Saturday, April 20, 2024

अपने राजनीतिक मौत के खतरे की पैदाइश है वारिस पठान का यह बयान

भारत में सांप्रदायिकता के सैकड़ों नाले और परनाले बह रहे हैं। उन्हीं नालों में से एक की पैदाइश वारिस पठान नाम का एक कीड़ा है। भारतीय राज्य और सीधे तौर पर कहें तो बीजेपी और संघ के संरक्षण में पल रहे इस कीड़े ने कल एक और जहरीला बयान दिया है। जिसमें उसने कहा है कि देश के 15 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिंदुओं पर भारी पड़ेंगे।

इस दौर में जबकि देश का पूरा अल्पसंख्यक समुदाय अपने जीवन की लड़ाई के सबसे नाजुक मोड़ पर है और किसी भी तरह की एक छोटी गलती भी उसके बच्चों के भविष्य को चौपट कर सकती है। उस समय खुद को एक नेता कहने वाले शख्स के इस बयान को किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए। क्या यह किसी भी रूप में मुस्लिम समुदाय की मदद करता है? 

केंद्र सरकार और संघ की लाख कोशिशों के बावजूद नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लड़ाई सांप्रदायिक नहीं बन सकी। यह पूरी तरह से हिंदुओं और मुसलमानों की मुश्तरका लड़ाई बनी हुई है। और इसका पूरा श्रेय अल्पसंख्यक तबके और उसमें भी खासकर उसकी महिलाओं को जाता है जो पूरे देश में उसकी अगुआई कर रही हैं। देश के अलग-अलग जगहों पर होने वाले इन आंदोलनों में यह बात बिल्कुल स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है कि उसमें न तो कठमुल्ला तत्वों को स्थान दिया जा रहा है और न ही पीर और मौलवी बुलाए जा रहे हैं। मंच से अगर कोई भी किसी तरह की सांप्रदायिकता से जुड़ी नफरत या फिर कट्टरता की बात करता है तो महिलाएं उसके मुंह के सामने से माइक छीन लेती हैं।

लेकिन सांप्रदायिक खाद-पानी पर पलने और बढ़ने वाले तत्वों को शायद यह बात रास नहीं आ रही है। और ऐसे लोग जो केंद्र सरकार के टुकड़ों पर राजनीति कर रहे हैं उनके लिए यह अपने किसी मौत की घंटी से कम नहीं है। नहीं तो पूरा देश इस सवाल को जरूर पूछ रहा है बगैर किसी दोष के डॉ. कफील और शर्जील सरीखे लोगों को अगर संगीन धाराओं के तहत गिरफ्तार किया जा सकता है। यूपी में सपा के साथ अपना राजनीतिक जीवन गुजार चुके आजम खान की संपत्तियों को तहस-नहस किया जा सकता है।

सांप्रदायिकता जैसा कुछ भी न कहने और करने वाले हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज के खिलाफ आपराधिक धाराएं लगायी जा सकती हैं। जैसा कि पीलीभीत में हुआ। तो भला इतने जहरीले बयान देने वाले वारिस पठान को क्यों छुट्टा छोड़ा गया है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वारिस पठान के दिए इन बयानों के खाद-पानी पर ही संघ की सांप्रदायिकता पलती है। जिस दिन वारिस पठान जैसे लोग खत्म हो जाएंगे संघ अपने आप मर जाएगा। उसके खिलाफ किसी को अभियान भी चलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

दरअसल वारिस पठान उसी पार्टी का नेता है जिसका नाड़ा भारत विरोध की जमीन में गड़ा है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि असदुद्दीन ओवैसी की विरासत हैदराबाद निजाम की निजी सेना रजाकरों से जुड़ती है जिसका कभी भारतीय सेना के साथ आमना-सामना हुआ था। और इस समय असदुद्दीन ओवैसी घूम-घूम कर संघ और बीजेपी की मदद कर रहे हैं। वह टीवी चैनलों की डिबेट हो या कि चुनावी जंग उन्हें और उनकी पार्टी को सब जगहों पर देखा जा सकता है। वरना बीजेपी के लिए अभियान चलाने वाले हिंदी भाषी चैनलों को भला किसी दक्षिण के नेता की क्या जरूरत पड़नी चाहिए। जिसका कि उत्तर में कोई आधार भी नहीं है।

यानी यह सब कुछ प्रायोजित है और सत्ता के इशारे पर हो रहा है। वरना देश के उन सारे नेताओं को परेशान किया गया जिन्होंने सरकार का विरोध किया। वह हिंदू हों या कि मुसलमान। लेकिन क्या कभी असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ किसी मामले को चलते आपने देखा? क्या उनके घर और ठिकानों पर कभी सीबीआई की रेड पड़ी? हर छोटे-बड़े मुसलमानों के घर में तलाशी करने वाली एजेंसी एनआईए ने क्या कभी ओवैसी के घर पर दस्तक दी? ऐसा कभी नहीं किया जाएगा। क्योंकि बीजेपी को अभी उसके सहारे की जरूरत है।

वारिस पठान के इस बयान को भी बीजेपी की बड़ी जरूरत के हिस्से के तौर पर देखा जाना चाहिए। दरअसल लाख कोशिशों के बाद भी बीजेपी दिल्ली विधानसभा के चुनाव को सांप्रदायिक रंग नहीं दे सकी। और अब जबकि बिहार का चुनाव आने जा रहा है और दिल्ली में लिट्टी-चोखा खाकर पीएम मोदी ने बिहार के युद्ध की तैयारी शुरू कर दी है। इसके साथ ही इस बात के भी संकेत दे दिए हैं कि बिहार की कमान अमित शाह नहीं बल्कि वह खुद संभालने जा रहे हैं। बड़ा नेता होगा तो तैयारी भी बड़ी करनी पड़ेगी।

