वैसे तो मीडिया और आम जनमत के आकर्षण का केंद्र महाराष्ट्र का चुनाव बना हुआ है, लेकिन झारखंड का चुनाव भी बेहद महत्वपूर्ण है। भाजपा इसे जीतकर दिखाना चाहेगी कि लोकसभा चुनाव के धक्के के बाद हरियाणा से उसने जो जीत का सिलसिला शुरू किया है, वह आगे बढ़ रहा है।
वहीं कांग्रेस JMM के साथ मिलकर उस सिलसिले पर विराम लगाना चाहेगी। हेमंत सोरेन अगर सत्ता में वापसी करते हैं तो वह एक इतिहास बनाएंगे क्योंकि इसके पहले किसी सरकार की वहां पुनर्वापसी नहीं हुई है। वे तमाम विपरीत परिस्थितियों से घिरे हुए हैं।
उनके कई खास सहयोगी और आदिवासी नेता उन्हें छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री, कोल्हान के टाइगर कहे जाने वाले चंपई सोरेन और उनकी भाभी सीता सोरेन भी हैं। यहां तक कि उनके प्रस्तावक मंडल मुर्मू ने भी भाजपा ज्वॉइन कर लिया है।
कांग्रेस के सामने भी बड़ी चुनौती है। वह 2019 में 16 सीटें जीती थी, यह देखने की बात होगी कि वह अपने पुराने प्रदर्शन को दोहरा पाती है या नहीं। दरअसल, दोनों गठबंधनों का अपना-अपना ठोस वोट बैंक है। उसमें थोड़ी सी शिफ्टिंग से पूरा संतुलन बदल सकता है।
झारखंड में इस समय सबका फोकस आदिवासी मतदाताओं पर है। झारखंड में आदिवासी आबादी 26.21% है। राज्य की कुल 81 सीटों में 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। 2019 के चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन ने इनमें से 25 सीटें जीत ली थीं, जिनमें 19 JMM और 6 कांग्रेस ने हासिल की थीं।
इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा आदिवासी आरक्षित सीटों में से कोई सीट नहीं जीत पाई। सभी 5 आरक्षित सीटें इंडिया गठबंधन ने जीत ली थीं। बहरहाल, इस बार परिवारवाद का राग अलापने वाली भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी, मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा, शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन को मैदान में उतारा है।
इसके साथ ही बाबू लाल मरांडी तो हैं ही। इस तरह आदिवासियों में भाजपा बाजी पलटने की कोशिश में है।
जहां तक मुद्दों की बात है, भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों के सवाल को जोर-शोर से उठा रही है। चुनाव के प्रभारी शिवराज चौहान और सह प्रभारी असम के मुख्यमंत्री शर्मा लगातार राज्य के दौरे कर रहे हैं और प्रमुखता से बांग्लादेशी घुसपैठ का सवाल उठा रहे हैं।
शर्मा अपने राज्य में जिस तरह अनर्गल आरोप लगाते हैं कि घुसपैठियों की वजह से वहां हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे, उसी अंदाज में आक्रामक ढंग से झारखंड में इस झूठे मुद्दे को उठा रहे हैं कि घुसपैठिए बांग्लादेशी मुसलमान आदिवासियों का धर्मांतरण करवा रहे हैं।
उनकी भड़काऊ और विभाजनकारी बयानबाजी के खिलाफ इंडिया गठबंधन ने केंद्रीय चुनाव आयोग से शिकायत की है और कोई कार्रवाई न होने पर कोर्ट जाने की धमकी दी है।
यहां तक कि स्वयं मोदी राज्य में आदिवासियों की घटती संख्या और आबादी के विस्थापन का सवाल उठा रहे हैं। मोदी आने वाले दिनों में राज्य में कई रैलियां करने वाले हैं। उम्मीद की जा सकती है कि अपनी सभाओं में वे ध्रुवीकरण के अभियान को और तेज करेंगे।
इसके अलावा, भाजपा JMM और हेमंत सोरेन के खिलाफ भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रही है। भाजपा सरकार की कैश ट्रांसफर योजना पर भी हमले बोल रही है।
भाजपा झारखंड में शुरू से ही मजबूत विकेट पर रही है। वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से लगातार 13 साल उसका राज रहा है।
