Sunday, April 28, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023: अशोक गहलोत की 7 गारंटी बीजेपी के लिए यक्ष प्रश्न

नई दिल्ली। राजस्थान विधानसभा चुनाव में किसका पलड़ा भारी होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन राज्य में कांग्रेस और भाजपा दोनों अपनी सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। अशोक गहलोत सरकार द्वारा किए गए कामों को आधार बनाते हुए कांग्रेस भाजपा को पीछे बता रही है तो भाजपा का चुनाव जीतने के पीछे का आत्मविश्वास सबसे बड़ा कारण राज्य की सरकार को दोबारा न चुनने की तीन दशक पुरानी परंपरा है।

1993 में राजस्थान में 10वें राज्य विधानसभा चुनावों के बाद से, राजनीतिक शक्ति नियमित रूप से दो प्रमुख राजनीतिक दलों-भाजपा और कांग्रेस के बीच घूमती रही है। इसलिए, सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या यह पैटर्न आगामी 16वीं विधानसभा चुनाव में कायम रहेगा, जिससे भाजपा की सत्ता में वापसी होगी या, इस प्रवृत्ति से हटकर कांग्रेस फिर से सत्ता पर काबिज होगी?

कांग्रेस अशोक गहलोत सरकार द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन के साथ-साथ 20 नए जिलों और तीन डिवीजनों के निर्माण योजनाओं के कार्यान्वयन से उत्साहित हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पार्टी के लक्ष्य के रूप में “मिशन 156” की घोषणा की है। कांग्रेस ने आखिरी बार 1998 के चुनावों में यह लक्ष्य हासिल किया था।

अशोक गहलोत अपनी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की सफलताओं का ढिंढोरा पीटते हुए पूरे राज्य का दौरा कर रहे हैं। और सचिन पायलट भी अब सचेत रूप से कांग्रेस को दोबारा सत्तारूढ़ करने के प्रयाश में दिख रहे हैं। इस तरह कांग्रेस ने प्रदेश में गुटबाजी को खत्म कर नेतृत्व के मुद्दे को हल कर लिया है। वहीं भाजपा में अब भी गुटबाजी और नेतृत्व का मामला हल नहीं हो सका है। भाजपा शीर्ष नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को न तो नाराज करना चाहती है, और न ही उन्हें सारा अधिकार देना चाहती है। वसुंधरा के साथ राज्य में करीब एक दर्जन लोग मुख्यमंत्री के दावेदार हैं।

राजस्थान में चुनावी दंगल के बीच नेतृत्व के अलावा मुद्दों की भी चर्चा हो रही है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि आखिर इस विधानसभा चुनाव का मुद्दा क्या है। राज्य की राजनीति किन मुद्दों के इर्द-गिर्द घूम रही है।

भाजपा की नजर में सबसे बड़ा मुद्दा सत्ता विरोधी लहर (Anti-incumbency) है। गहलोत सरकार में कोई बड़ा घोटाला न होने या केंद्रीय एजेंसियों की कई छापेमारी के बावजूद किसी कांग्रेसी नेता पर गिरफ्तारी का दाग न लगने के कारण बीजेपी पेपर लीक, महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर उतर आई है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि भाजपा के पास कांग्रेस के विरोध में कुछ खास नहीं है। फिलहाल, मतदान से पहले राजस्थान के राजनीतिक परिदृश्य पर शीर्ष पांच मुद्दे इस प्रकार हैं:

क्या राजस्थान में है सत्ता विरोधी लहर ?

पिछले कुछ चुनावों के विपरीत अशोक गहलोत अपनी कई कल्याणकारी योजनाओं और पार्टी के भीतर और बाहर अपने विरोधियों को बार-बार मात देने में अपनी सफलता के कारण कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे हैं। लेकिन गहलोत और सचिन पायलट के सत्ता संघर्ष के दौरान कुछ विधायकों की भूमिका ने उन्हें काफी अलोकप्रिय कर दिया है।

2018 में विधानसभा चुनाव में भाजपा का एक अनौपचारिक नारा जो लोकप्रिय हुआ, वह था: “मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं।” इस बार भी ऐसा ही एक नारा वायरल हो रहा है: “गहलोत तुझसे बैर नहीं, मंत्री/विधायक तेरी खैर नहीं।”

अपनी एक बातचीत में, गहलोत ने स्वीकार किया कि उन्होंने नारा सुना था। हालांकि, पार्टी ने अपने लगभग सभी मौजूदा विधायकों को रिपीट किया है और अब तक केवल नौ विधायकों को हटाया है।

