Sunday, April 28, 2024

एहतिजाज की बुलंद आवाज़ नरगिस मोहम्मदी को नोबेल शांति पुरस्कार

एहतिजाज की आवाज़ बुलंद करने वाली ईरानी मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को साल 2023 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजे़ जाने का ऐलान एक ऐसे वक़्त में हुआ है, जब दुनिया के कई बड़े मुल्कों में दक्षिणपंथी ताक़तें सत्ता में हैं और अपने ख़िलाफ़ असहमति की जरा सी भी आवाज़ को बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं। आलम यह है कि सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करने वाले देशों में भी लोकतांत्रिक अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हाशिए पर हैं।

यहां तक कि मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले लोगों और सरकार की ग़लत नीतियों का विरोध करने वालों दोनों को वहां शक की निगाह से देखा जा रहा है। उन्हें जन विरोधी कानूनों के तहत जेल भेजा जा रहा है। उन पर अत्याचार हो रहे हैं।

नोबेल शांति पुरस्कार जीतकर, नरगिस मोहम्मदी दुनिया की उन उन्नीस महिलाओं में शामिल हो गई हैं, जिन्होंने इस प्रतिष्ठित और सर्वोच्च पुरस्कार को अपने नाम किया है। ईरान ही की शिरीन एबादी, भारत-मदर टेरेसा, पाकिस्तान-मलाला यूसुफ़ज़ई और फिलीपींस की मारिया रेसा वे कुछ अहम महिलाएं हैं, जिनको नोबेल शांति पुरस्कार से अभी तलक सम्मानित किया जा चुका है। 

नोबेल पुरस्कार के 122 साल के इतिहास में यह पांचवीं बार है, जब शांति पुरस्कार किसी ऐसे शख़्स को दिया जा रहा है जो जेल में है या फिर घर में नज़रबंद है। नॉर्वे नोबेल समिति ने इस पुरस्कार का ऐलान करते हुए कहा है कि “नरगिस मोहम्मदी को इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार देकर, नॉर्वे नोबेल समिति ईरान में मानवाधिकारों, आज़ादी और लोकतंत्र के लिए उनकी हिम्मती लड़ाई का सम्मान करना चाहती है।”

समिति ने अपने बयान में आगे कहा, “इस साल का शांति पुरस्कार उन लाखों लोगों को भी सम्मानित करता है, जो पिछले कुछ सालों में महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभाव और उत्पीड़न की धार्मिक नीतियों के ख़िलाफ़ विरोध करते रहे हैं। नरगिस मोहम्मदी ने लगातार भेदभाव और उत्पीड़न का विरोध किया है। उन्होंने सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकार के लिए संघर्ष की वकालत की है।”

नोबेल समिति का कहना था कि, “नोबेल पुरस्कार विजेता नरगिस मोहम्मदी को तेरह बार गिरफ़्तार किया गया, पांच बार गुनहगार ठहराया गया और कुल 31 साल जेल और 154 कोड़े की सज़ा सुनाई गई। उसे अपने इस जांबाज़ी भरे जद्दोजहद के लिए व्यक्तिगत कीमत चुकानी पड़ी।”

गौरतलब है कि साल 1901 में स्थापना के बाद से नोबेल शांति पुरस्कार अभी तलक 110 व्यक्तियों और 30 संगठनों को दिया गया है। इस साल 350 से ज़्यादा लोग इस पुरस्कार की दौड़ में थे। पुरस्कार के दावेदारों में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की, नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस भी शामिल थे।

जबकि पिछले साल यह पुरस्कार, रूस के यूक्रेन पर चल रहे आक्रमण की पृष्ठभूमि पर शांति को बढ़ावा देने के वास्ते रूसी मानवाधिकार समूह मेमोरियल, यूक्रेन के सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज और जेल में बंद बेलारूसी अधिकार अधिवक्ता एलेस बियालियात्स्की को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया था।

बहरहाल, इस साल 10 दिसंबर को अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि पर नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में नरगिस मोहम्मदी को एक गोल्ड मेडल, डिप्लोमा और 11 मिलियन स्वीडिश क्राउन यानी तक़रीबन 1 मिलियन डॉलर का पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाएगा।

पिछले साल ही अपनी ज़िंदगी के पचास साल मुकम्मल करने वाली नरगिस मोहम्मदी, ईरान की अव्वल मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से एक हैं, जो बरसों से महिला अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। यह बतलाना लाज़िमी होगा कि ईरान, मानवाधिकार अधिकारों और उनमें भी महिलाओं के अधिकारों के मामले में सबसे बुरे मुल्कों में से एक है। यहां जो भी इन अधिकारों के लिए संघर्ष करता है, उनका ज़बर्दस्त दमन किया जाता है। उन पर अत्याचार और उन्हें जेल में डाल दिया जाता है।

नरगिस मोहम्मदी ने 1990 के दशक से जब वे महज़ बीस साल की थीं, अपने मुल्क में समानता और महिलाओं के अधिकारों की वकालत करना शुरू की। वे एक अच्छी राइटर भी हैं। अपने ख़यालात को अवाम तक पहुंचाने के लिए उन्होंने अख़बारों के लिए आर्टिकल लिखे। नरगिस की एक किताब ‘व्हाइट टॉर्चरः इंटरव्यूज़ विद ईरानी वूमेन प्रिज़नर्स’ भी प्रकाशित हो, चर्चा में रह चुकी है। इस किताब ने अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव और मानवाधिकार फोरम में ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ के लिए एक पुरस्कार भी जीता है।

