Saturday, April 27, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: कलसिया नाले ने काठगोदाम में मचाई तबाही, कुमाऊं का द्वार हल्द्वानी भी खतरे में


काठगोदाम। कुमाऊं का द्वार कहा जाने वाला हल्द्वानी और उससे लगता मैदान और पहाड़ का मिलन स्थल काठगोदाम शहर भी खतरे की जद में आ गया है। हल्द्वानी और काठगोदाम से गुजरने वाले तीन पहाड़ी नाले हर बरसात में खतरे का संकेत देते रहे हैं। लेकिन, इस बार इन नालों में से एक कलसिया गधेरे ने ऐसा रौद्र रूप धारण किया कि घटना के करीब 15 दिन बाद भी यहां तबाही के निशान साफ देखे जा सकते हैं।

एक दर्जन से ज्यादा मकान इस गधेरे के उफान में पूरी तरह बह गए, जबकि दर्जनों अन्य मकान रहने के लिए असुरक्षित हो गए हैं। गनीमत यह हुई की 8 अगस्त को यह घटना शाम के वक्त हुई, जब अंधेरा तो घिर आया था, लेकिन लोग अभी सोये नहीं थे। यदि कुछ घंटे बाद यह घटना होती तो कई लोगों की जान जा सकती थी। गधेरे में तूफान आते ही लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित दूरी पर भाग गये थ

कलसिया नाला काठगोदाम की तीन बस्तियों से होकर गुजरता है। इनमें बद्रीपुरा, नई बस्ती और देवलढूंगा शामिल हैं। यह तीनों बस्तियां कलसिया नाले के दोनों तरफ बसी हुई हैं। इन बस्तियों में करीब 700 घर हैं। बस्तियों में हिंदू और मुस्लिम परिवार लगभग बराबर की संख्या में रहते हैं। कलसिया के उफान ने दोनों समुदायों के लोगों को नुकसान पहुंचाया है। जो घर पूरी तरह बह हैं उनमें निसार अहमद का घर भी शामिल है तो रोशन लाल का भी। यह बात अलग है कि इस नुकसान की भरपाई के मामले में भी हिंदू मुस्लिम का खेल खेला जा रहा है।

प्रभावितों को राहत देने में भाजपा पार्षद और स्थानीय कांग्रेस विधायक आमने-सामने नजर आ रहे हैं। इसका खामियाजा प्रभावित लोगों को भुगतना पड़ रहा है। राहत के नाम पर प्रभावित लोगों को अब तक सिर्फ 10-10 किलो राशन और 5-5 हजार रुपये ही मिल पाए हैं। नई बस्ती में रहने वाली निसार बानो का घर रहने लायक नहीं रह गया है। वे अपने परिवार के साथ रिश्तेदारों के घर में रह रही हैं। उनके घर के ठीक सामने नाले के दूसरी तरफ देवलढूंगा बस्ती में रोशन लाल, हीरालाल और प्रदीप के मकान जमींदोज हो गए हैं।

अफसर बनो बताती हैं कि 8 अगस्त को लगातार बारिश हो रही थी। दोपहर बाद बारिश तेज हो गई। उनके घर से लगता कलसिया नाला घर से करीब 20 फीट नीचे बहता था। बरसात के दौरान अक्सर नाले का जलस्तर बढ़ जाता है। अफसार बानो के अनुसार 8 अगस्त को भी नाले का जलस्तर दोपहर से बढ़ने लगा था। शाम 6 बजे के बाद उन्हें लगा कि जलस्तर सामान्य से ज्यादा बढ़ रहा है और नाले का बहाव भी आम बारिश के दिनों से कुछ ज्यादा है।

7 बजते-बजते पानी का स्तर और ज्यादा बढ़ गया और उनके घर तक पानी पहुंच गया। इसी दौरान नाले के दूसरी तरफ देवलढूंगा में हीरालाल का मकान भरभरा कर गिरा और बह गया। गनीमत यह रही की घर में रह रहे सभी लोग मकान बहने से पहले ही घर छोड़कर ऊपर की तरफ भाग गए थे। इसके बाद अफसर बानो भी अपने परिवार के साथ घर छोड़कर भाग गई। नाले के किनारे के घरों में रहने वाले लगभग सभी लोगों ने अपने-अपने घर छोड़ दिये। खतरे को देखते हुए प्रशासन और पुलिस भी तब तक बस्तियां तक पहुंच चुकी थी और लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाया जा रहा था।

बद्रीपुरा बस्ती में शाहिना का तीन कमरों का घर कलसिया के बाढ़ में पूरा का पूरा बह गया। शाहिना, उनके पति और दो बच्चे और किसी तरह जान बचाकर सुरक्षित निकल गए, लेकिन घर का कोई सामान नहीं बचा पाये। यहां तक कि बच्चों के स्कूल के बैग बचा पाना भी संभव नहीं हो पाया। शाहिना ने बताया कि अब उनका परिवार बस्ती में किसी परिवार के एक कमरे में रह रहे हैं। घटना के वक्त उन्होंने जो कपड़े पहने हुए थे उसके अलावा कुछ भी उनके पास नहीं है।

सरकारी मदद के नाम पर अब तक 5 किलो आटा, 5 किलो चावल और 5 हजार रुपये ही मिल पाए हैं। उन्हें सबसे ज्यादा चिंता अपने बच्चों की हो रही है, जिनके स्कूल के बैग भी बह गए हैं। बच्चों का स्कूल जाना भी बंद हो गया है। जो 5 हजार रुपये मिले थे, उससे खाने पीने का जरूरी सामान खरीद लिया है। बच्चों की मदद के लिए वह लगातार प्रशासन से गुहार लगा रही हैं, लेकिन कहीं से भी मदद नहीं मिल पाई है।