पेपर लीक मुद्दा और बेरोजगारी का कितना असर

राज्य सरकार के अनुसार, 2019 से 2022 के बीच राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) द्वारा आयोजित आठ परीक्षाएं पेपर लीक के कारण रद्द कर दी गईं। इसके चलते पेपर लीक के संबंध में कम से कम 15 एफआईआर दर्ज की गईं और कम से कम 273 लोगों की गिरफ्तारी हुई। धोखाधड़ी के मामलों में, इसी अवधि के दौरान 160 और एफआईआर दर्ज की गईं।

राज्य में बेरोजगारी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उक्त 8 परीक्षाओं के लिए 33,31,698 लोग पंजीकृत हुए थे। हालांकि कई लोग एक से अधिक परीक्षाओं के लिए पंजीकरण कराते हैं, जिसके कारण एक नाम को कई बार गिना जाता है, फिर भी यह संख्या बहुत अधिक है, जो बेरोजगारी संकट का संकेत है।

फरवरी 2023 तक राज्य सरकार के पास पंजीकृत बेरोजगार लोगों की संख्या 18,40,044 थी, जिनमें से 14,40,916 स्नातक और 1,01,956 स्नातकोत्तर थे। 2018 से फरवरी 2023 के बीच राज्य सरकार ने बेरोजगारी भत्ते के तौर पर 1,927 करोड़ रुपये दिए।

जबकि कांग्रेस को यह बताने में परेशानी हो रही है कि लगभग हर बड़े राज्य में पेपर लीक हो रहे हैं, राजस्थान में भाजपा के आक्रामक अभियान के कारण इस मुद्दे ने तूल पकड़ लिया है – कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने खुद इसे उठाकर एक हद तक हवा दे दी है।

गहलोत सरकार कई बार नैरेटिव को नियंत्रित करने की असफल कोशिश कर चुकी है। इस साल की शुरुआत में, पेपर लीक मामलों में दोषी ठहराए गए लोगों को आजीवन कारावास की सजा देने के लिए एक अधिनियम लाया गया। लेकिन इससे बमुश्किल कोई हलचल मची।

इस वर्ष 21 लाख से अधिक पहली बार वोट देने वाले मतदाताओं के अलावा, 20 और 30 वर्ष के लाखों लोग पेपर लीक से प्रभावित हुए हैं, उनमें से कई देरी के कारण पात्र आयु पार कर रहे हैं। कांग्रेस को डर है कि वे अपने वोट का इस्तेमाल अपना गुस्सा निकालने के लिए कर सकते हैं।

सांप्रदायिकता और हिंदुत्व का मुद्दा

भाजपा इस बार अस्मिता की राजनीति पर बड़ा दांव लगा रही है। अन्य लोगों के अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने पिछले साल पैगंबर पर टिप्पणियों को लेकर उदयपुर के दर्जी कन्हैयालाल का सिर काटने का मुद्दा उठाया था। इस साल की शुरुआत में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने के बाद अपने पहले संबोधन में, सीपी जोशी ने कन्हैया लाल की हत्या में राज्य सरकार को दोषी ठहराया।

भाजपा राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा मुस्लिम समुदाय के चार सदस्यों को बरी करने जैसे मामलों को भी उठा रही है, जिन्हें 2008 के जयपुर बम विस्फोटों पर 2019 में मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसमें 71 लोग मारे गए थे और 185 घायल हुए थे। भाजपा कांग्रेस को घेरने के लिए सनातन धर्म विवाद को भी उजागर कर रही है।

भाजपा ने लोकसभा सांसद रमेश बिधूड़ी को टोंक जिले के भाजपा के चुनाव प्रभारी के रूप में नियुक्त करने की घोषणा की, जहां एक बड़ी मुस्लिम आबादी है और साथ ही बिधूड़ी कुछ दिन पहले ही संसद में एक मुस्लिम सांसद के खिलाफ सांप्रदायिक टिप्पणियां कीं।

कांग्रेस मतदाताओं से कहती रही है कि वे भावनात्मक मुद्दों से विचलित न हों। राजस्थान के दौसा में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा, “आपको बीजेपी के नजरिए को समझना होगा। हर चुनाव में वे केवल धर्म और जाति की बात करते हैं, जो आपके दिल और भावनाओं से जुड़े होते हैं।”

