जेएनयू, जामिया और अब खुरेजी, तीनों जगह एक सा पैटर्न। दिल्ली पुलिस लाइट बंद करके लोकतंत्र पर हमला करती है। पता नहीं वो अपनी अमानवीयता और बर्बरता को कैमरों से बचाने के लिए ऐसा करती है या लोकतंत्र की आंखों में अपना चेहरा देखकर उसे शर्मिन्दा न होना पड़े इसलिए ऐसा करती है!
खुरेजी के धरना स्थल से सदफ़ बताती हैं, “मंगलवार की रात ढाई-तीन बजे जब धरना स्थल पर महिलाओं की संख्या 50-60 के करीब थी, पहले दो पुलिस वाले देखने के लिए आए। उसके बाद वो निकल गए। इसके बाद तीन पुलिस वाले और आए। थोड़ी ही देर में बाहर करीब 50-60 पुलिस वाले जुट गए। तीन पुलिस वाले जो हमसे बात करने आए उसमें से एक एसीपी और दूसरा डीसीपी था। उनमें से एक जो खुद को एसीपी बता रहा था वो सिविल ड्रेस में था। ऑन ड्युटी कोई बिना वर्दी के कैसे हो सकता है। उन्होंने पहले हमें बातों में फंसाया और आते ही हमसे बोल कि आप लोगों का दो दिन प्रोटेस्ट हो गया अब आप लोग यहां से डिस्पर्स हो जाइए।
हमने उनसे बहुत आराम से बात करने की कोशिश की, लेकिन वो इस मंसूबे के साथ आए थे कि हमें किसी तरह से निकाला जाए। वो सिर्फ़ पुलिस नहीं थी। उनके साथ आरएसएस के कुछ लोग भी थे। पुलिस ने हमें बात करते वक़्त अचानक से लाइट बंद करा दिया। जैसा कि उन्होंने जामिया और जेएनयू में किया था। कुछ भी करने से पहले वो लाइट बंद कर देते हैं। उसके बाद वो शामियाना गिराने की कोशिश करने लगे।
उनकी प्लानिंग ये थी कि जब पूरा शामियना हम पर गिरता तो उसके बाद शायद वो लाठीचार्ज करते। हमने वो टेंट हिस्सों में बांधा था। वो तीन हिस्सों में बंधा था। उन्हें ये नहीं पता था कि तीन हिस्सों में बंधा है। तो उन्होंने जब टेंट गिराने की कोशिश की तो सिर्फ़ एक हिस्सा टूटा बाकी दो हिस्सा सही सलामत खड़े रहे। पुलिस ने जब हमला किया तो उस समय हमने स्थानीय लोगों को सूचित किया और थोड़ी ही देर में 300 लोकल लोग इकट्ठा हो गए। सब लोगों ने अपने मोबाइल की लाइट जलाकर पुलिस के अंधेरे को दूर किया। कई लोग पुलिस की हरकतों का फेसबुक लाइव करने लगे। इसके बाद दिल्ली पुलिस का मंसूबा फेल हो गया और वो चुपचाप निकल गए।”
सदफ़ बताती हैं कि पहले दिन यानी सोमवार की शाम को दिल्ली पुलिस ने धरने पर बैठी महिलाओं के साथ बदतमीजी की। दूसरे दिन मंगलवार की सुबह भी वो महिलाओं को धरने से उठाने के लिए आए और धरना स्थल पर परेड की। फिर सामने से बैरीकेडिंग लगाकर रास्ता अवरुद्ध कर दिया कि बाहर के लोग यहां न आ सकें। उन्होंने लड़कों और पुरुषों पर हमले भी किए वो तो महिलाओं ने ह्युमन चेन बनाकर पुरुषों को पुलिस की मार से बचाया। मंगलवार की सुबह स्थिति बहुत तनावपूर्ण थी, लेकिन खुरेजी की महिलाओं ने भी ठान लिया था कि जब तक सीएए वापिस नहीं होता तब तक हम धरने से नहीं उठेंगे।
सलीम ख़ान बताते हैं, “सोमवार की शाम को दिल्ली पुलिस यहां से एक लड़के को उठाकर ले गई। वो हमें जामिया की तरह बर्बरता दिखाकर डराना चाहते हैं ताकि हम अपने अधिकारों के लिए लड़ना छोड़ दें। डीसीपी ने धरना खत्म करके ग्राउंड खाली करने को कहा है।”