वारिस पठान का यह बयान उसी का नतीजा है। क्योंकि बीजेपी इस बात को समझ रही है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और महंगाई को मुद्दा बनाकर वह कभी भी चुनाव नहीं जीत सकती। लिहाजा हिंदू-मुस्लिम ही एकमात्र हथियार है और उसे उन्माद के स्तर पर ले जाए बगैर यह संभव नहीं होगा। वारिस पठान का यह बयान अभी उसकी शुरुआत भर है। आने वाले दिनों में हिंदू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान से जुड़े और भड़कीले बयान आएं तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए।

इसी कड़ी में एक सवाल सांप्रदायिकता के शीर्ष विषधर मोहन भागवत से भी पूछा जाना चाहिए। उन्हें अभी-अभी एक दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ है। अब इसे गांधी का प्रभाव कहें या फिर कोई दूसरी बड़ी साजिश। दिल्ली के गांधी स्मृति में आयोजित एक पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद कुछ और नहीं बल्कि जर्मनी का नाजीवाद है और उसकी हिटलर से तुलना कर डाली। अब उनसे कोई पूछ सकता है कि इस देश के भीतर सैकड़ों लोगों की राष्ट्रवाद के नाम पर हत्याएं करने, करोड़ों-करोड़ लोगों पर राष्ट्रविरोधी होने की तोहमत लगाने और हजारों को राष्ट्र द्रोह के आरोप में जेल में डलवाने के बाद भला इस ज्ञान का क्या मतलब है?

ऐसा लगता है कि देश की जनता ने जब जन-गण-मन और तिरंगे को इनसे छीन लिया है और हिंदुओं-मुसलमानों की साझी लड़ाई को ही असली राष्ट्रवाद के तौर पर स्थापित कर दिया है। तब इनके राष्ट्रवाद का हथियार न केवल भोथरा हो गया है बल्कि अब वह इनके किसी काम का नहीं रह गया है। और वैसे भी हमें किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए। इनके राष्ट्रवाद का मतलब शुद्ध रूप से हिंदू राष्ट्र था। लिहाजा अब किसी दूसरे नारे की आड़ में नहीं बल्कि खुले तौर पर उसने सामने आने का मन बना लिया है। अब इसका क्या रूप होगा, उसके नारे क्या होंगे और किस तरह से सामने आएगा यह तो भागवत ही बता सकते हैं।

(लेखक महेंद्र मिश्र जनचौक के संपादक हैं।) 

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

अपरेंटिसशिप गारंटी योजना भारतीय युवाओं के लिए वाकई गेम-चेंजर साबित होने जा रही है

भारत में पिछले चार दशकों से उठाए जा रहे मुद्दों में बेरोजगारी 2024 में प्रमुख समस्या के रूप में सबकी नजरों में है। विपक्षी दल कांग्रेस युवाओं के रोजगार पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वहीं भाजपा के संकल्प पत्र में ठोस नीतिगत घोषणाएँ नहीं हैं। कांग्रेस हर शिक्षित बेरोजगार युवा को एक वर्ष की अपरेंटिसशिप और 1 लाख रूपये प्रदान करने का प्रस्ताव रख रही है।

ग्राउंड रिपोर्ट: रोजी-रोटी, भूख, सड़क और बिजली-पानी राजनांदगांव के अहम मुद्दे, भूपेश बघेल पड़ रहे हैं बीजेपी प्रत्याशी पर भारी

राजनांदगांव की लोकसभा सीट पर 2024 के चुनाव में पूर्व सीएम भूपेश बघेल और वर्तमान सांसद संतोष पांडेय के बीच मुकाबला दिलचस्प माना जा रहा है। मतदाता सड़क, पानी, स्वास्थ्य, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों को प्रमुखता दे रहे हैं, जबकि युवा बेरोजगारी और रोजगार वादों की असफलता से नाराज हैं। ग्रामीण विकासपरक कार्यों के अभाव पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं।

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

Related Articles

अपरेंटिसशिप गारंटी योजना भारतीय युवाओं के लिए वाकई गेम-चेंजर साबित होने जा रही है

भारत में पिछले चार दशकों से उठाए जा रहे मुद्दों में बेरोजगारी 2024 में प्रमुख समस्या के रूप में सबकी नजरों में है। विपक्षी दल कांग्रेस युवाओं के रोजगार पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वहीं भाजपा के संकल्प पत्र में ठोस नीतिगत घोषणाएँ नहीं हैं। कांग्रेस हर शिक्षित बेरोजगार युवा को एक वर्ष की अपरेंटिसशिप और 1 लाख रूपये प्रदान करने का प्रस्ताव रख रही है।

ग्राउंड रिपोर्ट: रोजी-रोटी, भूख, सड़क और बिजली-पानी राजनांदगांव के अहम मुद्दे, भूपेश बघेल पड़ रहे हैं बीजेपी प्रत्याशी पर भारी

राजनांदगांव की लोकसभा सीट पर 2024 के चुनाव में पूर्व सीएम भूपेश बघेल और वर्तमान सांसद संतोष पांडेय के बीच मुकाबला दिलचस्प माना जा रहा है। मतदाता सड़क, पानी, स्वास्थ्य, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों को प्रमुखता दे रहे हैं, जबकि युवा बेरोजगारी और रोजगार वादों की असफलता से नाराज हैं। ग्रामीण विकासपरक कार्यों के अभाव पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं।

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।