Thursday, April 18, 2024

9 रिटायर्ड IPS अफसरों ने कहा-दिल्ली दंगों की ऐसी विवेचना से लोगों का लोकतंत्र,न्याय,निष्पक्षता और संविधान से उठ जाएगा भरोसा

दिल्ली दंगों की पक्षपात रहित विवेचना के लिये 9 रिटायर्ड आईपीएस अफसरों ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को एक खुला पत्र लिखा है। दिल्ली दंगों की हो रही पक्षपातपूर्ण विवेचना के आरोपों के बीच दो दिन पहले वरिष्ठ आईपीएस जुलियो रिबेरो ने भी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने यह कहा था कि, 

” यह पत्र मैं आपको भारी मन से लिख रहा हूं। एक सच्चे देशभक्त और भारतीय पुलिस सेवा के एक पूर्व गौरवशाली सदस्य के रूप में मैं आपसे अपील करता हूं कि उन 753 प्राथमिकियों में निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करें, जो शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पंजीकृत हैं, और जिन्हें स्वाभाविक तौर पर यह आशंका है कि अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ व्याप्त पूर्वाग्रह और घृणा के कारण उन्हें इंसाफ नहीं मिलेगा।”

” हम, इस देश की पुलिस, और भारतीय पुलिस सेवा से आने वाला इसका नेतृत्व, हमारा कर्तव्य और दायित्व है कि हम संविधान और उसके तहत अधिनियमित कानूनों का जाति, पंथ और राजनीतिक संबद्धता के बिना निष्पक्ष रूप से सम्मान करें। कृपया दिल्ली में अपनी कमान के तहत हुई पुलिस की कार्रवाई का पुनर्मूल्यांकन करें और निर्धारित करें कि क्या उन्होंने सेवा में शामिल होने के समय ली गई शपथ के प्रति वफादारी का निर्वाह किया है।” 

दिल्ली दंगों की तफ्तीश, अब तक दंगों की तफ़्तीशों में सबसे विवादित तफ्तीश बनती जा रही है। अदालत की अनेक टिप्पणियां पुलिस थियरी के बिल्कुल प्रतिकूल हैं । 

ऐसा नहीं है कि दिल्ली दंगों की विवेचना पर जुलियो रिबेरो और उनके बाद 9 अन्य रिटायर्ड आईपीएस अफसरों ने ही सवाल उठाए हैं, बल्कि सबसे पहले आपत्ति दिल्ली हाईकोर्ट ने इन जांचों की गुणवत्ता और इकतरफा दृष्टिकोण को लेकर की थी। जस्टिस मुरलीधर की पीठ ने अदालत में कपिल मिश्र और केंद्रीय राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के वीडियो देखे, जिसमें कपिल मिश्र, डीसीपी दिल्ली के समक्ष जनता को अल्टीमेटम देते नजर आ रहे हैं, और अनुराग ठाकुर गोली मारो सालों को कहते दिख रहे हैं।

दिल्ली पुलिस के डीसीपी उस वीडियो में मुस्कुराते हुए दिख रहे हैं। दिल्ली पुलिस के उक्त डीसीपी के इस हैरान कर देने वाले प्रोफेशनल आचरण की निंदा रिटायर्ड आईपीएस और बीएसएफ के डीजी रह चुके अजय राज शर्मा जो दिल्ली के पुलिस कमिश्नर भी रहे हैं, ने एक लंबे इंटरव्यू में की थी। अन्य रिटायर्ड अफसरों ने भी इसकी आलोचना की थी और डीसीपी की वह हरकत बिल्कुल गैर प्रोफेशनल थी। 

ऐसी ही टिप्पणियां सेशन कोर्ट ने भी कुछ अभियुक्तों की जमानत देते हुए की थी। समाज के अन्य गणमान्य लोगों ने भी इन दंगों में सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. अपूर्वानन्द को इन दंगों में विवेचना के दौरान घसीटने के विरुद्ध की है। पहले से ही, दिल्ली दंगा और हिंसा न रोक पाने के कारण दिल्ली पुलिस को जबरदस्त आलोचना झेलनी पड़ी थी, अब इन विवेचनाओं ने उसके पेशेवराना रूप पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह बात सच है कि, दिल्ली पुलिस एक दक्ष और प्रोफेशनल पुलिस है पर यह पेशेवराना स्वरूप कामकाज के दौरान भी तो दिखे। 