शाजिया कहती हैं, “वो समझते थे कि हमारी महिलाएं बाहर नहीं निकलती हैं, लेकिन अब वो ये देखकर दंग हैं कि हम महिलाएं पर्दे से संविधान बचाने की लड़ाई लड़ने के लिए बाहर निकल आई हैं। हम महिलाएं धर्म के आधार पर नागरिकता निर्धारित करने वाले किसी भी कानून को नहीं लाने देंगे।”
अमान बताते हैं कि खुरेजी की महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर, बूढ़ी महिलाएं अपने बच्चों के भविष्य की फिक्र लिए बेमियादी धरने पर बैठी हैं। पटना सब्जी मंडी में महिलाएं बेमियादी धरने पर हैं। कानपुर और इलाहबाद में बेमियादी धरने पर हैं। इन सबकी प्रेरणा शाहीन बाग़ में तो धरने के एक महीने पूरे हो गए। हर जगह एक ही मांग है सीएए को वापस लिया जाए। एनआरसी एनपीआर वापिस ली जाए।
जामिया, जाफराबाद सीलमपुर, मेरठ, बुलंदशहर, लखनऊ में जिस तरह से पत्थरबाजों ने प्रदर्शनकारियों के बीच घुसकर विरोध प्रदर्शनों की दशा-दिशा और छवि खराब की है, उससे यहां के लोग काफी सजग और चौकन्ने हैं। उन्होंने कहा कि हम ये भी ध्यान रख रहे हैं कि गलत लोग आंदोलन का हिस्सा न बनें। इसके लिए विधिवत कमेटी बनी है।
उन्होंने बताया कि मेडिकल कमेटी अलग, लीगल कमेटी अलग। लोकल लोगों ने पुलिस से भी परमीशन लेनी चाही पर पुलिस परमीशन विरोध करने वालों को नहीं मिलती। सीएए-एनआरसी समर्थन करने वालों को पुलिस परमीशन देती है।
13 वर्षीय छात्रा मरियम बताती हैं, “एक दिन मेरी एसएसटी की टीचर ने क्लास में कहा कि मुस्लिम लोगों को सीएए एनआरसी का विरोध नहीं करना चाहिए। ये अच्छा कानून है।” लेकिन 13 वर्षीय बच्ची मरियम का इस विकट समय में निजी जीवन संघर्ष से निकला साहस और तर्कशीलता देखिए जो पलटकर अपनी एसएसटी शिक्षिका से कहती हैं, “आप लोग गैर मुस्लिम हैं न, इसलिए आपको नहीं पता, क्योंकि ये आपके साथ नहीं हो रहा है। इसलिए आप इस काले कानून को अच्छा बता रही हैं।”
सना कहती हैं, “उन्होंने हमें जेएनयू, जामिया, बाबरी के मसले पर घेरा। उन्होंने 370 हटाकर हमें घेरा, लेकिन हम चुप रहे। हम मजहब, शरीयत और अपनी क़ौम के खिलाफ़ हुए हमले को बर्दाश्त कर गए, लेकिन अब उन्होंने हमारे मुल्क़ के आईन पर हमला किया है। इसे हम कतई नहीं स्वीकार करेंगे। इस बार हम चुप नहीं रहेंगे। इस बार हम उन्हें अपनी प्रतिरोधी आवाज़ की गूंज सुनाएंगे।”
19 वर्षीय हामिद तिरंगे को अपनी देह पर लपेटकर धरना स्थल पर बैठे हैं। वो बताते हैं कि जब तक है जान तब तक हम अपनी मुल्क़, इसके संविधान और इस मुल्क़ की सांझी तहजीब और भाईचारे को बचाने के लिए लड़ते रहेंगे।
एक शाहीन बाग़ पहले से ही सरकार और प्रशासन के हलक की फांस बना हुआ था, ऐसे में दिल्ली के खुरेजी में महिलाओं द्वारा अनिश्चितकालीन धरने पर बैठना प्रशासन की नाक का सवाल बन गया है।
पहले ही दिन शाम के समय दिल्ली पुलिस ने खुरेजी के धरने पर पहला हमला किया था, लेकिन खुरेजी की महिलाओं ने अपने बेटों, भाईयों, पति और पिताओं को घेरे के अंदर लेकर खुद पुलिस के सामने दीवार बनकर खड़ी हो गईं। मजबूरन पुलिस को पांव पीछे खींचने पड़े, लेकिन दूसरे दिन यानि 14 जनवरी की रात तीन बजे दिल्ली पुलिस ने धरने पर हमला किया, लाइट बंद करके। दरअसल इस मुल्क़ के हुक्कामों को इस मुल्क़ की रोशनाई से डर लगता है। वो इस मुल्क की रोशनी छीनकर उसे हमेशा हमेशा के लिए अंधेरे में ढकेल देना चाहते हैं।