शिरीन एबादी के नेतृत्व वाले एक गैर-सरकारी संगठन, ‘डिफेंडर्स ऑफ ह्यूमन राइट्स सेंटर’ की उप प्रमुख नरगिस मोहम्मदी ने हमेशा समानता और महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। उन्हें 2011 में पहली बार गिरफ़्तार किया गया था। उन पर जेल में बंद कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों की मदद करने का इल्ज़ाम था। इस ‘गुनाह’ के लिए उन्होंने कई सालों तक जेल की सज़ा काटी। बहरहाल, मोहम्मदी दो साल बाद जमानत पर रिहा हुईं।

इसके बाद भी उन्होंने अपनी ये लड़ाई जारी रखी। जेल का अकेलापन एवं यातनाएं भी उनका हौसला और इरादा तोड़ नहीं पाईं। कुछ अरसे बाद नरगिस मोहम्मदी, सज़ा-ए-मौत के ख़िलाफ़ चलाई गई एक मुहिम में शामिल हुईं। इसके लिए साल 2015 में उन्हें एक बार फिर गिरफ़्तार किया गया और उनकी सज़ा को बढ़ा दिया गया। वो तब से ही जेल में बंद हैं।

नरगिस मोहम्मदी, जेल में भी ख़ामोश नहीं बैठ गईं। जेल से ही उन्होंने सियासी क़ैदियों पर सत्ता के उत्पीड़न के ख़िलाफ़ लगातार अपना विरोध जताया है। उनके अधिकारों की हिफ़ाज़त की पैरवी की है। ख़ास तौर पर महिला कैदियों पर हो रहे उत्पीड़न और यौन हिंसा के मामले में वे ज़्यादा मुखर हैं और लगातार इसकी मुख़ालफ़त कर रही हैं। 

सितंबर, 2022 में एक युवा कुर्दिश महिला महसा जीना अमिनी ईरान की मोरेलिटी पुलिस की हिरासत में मारी गईं। इस वाक़िआत के बाद, लोगों का दबा हुआ गुस्सा बाहर आ गया। देश भर में महिलाओं के अधिकारों के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। जो कि स्वाभाविक प्रक्रिया थी। ‘औरत-ज़िंदगी-आज़ादी’ के नारे के तहत हज़ारों ईरानियों ने सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की। 1979 में सत्ता में आने के बाद से ईरान की तानाशाही हुकूमत के ख़िलाफ़ यह सबसे बड़े राजनीतिक प्रदर्शन थे।

सरकार, इन प्रदर्शनों से घबरा गई और इस विरोध को कुचलने के लिए उसने कड़ी कार्रवाई की। जिसमें 500 से भी ज़्यादा प्रदर्शनकारी मारे गए। हज़ारों लोग घायल हुए। कई लोग पुलिस की चलाई रबर की गोलियों से अंधे हो गए। इस दरमियान तक़रीबन 20,000 लोगों को गिरफ़्तार किया गया। नरगिस मोहम्मदी ने तेहरान की एविन जेल में बंद रहते हुए, इस प्रदर्शन की पुर-ज़ोर हिमायत की। उन्होंने जेल में ही अपने साथियों को इकट्ठा कर, देश में हो रहे विरोध प्रदर्शन के साथ अपना समर्थन दर्ज कराया।

जेल की सख़्त हालात में भी वह बाहरी दुनिया के साथ संवाद करने में कामयाब रहीं। उन्होंने लोगों को इकट्ठा करने के साथ-साथ उन्हें बेदार किया। ज़ाहिर है कि इस पर जेल अफ़सरों ने बौखला कर नरगिस पर और भी कड़ी पाबंदियां लगा दीं। उन्हें किसी से फोन पर बात करने या किसी से मिलने से भी पाबंद कर दिया। बावजूद इसके उन्होंने किसी तरह ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ को अपना एक लेख भेजा। अख़बार ने इसे महसा अमिनी की हत्या की पहली सालगिरह पर छापा।

मोहम्मदी ने इस लेख में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था, “वे हममें से जितने ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार करेंगे, हम उतना मज़बूत होंगे।”

नरगिस मोहम्मदी को नोबेल शांति पुरस्कार के ऐलान के बाद दुनिया भर के अमनपसंद, इंसानियत के हिमायती और मानव अधिकारों के समर्थकों ने इस फै़सले की जहां खुलकर तारीफ़ और अपनी खुशी जताई है, तो दूसरी तरफ़ ईरान सरकार ने इसकी निंदा करते हुए, इस क़दम को ‘पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक’ बताया है।

ज़ाहिर है कि यह नकारात्मक बयान, मौजूदा ईरान हुकूमत की हताशा और निराशा को दिखलाता है। वह नरगिस मोहम्मदी को मिले इस पुरस्कार को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। क्योंकि जब पुरस्कार की बात होगी, तो ईरान के राजनीतिक और सामाजिक माहौल का भी ज़िक्र होगा। वहां मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ क्या ग़लत सुलूक़ हो रहा है, जे़र-ए-बहस होगा। आज़ादी का ख़याल और अपने हुक़ूक़ों के जानिब जब एक बार किसी कौम में बेदारी आ जाती है, तो उस ख़याल को कोई ताक़त नहीं रोक पाती।

ईरान सरकार को चाहिए कि वह नरगिस मोहम्मदी को मिले इस प्रतिष्ठित पुरस्कार का न सिर्फ़ खै़र-मक़्दम करे, बल्कि नरगिस समेत सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को ईरानी जेलों से फ़ौरन रिहा किया जाए। अपनी आधी आबादी को उनके अधिकारों से वंचित कर, कोई भी सरकार अपने आप को सभ्य होने का दावा नहीं कर सकती। फिर बात, स्वतंत्रता और समानता की भी है। जो नागरिकों के बुनियादी अधिकार हैं।   

(ज़ाहिद ख़ान स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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