दिल्ली हाईकोर्ट की उक्त पीठ ने, चौबीस घंटे के अंदर उक्त वीडियो को देख कर दिल्ली पुलिस से आवश्यक वैधानिक कार्यवाही करने के लिये कहा था। अदालत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता जो दिल्ली पुलिस की तरफ से यह मुकदमा देख रहे थे, भी मौजूद थे। लेकिन 24 घँटे के भीतर हाईकोर्ट के उक्त निर्देश पर कोई कार्यवाही तो हुयी नहीं, उल्टे पीठ की अध्यक्षता करने वाले हाईकोर्ट के जज जस्टिस मुरलीधर का दिल्ली हाईकोर्ट से पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में तबादला हो गया। आज तक न तो कपिल मिश्र के खिलाफ कार्यवाही हुयी और न ही अनुराग ठाकुर से पूछताछ किये जाने की खबर है। 

जब दिल्ली दंगों पर लोकसभा में बहस चल रही थी तब गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि, यह दंगे एक बड़े षड्यंत्र के परिणाम हैं और यह भी उन्होंने कहा था कि, यूपी से 300 लोगों ने दिल्ली में आ कर दंगे भड़काये और हिंसा की। यह 300 कौन थे। साज़िश कहाँ हुयी और यूपी में से कहाँ कहाँ से आये थे, इस पर दिल्ली पुलिस की तफ्तीश अभी तक नहीं हो पाई है। दिल्ली पुलिस दंगों के लिये सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने वालों को जिम्मेदार मान रही है। पर उनके खिलाफ अभी तक कोई सुबूत मिला भी है या नहीं यह पता नहीं। 

आज तक जेएनयू के हॉस्टल में घुस कर मारपीट करने वाली कोमल शर्मा, और जामिया यूनिवर्सिटी के पुस्तकालय में तोड़ फोड़ करने वालों की न तो पहचान हो सकी और न ही उनके खिलाफ कोई कार्यवाही हुयी, तो इससे अगर यह आभास हो रहा है कि दिल्ली पुलिस की दंगों, जेएनयू, जामिया आदि मामलों में जांच और तफ्तीश पक्षपातपूर्ण है तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। 

दिल्ली दंगा 2020 की हो रही त्रुटिपूर्ण विवेचना के संबंध में 9 रिटायर्ड आईपीएस अफसरों द्वारा, दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को, एक खुला पत्र लिखा गया है। यह पत्र, रिटायर्ड आईपीएस अफसर जुलियो रिबेरो द्वारा दिल्ली पुलिस कमिश्नर को लिखे गए पत्र के बाद, उसके समर्थन में लिखा गया है। पत्र में यह अपेक्षा की गयी है कि, 

” ऐसी विवेचनाओं से लोकतंत्र, न्याय, निष्पक्षता और संविधान पर से लोगों का भरोसा खत्म होता है। यह एक खतरनाक विचार है जो एक विधिनुकूल समाज के आधार को न सिर्फ हिला देगा, बल्कि इससे कानून और व्यवस्था की समस्याएं भी उत्पन्न हो जाएंगी। 

अतः, हम सब आप से यह अनुरोध करना चाहेंगे कि, आप, पीड़ितों और उनके परिजनों को न्याय, तथा विधि के शासन को बरकरार रखने के लिये, दंगों से जुड़े सभी मुकदमों की पुनर्विवेचना आपराधिक विवेचना के सिद्धांतों के आधार पर करायें। “

यह खुला पत्र अंग्रेजी में है, जिसका हिंदी अनुवाद मैंने किया है, जो आप यहां पढ़ सकते हैं: 

श्री एसएन श्रीवास्तव आईपीएस

आयुक्त, दिल्ली पुलिस। 

[email protected]

प्रिय श्री श्रीवास्तव, 

हम सब अधोहस्ताक्षरी, भारतीय पुलिस सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी हैं और, विभिन्न सेवाओं के रिटायर्ड अफसरों के एक वृहत्तर समूह, कांस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप, (सीसीजी) से जुड़े हैं। भारतीय पुलिस सेवा के एक जीवंत आख्यान (जैसा एक खबर में उन्हें कहा गया है) बन चुके श्री जुलियो रिबेरो भी सीसीजी के सदस्य हैं। दिल्ली दंगों की हो रही त्रुटिपूर्ण विवेचना के संबंध में उन्होंने जो पत्र आप को लिखा है, हम सब उससे सहमत हैं। 