कुछ सीटों पर तालमेल न हो पाने के कारण इंडिया गठबंधन के दल आमने-सामने हैं, जिसे दोस्ताना लड़ाई कहा जा रहा है। हालांकि यह स्पष्ट है कि चुनाव लड़ने वाले जीतने के लिए लड़ते हैं और फिर लड़ाई में दोस्ताना जैसी कोई बात नहीं रह जाती। वे एक-दूसरे को हराने के लिए ही लड़ते हैं।
ऐसी एक महत्वपूर्ण सीट धनवार की है जहां से भाजपा के नेता पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर भाकपा माले की मजबूत दावेदारी रही है, लेकिन इस बार समझौते में JMM ने यह सीट माले को देने से इनकार कर दिया।
JMM ने वहां से एक बार विधायक रह चुके निजामुद्दीन अंसारी को खड़ा कर दिया। भाकपा माले ने पूर्व विधायक राज कुमार यादव को उम्मीदवार बनाया है। जाहिर है, यहां अगर भाजपा के ताकतवर उम्मीदवार बाबू लाल मरांडी के लिए अनुकूल स्थिति बनती है तो उसकी जिम्मेदारी JMM की हठधर्मिता की होगी।
गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव में भाकपा माले का स्ट्राइक रेट सर्वाधिक था। उसके आंदोलन के इलाकों के प्रभाव में कई सीटों पर राजद को भी जीतने में मदद मिली थी। लोकसभा चुनाव में राजद ने भाकपा माले का जहां वैध दावा था, सिवान जैसी वह सीटें भी तालमेल में नहीं दिया। इसका खामियाजा पूरे इंडिया गठबंधन को भुगतना पड़ा।
धनवार इकलौती सीट नहीं है जहां इंडिया गठबंधन के दल तालमेल नहीं कर पाए और एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं, बल्कि कुछ और सीटें भी इसी श्रेणी में हैं।
झारखंड में जो 5 इलाके हैं कोल्हान, उत्तरी छोटा नागपुर, दक्षिणी छोटा नागपुर, संथाल परगना और पलामू,
इनमें 2019 के चुनाव में उत्तरी छोटा नागपुर और पलामू को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्रों में झारखंड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस गठबंधन की बढ़त थी।
उत्तरी छोटा नागपुर की 25 सीटों में भाजपा और गठबंधन दोनों को 10-10 सीटें मिली थीं। पलामू में 9 में से 5 सीटें भाजपा को मिली थीं। इसके विपरीत आदिवासी बहुल कोल्हान और संथाल परगना की 32 सीटों में से भाजपा को मात्र 4 सीटें मिली थीं, JMM कांग्रेस गठबंधन को 26 सीटें मिली थीं।
भाजपा संथाल परगना में आदिवासी आबादी में डेमोग्राफिक बदलाव को मुद्दा बना रही है कि वहां से आदिवासी विस्थापित हो रहे हैं और बांग्लादेशी घुसपैठियों का कब्जा होता जा रहा है।
वहीं कोल्हान इलाके में वह पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन जो कोल्हान के लोकप्रिय आदिवासी नेता रहे हैं, उनके मुख्यमंत्री पद से हटने को मुद्दा बना रही है और उसे पूरे कोल्हान अंचल के अपमान के रूप में पेश कर रही है।
झारखंड में भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में वायदों का पिटारा खोल दिया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है कॉमन सिविल कोड लागू करने का ऐलान। दरअसल भाजपा वहां जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास कर रही है, यह उसी अभियान का हिस्सा है। जाहिर है ऐसा कोड लागू होगा तो वह पूरे समाज के लिए होगा।
लेकिन आदिवासियों की अपनी अलग संस्कृति और जीवन शैली है। उनके ऊपर ऐसा कोई कानून थोपना उन्हें नाराज करना होगा। इसीलिए अमित शाह ने सफाई दी है कि आदिवासी इससे बाहर रखे जाएंगे। उनके ऊपर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। उत्तराखंड का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि आदिवासियों को इससे अलग रखा जाएगा।
हेमंत सोरेन भी इसको मुद्दा बनाए हुए हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि UCC आदिवासियों पर भी थोपा जाएगा। उन्होंने ऐलान किया है कि UCC को झारखंड में लागू नहीं होने देंगे।
