Saturday, April 27, 2024

चीन और अमेरिका की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति : निर्मला सीतारमण के ढोल की पोल

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले दिनों एक ट्वीट में शेखी बघारने के अंदाज में बताया कि “भारत की अर्थव्यवस्था, जो 2014 में 2 ट्रिलियन डॉलर थी, 2023 में 3.75 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी है। इस तरह से भारत उस समय की 10वीं से आगे बढ़कर आज 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत को अब वैश्विक अर्थव्यवस्था का चमकता सितारा कहा जाने लगा है।” हालांकि बाद में इस ट्वीट को हटा लिया गया।

दरअसल ‘आईएमएफ’ ने अनुमान लगाया है कि 2023-24 में भारत की जीडीपी बढ़कर 3.75 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी। वित्तमंत्री का ट्वीट इसी अनुमान के उत्साह में आया था। लेकिन, फिर उस ट्वीट को हटाना क्यों पड़ा?

दरअसल, सरकार अर्थव्यवस्था के तेजी से बढ़ने का ढोल पीटने का कोई मौक़ा गंवाती नहीं है, जबकि आंकड़े इसके उलट कहानी बताते हैं।

भारत की जीडीपी, मौजूदा अमेरिकी डॉलर में, 2013-14 में 1.86 ट्रिलियन डॉलर थी। यह बढ़कर 2022-23 में 3.39 ट्रिलियन डॉलर हो गयी है। हमारी वार्षिक चक्रवृद्धि जीडीपी वृद्धि 2013-2022 की अवधि में 6.9 प्रतिशत रही है, जबकि 2018-19 और 2022-23 के बीच चार वर्षों के दौरान यह 5.85 प्रतिशत रही है। जब हम 2013-14 के पहले की जीडीपी से इसकी तुलना करते हैं तो मौजूदा विकास दर बहुत मामूली लगने लगती है।

इस वृद्धि दर की तुलना में आर्थिक सुधार शुरू होने के एक साल बाद यानी 1990-91 से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के सत्ता में आने से एक साल पहले, यानी 2013-14 तक भारत की वार्षिक चक्रवृद्धि जीडीपी वृद्धि दर 23 साल की अवधि में 7.81 प्रतिशत थी। 2003-04 में हमारी अर्थव्यवस्था 0.52 ट्रिलियन डॉलर थी, जो 2013-14 में 1.86 ट्रिलियन डॉलर हो गयी। जीडीपी की यह वृद्धि दर 13.59 प्रतिशत थी!

इसकी तुलना पिछले 4 साल की 5.85 प्रतिशत की वृद्धि दर से करने पर भारत कोई चमकता सितारा नहीं दिखता है। सन् 2000 के बाद के डेढ़ दशकों का यह वह दौर था, जब भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर, लगातार दोहरे अंकों में बने रहने की भविष्यवाणियां की जा रही थीं। लेकिन अब हालत यह है कि हम 6 प्रतिशत के आसपास की वृद्धि दर पर ही संतुष्ट हो चुके हैं, और कमाल तो यह है कि हम जबर्दस्ती वैश्विक अर्थव्यवस्था का चमकता हुआ सितारा कहलाने के लिए उतावले हैं। लेकिन वास्तविक आंकड़ों पर बात करने से शेखी बघारने के रंग में भंग पड़ जाता है।

आइए अब अमेरिकी और चीनी अर्थव्यवस्थाओं से भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना कर लेते हैं। पिछले कुछ समय से काफी हंगामा हो रहा है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी में फंसी हुई है, जबकि भारत दुनिया को मात देने वाली जीडीपी वृद्धि दर्ज कर रहा है। 2019 में, कोविड महामारी से एक साल पहले, वैश्विक जीडीपी 87 ट्रिलियन डॉलर से थोड़ा अधिक थी, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका की जीडीपी 21.38 ट्रिलियन डॉलर, चीन की 14.34 ट्रिलियन डॉलर और भारत की जीडीपी 2.84 ट्रिलियन डॉलर थी।

इन तीन वर्षों में अमेरिका की जीडीपी में 4.08 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि हुई, और चीन की जीडीपी में 3.76 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि हुई है। वहीं भारत की जीडीपी में केवल 0.55 ट्रिलियन डॉलर ही बढ़े हैं। भारत को अपनी सनक के चलते पूरे देश को लॉकडाउन में झोंकने के कारण एक साल के लिए ऋणात्मक वृद्धि, यानि वास्तव में बढ़ने की बजाय अर्थव्यवस्था के सिकुड़ने का भी सामना करना पड़ा, जबकि चीनी अर्थव्यवस्था के साथ ऐसा नहीं हुआ। इस दौरान अमेरिका और चीन दोनों की जीडीपी में जितनी वृद्धि हुई, वह भी भारत की 2022-23 की कुल जीडीपी (3.39 ट्रिलियन डॉलर) से भी ज्यादा थी।

