माओवादी के नाम पर बगैर साक्ष्य के 5 वर्षों से जेलों में बंद हैं सामाजिक कार्यकर्ता, FIR के बाद भी BJP सांसद छुट्टा घूम रहा है

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आज से ठीक 5 साल पहले पुणे पुलिस ने 6 जून 2018 को मुंबई, नागपुर और दिल्ली में एक साथ छापा मारकर कुछ लोगों को हिरासत में लिया था। मुंबई से प्रगतिशील मराठी पत्रिका विद्रोही के संपादक सुधीर धवले, जो भीमा-कोरेगांव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान के प्रमुख आयोजकों में से एक थे। नागपुर से तीन व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया था, उनमें इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ पीपल्स लायर्स के महासचिव वकील सुरेन्द्र गाडलिंग, नागपुर विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष शोमा सेन, भारत जन आंदोलन के विस्थापन विरोधी कार्यकर्ता महेश राउत थे।

दिल्ली से राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए गठित कमेटी के जन संपर्क सचिव रोना विल्सन को गिरफ्तार किया गया। इन सभी शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के ऊपर यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम, 1967) की धारा लगाई गई। लेकिन आज तक इन्हें विचाराधीन बंदियों का जीवन जीना पड़ रहा है और इनके खिलाफ लगाये गये आरोपों के सुबूत की कॉपी तक इन्हें या इनके वकीलों को सरकार की ओर से मुहैया नहीं किया जा सका है।

इतना ही नहीं 28 अगस्त, 2018 को इसी सिलसिले में कुछ और लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें कवि वारवरा राव, अधिवक्ता एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भरद्वाज, अरुण फेरेरा, वेरनॉन गोंजाल्विस और गौतम नवलखा जैसे प्रतिष्ठित एवं नागरिक आंदोलनों से जुड़े लोग शामिल हैं। इन्हें गिरफ्तार कर मुंबई की तलोजा जेल में डाल दिया गया था।

इसी श्रृंखला में आने वाले दिनों में दलित लेखक आनंद तेलतुम्बडे, फादर स्टेन स्वामी, हनी बाबू, सागर गोरखे, रमेश गैचोर और कबीर कला मंच की ज्योति जगताप को पुलिस ने एक-एक कर गिरफ्तार किया। गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बडे ने 14 अप्रैल 2020 को एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण किया। हनी बाबू की गिरफ्तारी 28 जुलाई को और सितंबर में रमेश गैचोर, सागर गोरखे और ज्योति जगताप को गिरफ्तार किया गया था। 8 अक्टूबर 2020 को फादर स्टेन स्वामी को हिरासत में लिया गया, जिनकी 5 जुलाई 2021 को न्यायिक हिरासत में ही मौत हो गई थी।

इन गिरफ्तारियों के बारे में सारे देश में काफी चर्चा रही और बिना चार्जशीट के एनआईए के तहत कार्रवाई किस गति से आगे बढ़ रही है, के बारे में तमाम सवाल लगातार उठे हैं, लेकिन सरकार की ओर से इस पूरे मामले को अपारदर्शी बनाये रखा गया है। इनके वकील बरुन कुमार के अनुसार, “छह साल होने जा रहे हैं, लेकिन अभी तक अभियोजन पक्ष की ओर से जिन महत्वपूर्ण सबूतों को इकट्ठा किया गया था, उसकी कॉपी आरोपियों को नहीं सौंपी गई है। केंद्रीय जांच एजेंसियों को मई 2022 में ही एनआईए की विशेष अदालत ने इस बात के निर्देश दिए थे कि आरोपियों को सबूतों की कॉपी सौंप दी जाए। लेकिन आजतक इस काम को नहीं किया गया।”

वहीं स्पेशल पब्लिक प्रासीक्यूटर प्रकाश शेट्टी ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए कहा है कि हमने आरोपी से जुड़े सुबूतों की अधिकांश प्रतिलिपि उन्हें सौंप दी है। हो सकता है कि इनमें से कुछ छूट गया हो, लेकिन अधिकांश सामग्री उनके साथ साझा की जा चुकी है।

इन अंडरट्रायल बंदियों में से अधिकांश 60 की उम्र को पार कर चुके हैं, और विभिन्न गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। इन सभी का सार्वजनिक जीवन नागरिक आंदोलनों, जल-जंगल-जमीन-आदिवासी समूहों के संरक्षण से जुड़ा हुआ है। लेकिन इन्हें आज खुद पता नहीं है कि उनके खिलाफ लगाये गये आरोपों का आधार क्या है।

ये गिरफ्तारियां 31 दिसंबर 2017 को महाराष्ट्र में पुणे के समीप भीमा-कोरेगांव में एक विशाल जनसभा की वजह से की गई थीं, जिसमें महाराष्ट्र सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों से हजारों लोगों ने शिरकत की थी। यह भीमा-कोरेगांव में 200 वर्ष पूर्व 1 जनवरी 1818 के दिन एक युद्ध में ब्रिटिश सेना की ओर से पेशवा राज के खिलाफ मोर्चे पर डटे कुछ सौ महार सैनिकों की 20,000 पेशवाई सेना पर जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जा रहा था।

संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर ने पहली बार अपनी अगुआई में भीमा-कोरेगांव में सभा की, जिसे बाद के दिनों में वार्षिक कार्यक्रम के तौर पर मनाया जाता रहा है। ऐसा अनुमान है कि भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर करीब 50,000 लोगों ने इस समारोह में शिरकत की थी। सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश पी बी सामंत की अध्यक्षता में भीमा-कोरेगांव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान में 260 संगठनों ने शिरकत की थी।

