कश्मीरी पत्रकार सफीना का पुरस्कार रद्द करने की NWMI ने निंदा की, महाराष्ट्र संस्थान को लिखा पत्र

कश्मीरी पत्रकार सफीना नबी को पुरस्कार देने की घोषणा के बाद अचानक बिना कोई ठोस वजह बताए पुरस्कार रद्द करने को लेकर नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया, इंडिया (NWMI) ने महाराष्ट्र प्रौद्योगिकी विश्व शांति विश्वविद्यालय संस्थान को पत्र लिखकर निराशा जताई है और निर्णय की निंदा करते हुए इसे बदलने की अपील की है।

महाराष्ट्र प्रौद्योगिकी-विश्व शांति विश्वविद्यालय संस्थान, पुणे के मीडिया एवं कम्युनिकेशन विभाग के निदेशक को लिखे पत्र में NWMI ने लिखा कि “हम, नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया, इंडिया (एनडब्ल्यूएमआई), अपनी सदस्य सफीना नबी को उनकी स्क्रोल पर 26 जनवरी 2022 को छपी रिपोर्ट ‘हाफ विडोस ऑफ कश्मीर’ के लिए ‘समाज में करुणा, समझ और समावेशिता को बढ़ावा देने वाली पत्रकारिता’ श्रेणी में दिये पुरस्कार को रद्द करने के निर्णय की निंदा करते हैं।”

NWMI ने लिखा कि “हम विश्वविद्यालय के अशिष्ट तरीके से पुरस्कार रद्द करने, समुचित प्रतिसाद न देने और प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति आपकी कटिबद्धता के अभाव से निराश हैं।

सफीना नबी की रिपोर्ट ने कश्मीर की उन औरतों की पीड़ा सामने लाई थी, जिनके पतियों के वर्षों पहले लापता होने के बाद भी संपत्ति अधिकार नहीं दिये गये हैं।

सफीना के पत्रकारीय कौशल और विश्वसनीयता को वैश्विक स्तर पर पहचान मिल चुकी है।”

NWMI ने आगे लिखा कि “आम तौर पर, पुरस्कार ने गहन संघर्ष वाले क्षेत्र से खबरों के महत्व को मान्यता देने का संकेत दिया होता। आपका उस ज़िम्मेवारी से पीछे हटना उस पत्रकारीय शिक्षा का दुःखद प्रतिबिम्ब है जिसकी आप वकालत करते हैं।

हम सफीना नबी के साथ खड़े हैं। हम विश्वविद्यालय से अनुरोध करना चाहेंगे कि विद्वता मूल्यों का पालन करते हुए यह निर्णय वापस लें, सार्वजनिक रूप से माफी मांगें और सफीना नबी को पुरस्कार दें जिसकी कि वह सही मायने में हकदार हैं।”

NWMI ने संस्थान के आधिकारिक बयान कि सफीना नबी के ‘विवादास्पद’ विचारों और नज़रिये से विवाद खड़े होने की संभावना है, को अपमानजनक और अस्वीकार्य करार दिया है। NWMI के अनुसार यह पत्रकारों की सवाल करने और मुद्दे, भले वह कितने भी अलोकप्रिय क्यों न हों, उठाने की जिम्मेदारी को ही नकारता है।

पूरा मामला क्या है?

द वायर पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार संस्थान ने सफीना नबी को 18 अक्टूबर को पुणे में एक समारोह में यह पुरस्कार देने की घोषणा की थी और उन्हें ईमेल से सूचित भी किया था। लेकिन 16 अक्तूबर को सफीना नबी को बताया गया कि पुरस्कार रद्द किया गया है।

सूत्रों के अनुसार पुरस्कार ‘राजनीतिक दबाव’ में रद्द किया गया हालांकि संस्थान की तरफ से बाद में जारी बयान में कहा गया कि लेखिका के विचार और नज़रिया ‘विवादास्पद’ हैं और भारत सरकार की विदेश नीति के अनुकूल नहीं हैं जिससे ‘अप्रिय विवाद’ उत्पन्न होने की आशंका है।

संस्थान ने अचानक पुरस्कार रद्द करने की सूचना सात-सदस्यीय जूरी को भी नहीं दी थी जिसमें इंडियन एक्सप्रेस के पुणे संस्करण की निवासी संपादक सुनंदा मेहता, टाइम्स ऑफ इंडिया के कार्टूनिस्ट संदीप अधवर्यू और द वायर के संस्थापक संपादक वेणु गोपाल शामिल थे।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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