Sunday, April 28, 2024

डीएम वाराणसी के फैसले को सर्व सेवा संघ ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती, 10 जुलाई को सुनवाई

वाराणसी के सर्व सेवा संघ भवन मामले में हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट से उम्मीदें जुड़ गई हैं। याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण की दलील पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार 10 जुलाई को याचिका की सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। सीजेआई की विशेष पीठ वाराणसी के जिलाधिकारी के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने को सहमत हो गई है। अब 10 जुलाई सोमवार को केस में वादी का पक्ष सुनकर अग्रिम कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। हालांकि तब तक प्रशासन को किसी भी कार्रवाई के लिए रोक दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट में संगठन के अध्यक्ष राम धीरज की ओर से याचिका दायर की गई। इसमें सुप्रीम कोर्ट गांधीवादी मूल्यों के प्रचार में लगी सोसाइटी ‘सर्व सेवा संघ’ की एक इमारत को गिराने का आदेश देने के वाराणसी के जिलाधिकारी के फैसले को चुनौती दी गई है।

चीफ जस्टिस (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने वादी के वकील प्रशांत भूषण की दलीलों का संज्ञान लिया। दलील के बाद कहा कि जिलाधिकारी को सूचित किया जाएगा कि शीर्ष अदालत सोमवार को याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत है और सुनवाई के दौरान इमारत को ढहाया नहीं जाएगा। भूषण ने इस मामले की तत्काल सुनवाई और इमारत को गिराने के आदेश पर रोक लगाने की अपील की।

प्रशांत भूषण ने सीजेआई से स्टे का अनुरोध करते हुए कहा कि महात्मा गांधी के विचारों और दर्शन का प्रचार करने के लिए आचार्य विनोबा भावे ने 1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना की थी और अब स्थानीय प्रशासन द्वारा इमारत को ढहाने की कोशिश की जा रही है। संगठन ने वाराणसी जिले में 12.90 एकड़ भूखंड पर बने ढांचों को गिराने के लिए उत्तर रेलवे द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया था। संगठन का कहना है कि वाराणसी के ‘परगना देहात’ में उसके परिसर के लिए जमीन उसने केंद्र सरकार से 1960, 1961 और 1970 में तीन पंजीकृत सेल डीड के माध्यम से खरीदी थी।

राजघाट के सर्व सेवा संघ की जमीन और भवन बचाने के लिए गांधी वादी सत्याग्रह कर रहे हैं। उनका कहना है कि सर्व सेवा संघ भवन महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण और संत विनोबा की विरासत है। इस संगठन की स्थापना देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने की थी। महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी ने इसे बचाने को लेकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को लेटर लिखा। वहीं, प्रियंका गांधी ने इसको लेकर कहा था कि जनता कभी बर्दाश्त नहीं करेगी।

सर्व सेवा संघ और उत्तर रेलवे के बीच जमीन के मालिकाना हक पर चल रहे विवाद में जिलाधिकारी एस. राजलिंगम ने सुनवाई के बाद रेलवे के हक में फैसला दिया है। उन्होंने सर्व सेवा संघ का निर्माण अवैध करार देते हुए जमीन को उत्तर रेलवे की संपत्ति माना है। सर्व सेवा संघ भवन को ध्वस्त करने के लिए उत्तर रेलवे प्रशासन ने 30 जून 2023 की तिथि नियत की, लेकिन इस फैसले का विरोध शुरू हो गया। सर्व सेवा संघ के पदाधिकारियों ने प्रशासन के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल जिसे हाईकोर्ट ने खारिज करते हुए अस्तरीय बताया। याचिका कर्ताओं से निचली अदालत में जाकर मामले का निस्तारण करने की बात कही, जिसे दरकिनार करके याची आज सुप्रीम कोर्ट गए।

गांधी विचार के राष्ट्रीय संगठन सर्व सेवा संघ की स्थापना मार्च 1948 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई थी। विनोबा भावे के मार्गदर्शन में करीब 62 साल पहले सर्व सेवा संघ भवन की नींव रखी गई। इसका मकसद महात्मा गांधी के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था। सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय मंत्री डा. आनंद किशोर ने बताया कि वर्ष 1960 में इस जमीन पर गांधी विद्या संस्थान की स्थापना के प्रयास शुरू हुए। भवन का पहला हिस्सा 1961 में बना था। 1962 में जय प्रकाश नारायण खुद यहां रहे हैं।

