Thursday, April 25, 2024

नहीं रहा भारतीय राजनीति के एक युग का साक्षी

देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में अपनी आखिरी सांस ली। अब से कुछ देर पहले कोरोना संक्रमित पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन हो गया वो 84 साल के थे।

बता दें कि वे पिछले एक महीने से दिल्ली के आर्मी अस्पताल में भर्ती थे। जहां उनकी ब्रेन सर्जरी हुई थी। सर्जरी के बाद से ही वह वेंटिलेटर पर थे और उनकी स्थिति काफी गंभीर बनी हुई थी।

उन्हें 10 अगस्त को कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खुद ट्वीट करके अपने कोविड-19 संक्रमित होने की जानकारी देश से साझा की थी। साथ ही उन्होंने अपने संपर्क में आए लोगों से भी अपना कोरोना टेस्ट ज़रूर कराने की अपील की थी। 

कांग्रेस के संकट मोचक होने से भाजपा के भारत रत्न होने तक का उनका राजनीतिक सफ़र काफी दिलचस्प और विवादास्पद रहा था। 11 दिसंबर 1935 को जन्मे प्रणब मुखर्जी जीवन के शुरुआती दिनों में प्रोफ़ेसर भी रहे थे, साल 1963 में पश्चिम बंगाल के विद्यानगर कॉलेज में वो पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर थे। और पत्रकार के तौर पर भी उन्होंने स्थानीय बंगाली समाचार पत्र ‘देशर डाक’ में काम किया था।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी उन्हें राजनीति में लेकर आई थीं और राज्य सभा का सदस्य मनोनीत करवाया था। और इंदिरा गांधी के निधन के बाद प्रणब मुखर्जी ने  कांग्रेस पार्टी छोड़कर अपनी राजनीतिक पार्टी “राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी” बनाई थी।

बतौर सांसद वो बहुत ही वस्तुनिष्ठ और अपने विषयों पर विशेष जानकारी रखते थे। ऐसा शायद उनके प्रोफेसर गुण के का कारण था। वो संसद में छोटी-छोटी बातों का जिक्र करते समय उसे दिन और तारीख के साथ संदर्भित करते थे। उनकी याददाश्त इतनी अच्छी थी कि किसी दूसरे सांसद द्वारा गलत संदर्भ दिए जाने पर वो उसे टोककर दुरुस्त करवाते थे। इस घटना का जिक्र खुद उनके विरोधी प्रशंसक वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने किया है।

देश के 13वें राष्ट्रपति बने 

कांग्रेस पार्टी की मनमोहन सिंह सरकार के दौरान ही 15 जून 2012 को प्रणब मुखर्जी देश के 13वें राष्ट्रपति नियुक्त हुए थे। और साल 2012  से 2017 तक वो देश के राष्ट्रपति रहे। 

उन्हें कई दया याचिकाएं खारिज करने वाले राष्ट्रपति के तौर पर विशेष रूप से याद किया जाता है। प्रणब मुखर्जी ने अफ़जल गुरु और अजमल कसाब समेत सात दया याचिकाओं को खारिज किया था। 

वित्तमंत्री के तौर पर सराहे गए

हालांकि उन्होंने रक्षा, वाणिज्य, विदेश और वित्त मंत्रालय को संभाला था और एक साथ सभी मंत्रालयों को विस्तार दिया था। लेकिन वो वित्तमंत्री के तौर पर विशेष रूप से सराहे गए। प्रणब अपनी तरह के इकलौते वित्त मंत्री हुए थे जिन्होंने सात बार बजट पेश किया था, इसके लिए उन्हें 1984 में यूरोमनी मैग्जीन द्वारा दुनिया का सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री भी घोषित किया गया था।

वित्तमंत्री के तौर पर दिया गया उनका वो बयान ‘दया दिखाने के लिए क्रूर बनना पड़ता है’ आज भी कोट किया जाता है।

भारत रत्न का आरएसएस कनेक्शन

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के जून 2018 में आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने पर देश भर में उनकी कड़ी आलोचना की गई थी। और इसके एक साल बाद ही भाजपा की मोदी सरकार द्वारा उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

प्रणब मुखर्जी भाजपा के दोनो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के मुरीद थे। इसका जिक्र उन्होंने एक कार्यक्रम में किया था।

अटल को प्रणब सबसे असरदार, तो मोदी को सबसे तेजी से सीखने वाला पीएम मानते थे। साल 2017 में जब राष्ट्रपति पद पर प्रणब मुखर्जी का आखिरी दिन था, तो मोदी ने उनके नाम चिट्‌ठी में लिखा था- राष्ट्रपति जी, आपके प्रधानमंत्री के रूप में आपके साथ काम करना सम्मान की बात रही। इस चिट्‌ठी को प्रणब ने ट्वीट किया था और कहा था कि इसे पढ़कर मैं भावुक हो गया।

प्रणब ने कहा था कि मोदी के काम करने का अपना तरीका है। हमें इसके लिए उन्हें क्रेडिट देना चाहिए कि उन्होंने किस तरह से चीजों को जल्दी सीखा है। चौधरी चरण सिंह से लेकर चंद्रशेखर तक प्रधानमंत्रियों को काफी कम वक्त काम करने का मौका मिला। इन लोगों के पास संसद का अच्छा-खासा अनुभव था, लेकिन एक शख्स सीधे स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन से आता है और केंद्र सरकार का मुखिया बन जाता है। इसके बाद वह दूसरे देशों से रिश्तों और एक्सटर्नल इकोनॉमी में महारत हासिल करता है। 

प्रणब ने मोदी की अर्थशास्त्र की समझ की तारीफ करते हुए कहा था कि साल 2008  की आर्थिक मंदी के बाद एक ताकतवर ऑर्गनाइजेशन जी-20 के रूप में उभरा। हर साल और कभी-कभी साल में दो बार जी-20 की समिट होती है। वह बड़े मसलों से निपटता है। किसी भी प्रधानमंत्री को इसकी गहराई से जानकारी हासिल करनी होती है। मोदी ने यह किया। मोदी चीजों को बहुत अच्छी तरह ऑब्जर्व करते हैं। मुझे उनकी वह बात अच्छी लगी, जब उन्होंने कहा कि चुनाव जीतने के लिए आपको बहुमत चाहिए होता है, लेकिन सरकार चलाने के सभी का मत चाहिए होता है।

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