लेकिन पार्टी एक और मुद्दे को लेकर चिंतित है जो भाजपा को गति दे रहा है – वह है जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन। इसके निर्माण के लिए पत्थर राजस्थान में खोदे जाने के कारण, भाजपा नेताओं के भाषणों में इसका प्रमुखता से जिक्र होने की उम्मीद है।

महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था का सवाल

चुनाव में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के अलावा अब एक प्रमुख मुद्दा महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था भी है। राजस्थान ही नहीं दूसरे राज्यों में महिला सुरक्षा औऱ कानून व्यवस्था का प्रश्न राजनीति के केंद्र में प्रमुखता से आया है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2018 के आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में राजस्थान पांचवें स्थान पर है। वहीं भाजपा शासित उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर था। 2019 के बाद, राजस्थान दूसरे स्थान पर पहुंच गया और 2020 और 2021 में भी यही स्थिति रही। गहलोत सरकार इसे काफी हद तक एफआईआर के अनिवार्य पंजीकरण को जिम्मेदार ठहराया है।

लेकिन बीजेपी ने इस डेटा को हथियार बनाकर दावा किया है कि राजस्थान महिलाओं के लिए असुरक्षित हो गया है। इस संबंध में कांग्रेस को कमजोर बनाने वाली बात यह है कि राज्य में वरिष्ठ महिला नेताओं की अनुपस्थिति है। भाजपा के साथ पहले वसुंधरा राजे और दीया कुमारी इस तरह के मुद्दों को लगातार उठा रही हैं। प्रियंका गांधी राजस्थान में अपनी लगातार रैलियों से इस कमी को पूरा करने की कोशिश कर रही हैं।

कांग्रेस के लिए, जनता को यह समझाना एक कठिन काम है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों में एफआईआर की संख्या में वृद्धि मुख्य रूप से हर मामले को दर्ज करने के सरकार के कदमों के कारण है। इसी कारण से, यह समझाने में भी कठिनाई हो रही है कि राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच में लगने वाला औसत समय 2019 में 138 दिन से गिरकर 2023 में 56 दिन हो गया है।

कल्याणकारी योजनाएं से होगा कांग्रेस को लाभ ?

सत्ता विरोधी लहर के खिलाफ गहलोत की सबसे बड़ी ढाल लगभग हर वर्ग के कुछ लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाएं हैं। पिछले दो-तीन वर्षों में, वह राज्य के लोगों के उत्थान के लिए काम करने के लिए समर्पित व्यक्ति की छवि बनाने में कामयाब रहे हैं, भले ही योजनाएं कितनी भी प्रभावी क्यों न हों।

सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रमुख पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली हो गई है। महिलाओं के लिए, इंदिरा गांधी स्मार्टफोन योजना, तलाकशुदा महिलाओं या विधवाओं के लिए एकल नारी सम्मान पेंशन, मेधावी बच्चों के लिए स्कूटर और छात्रवृत्ति, मुफ्त सैनिटरी नैपकिन, साथ ही आदिवासियों, पिछड़े वर्गों और महिलाओं के विशिष्ट वर्गों को लक्षित करने वाले कार्यक्रम हैं।

किसानों के लिए सरकार का कहना है कि सत्ता में आने के बाद से उसके सहकारिता विभाग ने 15,427 करोड़ रुपये के अल्पकालिक ऋण और 365.10 करोड़ रुपये के मध्यम और दीर्घकालिक ऋण माफ किए हैं। ढेलेदार बीमारी से मरने वाले दुधारू मवेशियों के लिए 40,000 रुपये की आर्थिक सहायता जैसी योजनाएं भी हैं।

इनके अलावा, 25 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा, 500 रुपये में घरेलू सिलेंडर, स्वास्थ्य का अधिकार, 100 यूनिट तक मुफ्त घरेलू बिजली, मुफ्त अन्नपूर्णा खाद्य पैकेट योजना, न्यूनतम गारंटीकृत आय, गिग वर्कर्स बिल, इंदिरा रसोई योजना में सब्सिडी वाला भोजन, शहरी रोजगार योजना, 1,000 रुपये की न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा पेंशन, आदि।
कल्याणकारी योजनाओं पर बड़ा दांव लगाते हुए, कांग्रेस ने सत्ता में वापस आने पर सात और “गारंटियों” की घोषणा की है। जबकि भाजपा के ऐसी कोई योजना नहीं है।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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