मोअज्जम खान के घर का एक बड़ा हिस्सा भी कलसिया नाले के उफान में बह गया। घर का एक छोटा सा हिस्सा बाकी है, लेकिन वह भी रहने के लायक नहीं रहा। मोअज्जम के अनुसार जो कमरा बाढ़ में बह गया उसमें उनके अन्य समाज के अलावा एक अलमारी भी थी। अलमारी में नकदी और जेवरात के अलावा पूरे परिवार के कपड़े थे, जिन्हें वे बचा नहीं पाए। खाने-पीने का सारा सामान भी बह गया।

यही स्थिति निसार अहमद की भी हुई। वह घर के बाहर के कमरे में परचून की दुकान चलाते थे जो उनके परिवार के गुजारे का एकमात्र साधन थी। दुकान का सारा सामान मलबे में दबकर खराब हो गया। निसार अहमद के अनुसार एक हफ्ते तक लगातार वे घर और दुकान में भरी मिट्टी हटाते रहे। बद्रीपुरा में ही सकीना भी एक छोटी सी दुकान चला कर घर का गुजारा कर रही थी। दुकान पूरी तरह बह गई। सकीना के अनुसार उन्हें सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है।

बाढ़ में 12 मकान पूरी तरह बह गए हैं। इनमें नई बस्ती के तीन घर, देवलढूंगा के चार घर और बद्रीपुरा के पांच घर शामिल हैं। इसके अलावा 30 से ज्यादा घर रहने लायक नहीं रह गए हैं। कई घर ऐसे हैं जिनमें बाढ़ का मलबा भर गया था। लोगों ने घरों में भरा मलबा इन 15 दिनों में किसी तरह साफ कर दिया है, लेकिन घरों के बाहर बड़े-बड़े बोल्डर और मिट्टी के ढेर लगे हुए हैं। लोगों का आरोप है कि प्रशासन की ओर से सर्वे करने में पक्षपात किया जा रहा है। कुछ ऐसे लोगों को मुआवजा दिया गया है जिनका नुकसान नहीं हुआ है, जबकि कई प्रभावित लोगों को छोड़ दिया गया है। मुरादन का घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त है, घटना के बाद से वह अस्पताल में भर्ती है, लेकिन उसे भी कोई मदद नहीं मिल पाई है।

काठगोदाम और हल्द्वानी का विकास तब शुरू हुआ था जब ब्रिटिश शासनकाल में भारत में रेल चलनी शुरू हुई थी। रेल की पटरियां बिछाने के लिए लकड़ी के स्लीपरों कि जरूरत थी। इसके लिए पहाड़ों में जंगल काटने का काम शुरू हुआ। गौला नदी में स्लीपर को तैराकर पहाड़ और मैदान के इस मिलनस्थल तक लाए गए। उस समय इस जगह को बमौरी दर्रा कहा जाता था। बाद में यहां गौला नदी के किनारे कई किलोमीटर दूर तक पहाड़ों से काटकर लाई जाने वाली लकड़ियों के ढेर जमा होने लगे तो इसे काठगोदाम कहा जाने लगा।

लकड़ी गाड़ियों में लोड करने के लिए मजदूरों को देश के अलग अलग हिस्सों से लाया गया और गौला नदी के किनारे बसाया गया। इस बस्ती को बनभूलपुर कहा जाता हैं, जिसे अब रेलवे अपनी जमीन बताकर खाली करवाना चाहती है। लकड़ियों को आसानी से देश के अन्य हिस्सों तक पहुंचाने के लिए वर्ष 1884 में लखनऊ से बरेली होकर काठगोदाम तक रेल लाइन बिछाई गई। लेकिन आज का हल्द्वानी और काठगोदाम कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं, इनमें तीन नालों और गौला नदी के कारण पैदा हुआ खतरा सबसे ज्यादा है।

इस बार तबाही लाने वाला कलसिया नाले की लंबाई वैसे तो पहाड़ पर अपने उद्गम से लेकर काठगोदाम में गौला नदी में मिलने तक केवल 8 किलोमीटर ही हैं। लेकिन ऊपरी क्षेत्र में तेज बारिश के कारण यह नाला काठगोदाम के लिए खतरा बना रहता है। इस नाले के दोनों तरफ ब्रिटिश काल के तटबंध बने हुए हैं, लेकिन बाद के दौर में अतिक्रमण के कारण ये तटबंध ज्यादातर जगहों पर गायब हो गए।

हल्द्वानी शहर के लिए दूसरी बड़ी समस्या राक्सिया नाला है। यह नाला शहर के दमुवाढूंगा और लालढांग आदि हिस्सों में हर बरसात में जलभराव का कारण बनता है। इस बार भी राक्सिया नाला कई बार जलभराव का कारण बन चुका है। अवैध खनन के लिए प्रसिद्ध रही गोला नदी से काठगोदाम और हल्द्वानी तो प्रभावित नहीं होते, लेकिन शहर के निचले हिस्से लालकुआं सहित कई जगहों पर गोला से हर साल नुकसान होता है। गोला नदी कई बार रेलवे ट्रैक को भी नुकसान पहुंचाती है।

(उत्तराखंड के काठगोदाम से त्रिलोचन भट्ट की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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