी अपने शबाब पर है। इसके लिए देश के भीतर स्थिर राजनीतिक वातावरण, क्रोनी-कैपिटल के स्थान पर सबके लिए समान अवसर और स्वस्थ्य प्रतिद्वंदिता, प्रेस-मीडिया की स्वतंत्रता, ईडी-सीबीआई राज से मुक्ति सहित सबसे महत्वपूर्ण सभी धर्मों, जातियों, राष्ट्रीयताओं एवं व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का होना मायने रखता है।

ऐसे में 80% गरीबों के लिए तो अमीर देशों के दरवाजे बंद हैं, लेकिन जिनके पास धन-दौलत और बुद्धि भी है, उनका वहां बाहें खोले स्वागत क्यों न हो। आखिर बिना मेहनत के ही यदि पूंजी और निवेशक घर बैठे मिल रहे हों, तो कौन देश होगा जो घर आती लक्ष्मी के लिए अपने कपाट बंद करेगा? इस बारे में सोचने की बारी इन अमीरजादों की नहीं, बल्कि भारत के नीति-नियंताओं की है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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