अन्य प्रमुख राजनीतिक हस्तियों में प्रकाश आंबेडकर और महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति कोलसे पाटिल शामिल थे। इस कार्यक्रम को नव पेशवाई या नई ब्राह्मणवादी शक्तियों के राजसत्ता पर मजबूत पकड़ स्थापित करने के खिलाफ मुहिम के रूप में पेश किया गया, हालांकि यलगार परिषद के इस कार्यक्रम में आयोजन के दौरान कोई उपद्रव या हिंसा की सूचना नहीं थी।

लेकिन कई दक्षिणपंथी समूहों के द्वारा इस कार्यक्रम का विरोध किया जा रहा था। अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा, राष्ट्रीय एकात्मता राष्ट्र अभियान, हिंदू अघाड़ी सहित पेशवा के वंशजों ने इसे “राष्ट्र-विरोधी” और “जातिवादी” करार दिया। सरकार एवं दक्षिणपंथी समूह इस विशाल जनसमूह के जुटान से संशकित और हिल चुके थे, और आरएसएस एवं भाजपा से अभिन्न रूप से जुड़े संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे के द्वारा इन शक्तियों को भड़काकर पूर्व नियोजित तरीके से भगवा झंडों के साथ वापस जा रही भीड़, जिसमें बड़ी संख्या में दलित थे, के ऊपर हमले किये गये। इसके जवाब में महाराष्ट्र में व्यापक विरोध देखने को मिला था और 3 जनवरी को महाराष्ट्र बंद के आह्वान को भारी जनसमर्थन प्राप्त हुआ था।

यही वह बिंदु था जहां से इस पूरे आयोजन के खिलाफ एक नैरेटिव गढ़ने के उद्धेश्य से काम शुरू हुआ, हालांकि इस बीच संभाजी भिड़े और एकनाथ एकबोटे के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गई थी। उसी दौरान संभाजी भिड़े को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुरु के रूप में भी समाचारपत्रों में बताया गया था। कट्टर मराठा हिंदुत्व पर आधारित संभाजी भिड़े फिलहाल श्री शिवप्रतिष्ठान हिन्दुस्थान नामक संस्था चलाते हैं, किंतु उनकी शुरुआत भी आरएसएस से हुई है।

भिड़े और एकबोटे के खिलाफ मामला अदालत में है, लेकिन उन्हें हिरासत में लेने के बारे में सरकार को सुध नहीं आई। इनके खिलाफ एफआईआर ने हिंदुत्व की शक्तियों को नाराज कर दिया था, जिसे दूर करने के लिए एल्गार परिषद में शामिल दो वक्ताओं जिग्नेश मेवानी और उमर खालिद के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई थी। 8 जनवरी के दिन सुधीर धवले और पांच अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इसी एफआईआर को आधार बनाकर 6 जून 2018 को सुधीर धवले, सुरेन्द्र गाडलिंग, रोना विल्सन, शोमा सेन एवं महेश राउत को गिरफ्तार किया गया था, जबकि 8 जनवरी को दाखिल एफआईआर में केवल सुधीर धवले का नाम आया था।

6 जून 2018 की गिरफ्तारी में पुणे पुलिस ने एल्गार परिषद के माओवादी गुटों से लिंक बताते हुए पीएम मोदी की हत्या की साजिश का पत्र लीक करते हुए मामला बनाया, और इसके बाद इस पूरे मामले को देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताते हुए हाई प्रोफाइल बना दिया। एनआईए और यूएपीए के जरिये 5 साल से बिना किसी अदालती कार्रवाई के सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को यदि संभव बनाया जा सकता है, उन्हें जेल ही सड़ने और घुट-घुटकर मर जाने के लिए अभिशप्त कर दिया जाता है तो आम नागरिक की क्या बिसात रह जाती है।

बाद के दौर में तो और भी खुलासे हुए हैं, जो बेहद गंभीर और चिंताजनक हैं। इसमें आरोपियों के लैपटॉप में मालवेयर के जरिये इनबॉक्स में एक मेल घुसा देने और हैक कर मनचाहे मजमून को आरोपी के नाम से जारी दिखाया जा सकता है। अमेरिका स्थित एक फॉरेंसिक एनालिसिस ग्रुप ने अप्रैल 2021 में पाया कि रोना विल्सन के कम्प्यूटर में बाहर से एक डॉक्यूमेंट प्लांट किया गया था। विल्सन ने इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका डालकर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी थी, और इसके लिए एसआईटी जांच की मांग की थी। लेकिन कुछ नहीं हुआ।

आज भाजपा के एक सासंद के खिलाफ देश की ओलिंपिक मेडलिस्ट सहित तमाम अंतर्राष्ट्रीय महिला कुश्ती पहलवान जनवरी से दो बार राजधानी में धरने पर बैठ चुकी हैं, जिन्हें देश के करोड़ों-करोड़ लोग समर्थन कर रहे हैं। एक नाबालिग एथलीट ने भी दिल्ली पुलिस के समक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है, और सांसद के खिलाफ पोस्को का मामला दर्ज है।

इस बारे में दिल्ली, हरियाणा ही नहीं मुंबई, कोलकाता सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के द्वारा बृजभूषण की जल्द से जल्द गिरफ्तारी की मांग को लेकर प्रदर्शन किये जा रहे हैं। किसानों की ओर से पश्चिमी यूपी और हरियाणा में जगह-जगह महापंचायतें बुलाई जा रही हैं। आज महिलाओं के लिए अपनी बेटियों को खेल के लिए प्रोत्साहित करने पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लग गया है। इस सबके बावजूद भाजपा और केंद्र सरकार अपने आरोपी सासंद को पार्टी से निकालने या पुलिस कार्रवाई से हीला-हवाली कर रही है।

आज 6 जून का दिन इन दोनों घटनाओं की तुलना करना और राजसत्ता के असली चरित्र और विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की वास्तविकता को समझने का दिन है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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