नहीं रहे हरित क्रांति के जन्मदाता

नई दिल्ली। देश में हरित क्रांति के जन्मदाता डॉ. एमएस स्वामीनाथन का निधन हो गया है। 7 अगस्त, 1925 को कुंबकोनम में पैदा हुए स्वामीनाथन 98 वर्ष के थे। उनका निधन चेन्नई में हुआ है। देश के इस शीर्षस्थ अर्थशास्त्री ने भारत की भूख की समस्या को हल किया था। लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के नेतृत्व और स्वामीनाथन की अगुआई में देश में संचालित किए गए ग्रीन रिवोल्यूशन का ही नतीजा था कि देश अनाज के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया।

वह एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) के संस्थापक थे। परिवार के सूत्रों ने बताया कि उन्होंने दिन में 11.15 मिनट पर अपने आवास पर आखिरी सांस ली। वह बुढ़ापे संबंधी बीमारियों से ग्रस्त थे। स्वीमानाथन अपने पीछे अपनी तीन बेटियों को छोड़ गए हैं। डॉ सौम्या स्वामीनाथन एमएसएसआरएफ की अध्यक्ष हैं। वह इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं। दूसरी नित्या स्वामीनाथन लेक्चरर हैं। 

स्वामीनाथन ने अपना कैरियर 1949 में आलू, गेंहू, धान और जूट की जेनेटिक्स पर रिसर्च से शुरू की। 

1960 के दशक में जबकि भारत में अकाल की स्थिति थी और चौरतफा भूख अपना मुंह बाए खड़ी थी तब स्वामीनाथन ने बौरलॉग समेत दूसरे वैज्ञानिकों के साथ मिलकर ज्यादा पैदावार वाली गेंहू की किस्मों को विकसित किया। और इस प्रक्रिया ने देश में पूरी खेती की तस्वीर बदल दी। किसानों ने परंपरागत बीजों से खेती करने की जगह इन ज्यादा उत्पादक बीजों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया जिससे खेती में पैदावार बहुत ज्यादा बढ़ गयी। और फिर इसी को हरित क्रांति बोला गया। इसी क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन थे।

स्वामीनाथन कृषि से जुड़ी विभिन्न संस्थाओं में उच्च प्रशासनिक भूमिकाओं में भी रहे। उन्होंने आईसीएआर के निदेशक पद पर बहुत ज्यादा दिनों तक काम किया। इसके अलावा 1979 में वह कृषि मंत्रालय में प्रधान सचिव के पद पर काम किए।

1988 में वह इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज के अध्यक्ष रहे। अपने जीवन में उन्होंने ढेर सारे पुरस्कार हासिल किए। जिसमें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर का अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड अवार्ड ऑफ साइंस भी शामिल है।

भारत सरकार की ओर से उन्हें 1967 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। जबकि 72 में पद्मभूषण दिया गया। और फिर 1989 में पद्मविभूषण से नवाजे गए। उन्हें 1987 में वर्ल्ड फूड प्राइस से पुरस्कृत किया गया।

7 अगस्त, 1925 को कुंबकोनम में पैदा हुए स्वामीनाथन मेडिसिन क्षेत्र से कृषि की तरफ आए थे। कहा जाता है कि ऐसा उन्होंने 1943 के बंगाल के अकाल को देख कर फैसला लिया।

प्रधानमंत्री मोदी ने उनके निधन पर गहरा शोक जाहिर किया है। अपने शोक संदेश में उन्होंने कहा है कि डॉ. एमएस स्वामीनाथन के निधन से बेहद दुखी हूं। भारतीय इतिहास के बेहद महत्वपूर्ण समय पर उनके बुनियादी काम ने कृषि के कायाकल्प द्वारा लाखों-लाख जिंदगियों को रूपांतरित किया। और इसके साथ ही हमारे राष्ट्र की सुरक्षा को सुनिश्चित कर दिया।  

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अपने शोक संदेश में कहा कि डॉ. एमएस स्वामीनाथन की भारत की कृषि के प्रति बेजोड़ क्रांतिकारी प्रतिबद्धता ने हमें एक प्रचुर खाद्यान्न वाले देश में परिवर्तित कर दिया। हरित क्रांति के पिता के तौर पर उनकी यह विरासत हमेशा याद की जाती रहेगी। इस क्षति के मौके पर उनके परिजनों और नजदीकियों के प्रति दिली शोकसंवेदना।

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