भारत की मौजूदा 6.08 प्रतिशत की वृद्धि दर की तुलना में मौजूदा अमेरिकी 5.99 प्रतिशत और चीनी 8.07 प्रतिशत की वृद्धि दरें भी इन अर्थव्यवस्थाओं के बड़े आकारों के चलते काफी प्रभावशाली हैं, जो बताती हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था की इस मामूली वृद्धि के बावजूद उसका अमेरिकी और चीनी अर्थव्यवस्थाओं से फासला लगातार बढ़ता जाएगा, और उनकी अर्थव्यवस्थाओं का आधार बहुत बड़ा होने की वजह से यह फासला बहुत तेजी से बढ़ता जाएगा, जिससे उनके क़रीब पहुंचने की संभावनाएं दूर-दूर तक नहीं हैं।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के जीडीपी डेटाबेस से पता चलता है कि 2022 में विश्व जीडीपी मौजूदा अमेरिकी डॉलर में 100 ट्रिलियन डॉलर को पार कर गया। यह पहली बार हुआ है। सन् 2000 में वैश्विक जीडीपी लगभग 34 ट्रिलियन डॉलर थी, जो पिछले 20 वर्षों में तीन गुना हो गयी है। कोविड-19 के सभी व्यवधानों को पार करते हुए 2022 में अमेरिकी जीडीपी बढ़कर 25.46 ट्रिलियन डॉलर, चीन की जीडीपी 18.1 ट्रिलियन डॉलर और भारत की जीडीपी 3.39 ट्रिलियन डॉलर हो गई है। इस तरह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था आज ही हमसे 22.07 ट्रिलियन डॉलर बड़ी (भारत से लगभग 8 गुनी) है और चीनी अर्थव्यवस्था 14.72 ट्रिलियन डॉलर बड़ी (भारत से लगभग 5 गुने से ज्यादा बड़ी) है।

‘आईएमएफ’ के अनुमानों के अनुसार 2028 में, जब भारतीय अर्थव्यवस्था 5.58 ट्रिलियन डॉलर होगी, उस समय चीन की अर्थव्यवस्था 27.49 ट्रिलियन डॉलर और अमेरिकी अर्थव्यवस्था 32.35 ट्रिलियन डॉलर की हो चुकी होगी। उस समय चीन हमसे 21.91 ट्रिलियन डॉलर आगे जा चुका होगा, और अमेरिका 26.77 ट्रिलियन डॉलर आगे जा चुका होगा। चीनी अर्थव्यवस्था अमेरिकी अर्थव्यवस्था से अपने अंतर को लगातार कम करती जा रही है।

आज भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और अनुमानों के मुताबिक 2027 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए यह तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। लेकिन भारत की आबादी को देखते हुए प्रति व्यक्ति जीडीपी के लिहाज से हमारी स्थिति कुछ खास शेखी बघारने लायक नहीं रहने वाली है। 2028 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 3,720 डॉलर होगी, और हम तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद निम्न मध्य आय वाले देशों में ही बने रहेंगे, जबकि उस समय अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय 93,000 डॉलर और चीन की 19,600 डॉलर होगी। यानि उस समय एक औसत अमरीकी एक भारतीय से 25 गुना ज्यादा कमा रहा होगा, और एक औसत चीनी सवा पांच गुना।

आज भारत की प्रति व्यक्ति आय 2,600 डॉलर, बांग्लादेश की 2,470 डॉलर, चीन की 13,720 डॉलर, अमेरिका की 80,030 डॉलर, जापान की 35,390 डॉलर, यूके की 46,370 डॉलर, जर्मनी की 51,380 डॉलर और फ्रांस की 44,410 डॉलर है। ये आंकड़े यह बताते हैं कि जापान, जर्मनी, यूके या फ्रांस अपने भू-भाग और जनसंख्या के लिहाज से इतने छोटे देश हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था का इनको पीछे छोड़ना बहुत मामूली बात है। दरअसल बड़ी बात होगी प्रति व्यक्ति आय में इन्हें पीछे छोड़ना जिसके आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे।

अगर हमारी अर्थव्यवस्था में सब कुछ ठीक होता तो भारतीय रुपये की क़ीमत इतनी गिरी क्यों होती? 31 दिसंबर 2019 को 1 अमरीकी डॉलर 69 रुपये का था। 31 दिसंबर 2022 को 1 डॉलर 83 रुपये का हो गया। 14 रुपये, यानि 20 प्रतिशत अवमूल्यन ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दिया है। एक मजबूत हो रही अर्थव्यवस्था की मुद्रा मजबूत होती जाती है।

बड़े-बड़े भ्रामक दावे करने से ज्यादा अच्छा होगा कि भारत जीडीपी में 8-10 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर को हासिल करने और अगले 20-25 वर्षों तक निरंतर उसे बनाये रखने को अपना लक्ष्य बनाये। अपनी पीठ खुद ठोंकते रहने और खुद को कभी चमकता हुआ सितारा घोषित करने और कभी विश्वगुरु का दावा ठोंकते रहने से हमारी हीनताग्रंथि ही उजागर होती है और जगहंसाई भी होती है।

(स्रोत : आईएमएफ, सुभाष चंद्र गर्ग, शेखर गुप्ता, प्रस्तुति शैलेश)

जनचौक से जुड़े

1 COMMENT

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Puranjay Kumar Sharma
Puranjay Kumar Sharma
Guest
9 months ago

Excellent

Latest Updates

Latest

Related Articles