उस पत्र के अतिरिक्त, हम सब यह भी कहना चाहते हैं, कि, भारतीय पुलिस के इतिहास में यह एक दुःखद दिन है कि दिल्ली दंगों की विवेचना के बाद, जो चालान, न्यायालयों में दाखिल किए जा रहे हैं, उन्हें अधिकांश लोग, राजनीति से प्रेरित और पक्षपातपूर्ण मान रहे हैं। यह उन सभी सेवारत और रिटायर्ड पुलिस अफसरों के लिये दुःखद है जो, संविधान और कानून के शासन को बनाये रखने में विश्वास करते हैं। 

हमें यह जानकर अफसोस हुआ है कि, आप के एक विशेष आयुक्त ने, इस बात पर, विवेचना को प्रभावित करने का प्रयास किया कि हिंदुओं की गिरफ्तारी से उनके समाज मे असंतोष पनप जाएगा। इस प्रकार बहुसंख्यकवादी मानसिकता से प्रेरित दृष्टिकोण हिंसा से पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों और उनके परिवार का भरोसा न्याय से विचलित करेंगे। इसका यह भी असर होगा कि हिंसक गतिविधियों में लिप्त बहुसंख्यक समाज के  लोग बिना दंड पाए ही बच निकलेंगे। 

सबसे अधिक अफसोस इस बात पर है कि जो लोग नागरिकता संशोधन विधेयक सीएए के खिलाफ और इन आंदोलनों में भाग ले रहे थे उनको इन मुकदमों में फंसाया जा रहा है। जबकि वे संविधान प्रदत्त अपने मौलिक अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण आंदोलन के अधिकार के अंतर्गत अपनी बात कह रहे थे। 

बिना किसी महत्त्वपूर्ण साक्ष्य पर आधारित विवेचना, पक्षपातरहित विवेचना के सभी सिद्धांतों के विपरीत है। सीएए के खिलाफ अपने विचार रखने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को तो फंसाया जा रहा है और दूसरी तरफ सत्तारूढ़ दल के वे लोग जिन्होंने हिंसा को भड़काया था, के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं की जा रही है। 

ऐसी विवेचनाओं के कारण, लोकतंत्र, न्याय, निष्पक्षता और संविधान पर से लोगों का भरोसा खत्म होता है। यह एक खतरनाक विचार है जो एक विधिनुकूल समाज के आधार को न सिर्फ हानि पहुंचाएगा, बल्कि इससे कानून और व्यवस्था की समस्याएं भी उत्पन्न हो जाएंगी। 

अतः, आप से हम सब, यह अनुरोध करना चाहेंगे कि विधि के शासन को बरकरार रखने तथा पीड़ितों और उनके परिजनों को न्याय दिलाने के लिये दंगों से जुड़े सभी मुकदमों की पुनर्विवेचना आपराधिक विवेचना के सिद्धांतों के आधार पर करायें। 

भवदीय,

1. शफी आलम, आईपीएस ( रिटायर्ड )

पूर्व डीजी, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, नयी दिल्ली।

2. के सलीम अली, आईपीएस ( रिटायर्ड )

पूर्व स्पेशल डायरेक्टर, सीबीआई, भारत सरकार।

3. मोहिन्दरपाल औलख, आईपीएस ( रिटायर्ड )

पूर्व डीजी, (कारागार), पंजाब सरकार। 

4. एएस दुलत, आईपीएस ( रिटायर्ड )

पूर्व ओएसडी, कश्मीर, प्रधानमंत्री कार्यालय, भारत सरकार। 

5. आलोक बी लाल, आईपीएस ( रिटायर्ड )

पूर्व डीजी, अभियोजन, उत्तराखंड सरकार। 

6. अमिताभ माथुर, आईपीएस ( रिटायर्ड )

पूर्व डायरेक्टर, एविएशन रिसर्च सेंटर और, पूर्व विशेष सचिव, कैबिनेट सचिवालय, भारत सरकार। 

7. अविनाश मोहनानी, आईपीएस ( रिटायर्ड )

पूर्व डीजी, सिक्किम।

8. पीजीजे नंबूदिरी, आईपीएस, ( रिटायर्ड )

पूर्व डीजी, गुजरात। 

9. एके सामंत, आईपीएस ( रिटायर्ड )

पूर्व डीजी, अभिसूचना, पश्चिम बंगाल।

■ 

मूल पत्र अंग्रेजी में है।

(लेखक विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं। आप आजकल कानपुर में रहते हैं।) 

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