इसी के साथ अमित शाह ने आदिवासियों की जमीन पर घुसपैठियों के कथित कब्जे को मुद्दा बनाया है और वायदा किया है कि उनकी सरकार बनी तो कानून बनाकर जो भी जमीन आदिवासियों से छीनी गई है, वह उन्हें वापस की जाएगी।
हेमंत सोरेन पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि अपने वोट बैंक के लिए उनका शासन-प्रशासन घुसपैठियों की अनदेखी कर रहा है। उन्होंने कहा कि सोरेन के राज में “माटी, बेटी और रोटी” पर हमला हो रहा है।
भाजपा के संकल्प पत्र में कृषि आशीर्वाद योजना के तहत 5 एकड़ से कम जोत वाले सभी किसानों को 5000 रुपये प्रति एकड़ देने का वायदा किया गया है। यह भी वायदा किया गया है कि 5 लाख बेरोजगार युवाओं को सरकार रोजगार देगी।
यह मजाक नहीं तो और क्या है कि जिस सरकार के राज में बेरोजगारी आजाद भारत में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है, वह झारखंड के युवाओं को भरमाने के लिए उनसे सरासर झूठे वायदे कर रही है।
सभी महिलाओं को 2100 रुपये प्रति माह देने का भी वायदा किया गया है। बुजुर्गों, विधवाओं और दिव्यांगों को 2500 रुपये पेंशन का वायदा किया गया है। पेपर लीक कांड की सीबीआई जांच का भी वायदा है।
इसके विपरीत इंडिया ब्लॉक मूल निवासी की पहचान के लिए सरना कोड और खतियान को मुद्दा बना रही है तथा उसने 1932 के खतियान के आधार पर भूमि सेटलमेंट नीति बनाने का वायदा किया है। वह अपनी राज्य सरकार की लोक कल्याण की योजनाओं पर केंद्रित कर रही है।
इसके अलावा वह जनता को कैश ट्रांसफर तथा सरकारी नौकरियों को अपनी उपलब्धियों के बतौर उठा रही है। भाजपा के 5 लाख की जगह इंडिया गठबंधन ने 10 लाख नौकरियों का वायदा किया है। उनके 500 रुपये की जगह 450 रुपये में गैस सिलेंडर देने का वायदा किया है।
ओबीसी आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27%, SC आरक्षण 10% से बढ़ाकर 12% तथा ST आरक्षण 26% से बढ़ाकर 28% करने का वायदा है। प्रति व्यक्ति 7 किलो की दर से अनाज वितरण का वायदा किया गया है।
इस चुनाव की एक खासियत महिलाओं का प्रचार के केंद्र में होना है। 81 में से 32 सीटों पर महिला मतदाता पुरुषों से अधिक हैं। सभी आदिवासी आरक्षित सीटों पर महिलाएं पुरुषों से अधिक हैं। 18 से 19 साल के बीच के जो लोग पहली बार मतदान करेंगे, उनमें 56% महिलाएं हैं।
जाहिर है महिलाओं को लेकर दोनों गठबंधनों के बीच तीखी प्रतिस्पर्धा चल रही है। हेमंत सोरेन ने महिलाओं के लिए मैया सम्मान योजना घोषित की जिसमें हर महिला को 1000 रुपये प्रति माह मिलना था।
इसकी काट के लिए भाजपा ने गोगो दीदी सम्मान योजना घोषित कर दी जिसमें प्रत्येक महिला को 2100 रुपये देने का वायदा किया। पलटवार करते हुए हेमंत सोरेन ने मैया सम्मान निधि बढ़ाकर 2500 रुपये करने का ऐलान कर दिया।
इंडिया गठबंधन जहां आदिवासी और अल्पसंख्यक आबादी के लगभग 45% वोट बैंक पर मजबूत पकड़ के साथ खड़ा है, वहीं भाजपा ओबीसी, सवर्ण जातियों, दलित आबादी के एक हिस्से पर पकड़ रखती है।
सोरेन सरकार के खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी का फायदा उठाने की वह कोशिश कर रही है। आदिवासियों में उसकी पकड़ कमजोर रही है जिसमें वह तमाम तरीकों से घुसने की कोशिश में है।
हेमंत सोरेन ने उचित ही भाजपा के वायदों को जुमला करार दिया है। इंडिया गठबंधन अगर मजबूती से चुनाव लड़कर भाजपा के झूठे जुमलों को उजागर कर सका और अपने ठोस मुद्दों को जनता के बीच लोकप्रिय बना सका, तो उनकी सरकार की झारखंड में पुनर्वापसी एक नया इतिहास रच सकती है।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)
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