अध्यक्ष चंदन पाल के अनुसार, आचार्य विनोबा भावे की पहल पर ये जमीनें सर्व सेवा संघ ने 1960, 1961 एवं 1970 में रेलवे से खरीदी हैं। डिवीज़नल इंजीनियर नार्दन रेलवे, लखनऊ द्वारा हस्ताक्षरित तीन रजिस्टर्ड सेल डीड हैं। यह भवन 3 बार में पूरा बन सका था। जैसे-जैसे जमीनें खरीदी जाती रही, वैसे-वैसे भवन बनता चला गया। करीब 1971 तक यहां निर्माण कार्य 3 बार में पूरा हुआ। दावा है कि यह भवन गांधी स्मारक निधि और जयप्रकाश नारायण द्वारा किए गए दान-संग्रह से बनवाया गया था।

इसके बाद 2007 तक यहां सब कुछ ठीक रहा। इसी दरम्यान रेलवे ने अपने कुछ प्रोजेक्ट के लिए जमीन तलाशना शुरू किया। पुराने दस्तावेजों में, जिस जमीन पर सर्व सेवा संघ बना था, वो जमीन रेलवे के मालिकाना हक में दर्ज मिली। इसके बाद रेलवे ने इन जमीनों पर क्लेम किया। इसके बाद मार्च 2007 में इस भवन पर ताला पड़ गया।

डा. आनंद किशोर के अनुसार ये विवाद जिला न्यायालय (ADJ 10) की कोर्ट में चला गया। 28 मई 2007 को कोर्ट ने वाराणसी के कमिश्नर की अध्यक्षता में एक संचालक मंडल बना दिया। कोर्ट ने कहा कि यही संचालक मंडल इस विवाद में निर्णय देगा। वर्ष 2007 से 14 मई 2023 तक संस्थान पर जिला प्रशासन का ताला बंद रहा, संचालन नहीं किया गया। इसके बाद सर्व सेवा संघ की ओर से लिखित रूप से निवेदन किया गया कि संस्थान की लाइब्रेरी अमूल्य है, किताबें नष्ट हो रही हैं। इसकी जिम्मेदारी सर्व सेवा संघ को दे दी जाए। प्रशासन ने इस भवन के ध्वस्तीकरण की नोटिस चस्पा की है जिस कार्रवाई को कोर्ट ने फिलहाल रोक दिया है।

वर्ष 2020 में काशी रेलवे स्टेशन का डेवलपमेंट होना था। ये जमीन स्टेशन के पास स्थित है। इसलिए इस जमीन का विवाद एक बार फिर चर्चा में आ गया। जमीन के मालिकाना हक पर चल रहा विवाद जिलाधिकारी एस. राजलिंगम की कोर्ट में आया। यहां सुनवाई के बाद रेलवे के हक में फैसला दिया गया। उन्होंने सर्व सेवा संघ का निर्माण अवैध करार देते हुए जमीन को उत्तर रेलवे की संपत्ति माना है। सर्व सेवा संघ भवन को ध्वस्त करने के लिए उत्तर रेलवे प्रशासन ने 30 जून 2023 की तिथि नियत कर दी है।

अध्यक्ष चंदन पाल के अनुसार, 11 अप्रैल 2023 को उत्तर रेलवे लखनऊ ने सर्व सेवा संघ के ऊपर एक मुकदमा किया। मुकदमे के अनुसार सर्व सेवा संघ द्वारा रेलवे से 1960, 1961 एवं 1970 में खरीदी गयी सभी जमीनों का दस्तावेज कूट रचित तरीके से तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि इन दस्तावेजों को कूट रचित कहना आचार्य विनोबा भावे, राधाकृष्ण बजाज, जयप्रकाश नारायण, लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम एवं डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जैसे व्यक्तित्वों पर सवाल उठाने जैसा है।

महात्मा गांधी के पौत्र और प्रमुख शिक्षाविद राजमोहन गांधी ने दादा की विरासत को बचाने की गुहार केंद्र और राज्य सरकार से लगाई है। उन्होंने कहा कि इस साधना केन्द्र का उद्घाटन स्व. लाल बहादुर शास्त्री ने किया था। गांधीवादी विचारों के इस अध्ययन केंद्र को नहीं हटाया जाना चाहिए।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार एवं कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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