(दिल्ली पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव के लिखे पत्र का रिटायर्ड आईपीएस और मशहूर पुलिस अफसर जूलियो रिबेरो ने जवाब दिया है। ईमेल के जरिये भेजे गए इस जवाब में उन्होंने कहा है कि श्रीवास्तव ने उनके कुछ सवालों का जवाब नहीं दिया। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया है कि अगर वह श्रीवास्तव की जगह पर दिल्ली पुलिस के कमिश्नर होते तो इस मसले पर क्या करते। पेश है उनका पूरा जवाब-संपादक)
प्रिय श्री श्रीवास्तव,
आप का सदाशयता के साथ व्यक्तिगत रूप से मुझे फोन कर अपनी स्थिति स्पष्ट करना और दो दिन बाद मुझे ईमेल भेजना एक प्रशंसनीय कदम है और आप की जगह मैं होता तो मैं भी यही करता।
कुछ संदेह मैंने अपने मूल खुले पत्र में उठाये थे जिन पर आप ने कुछ नहीं कहा है। मैं यह समझता हूं कि यह कठिन बल्कि सचमुच में असंभव है कि उन तीन भाजपा नेताओं जिनके नाम मैंने लिए हैं और जिनको कुछ भी करने की छूट है, के कृत्य को उचित ठहरा दिया जाए।
उनको छूट है कि वे उन सबको जो कुछ गलत समझते हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन में शामिल हैं को कुछ भी कह दें, बेइज्जत कर दें और धमकी दे डालें। यही सब अगर मुस्लिम या वामपंथी होते तो पुलिस अब तक उन पर देशद्रोह का इल्जाम लगा देती।
आप से फोन पर बात करने और आप का पत्र पढ़ने के बाद मैंने निश्चय किया है कि मैं भी आप की ही तरह सोच कर देखूं। पर मैं इस संदेह से कैसे मुक्त हो जाऊं, जब आप के अन्य रिटायर्ड आईपीएस बंधु, उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगे की विवेचनाओं पर सन्देह कर रहे हैं ? मैं भी उन सभी 753 मुकदमों विशेषकर षड्यंत्र के उन मुकदमों, जिन्हें आप के स्पेशल सेल ने दर्ज किया है, में अधिकृत सुबूतों के बाद जल्दी से जल्दी आरोप पत्र अदालत में दाखिल कर देता।
लेकिन मैं यूएपीए के केस में नियत सीमा के एक या दो दिन शेष रहने तक चार्जशीट दाखिल करने के लिये मुकदमे को लंबा नही खींचता और न ही इस के लिये कोई औचित्य ढूंढता। मैंने आपके ईमेल में यह पाया कि आप को उन तीन व्यक्तियों पर जिन्हें मैंने सच्चा देशभक्त कह कर संबोधित किया है और जिनके नाम जो मैंने अपने पत्र में लिखे हैं कि देशभक्ति पर संदेह है। वे तीन हैं हर्ष मंदर, प्रोफेसर अपूर्वानन्द और स्वयं मैं। मैंने इनमें से किसी के बारे में बिना सब कुछ जाने नहीं लिखा है। मैंने यह पाया है कि वर्तमान सरकार गांधी के मार्ग पर चलने वाले किसी के साथ नहीं है।
ससम्मान,
जुलियो रिबेरो
आईपीएस ( रिटायर्ड ) 53, महाराष्ट्र