तिलमापुर, वाराणसी (उ.प्र.)। बनारस में अतिक्रमण व कब्ज़ा कोई नई बात नहीं है। अतिक्रमण और अवैध निर्माण में यूपी में बनारस का चौथा स्थान है। गांवों और शहर की ओर से लेकर छोर तक, समूचा 1536 वर्ग किलोमीटर विस्तारित वाराणसी के भूगोल में हजारों भू-माफिया सक्रिय हैं। इनके धनबल, बाहुबल और जुगाड़बल के आगे पीड़ित लाचार नजर आ रहे हैं। जबकि सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ कई दफे सख्त लहजे में प्रदेश भर में भू-माफिया को चिन्हित कर कड़ी कार्रवाई के निर्देश दे चुके हैं।
अखबारों में खबर छपी कि वाराणसी जिला प्रशासन ने राजातालाब में 58, सदर में 47 और पिंडरा में 52 भू-माफियाओं की सूची तैयार की थी। अतिक्रमणकारी और भू-माफिया पर प्रशासनिक कार्रवाई आदि क्या हुआ? कॉलोनाइजर्स और माफिया के चंगुल से कितनी जमीनों को आजाद करा लिया गया…. वगैरह-वगैरह। यह शासन की चिंता का विषय है। बहरहाल,
हाल के दशक में वाराणसी, खासकर शहरी इलाकों और हाल ही में वाराणसी नगर निगम की सीमा में शामिल किये गए गांवों की जमीनों की कीमतें आसमान छू रही है। भू-माफिया जमीनों पर कब्ज़ा करने की हर जुगत भिड़ाए हुए हैं। अब ये समाज के अंतिम पायदान पर खड़े जाति बस्तियों को भी नहीं बक्श रहे हैं।
ताजा मामला वाराणसी जिला मुख्यालय से 25 से 30 किलोमीटर दूर सारनाथ थाना क्षेत्र में स्थित तिलमापुर से आलोक में आया है। यहां 7-8 घर वनवासी (मुसहर) समाज के 60-70 लोग तकरीबन चार से पांच पीढ़ियों से बंजर जमीन पर बसे हुए हैं। सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से अत्यंत पिछड़े या यूं कहिये कि समाज के एकदम अंतिम पायदान पर खड़े वनवासी समाज जैसे-तैसे गृहस्थी की गाड़ी खींचने में लगा हैं।
इस बीच 18 जनवरी 2023, दिन-बुधवार को तिलमापुर की वनवासी सरोज के दो दशक पुराने दो पक्के मकान को ग्राम प्रधान और पास में ही आईटीआई कॉलेज चलाने वाला प्रबंधक बलराम यादव (पता अज्ञात) ने मिलकर बगैर स्वीकृति जेसीबी से ढहा दिया। घर गिराने से पहले मुआवजा और पुनर्वास विकल्प के बारे में भी विचार नहीं किया गया। जिस समाज को अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का ही प्रबंध बमुश्किल हो पाता है।
पीड़िता सरोज “जनचौक” से अपनी पीड़ा बताती हैं कि “कई बरसों से खून-पसीना बहाकर और पेट काटकर तैयार किये गए घरौंदे को जेसीबी से पल भर में चकनाचूर कर दिया गया। इससे हमारी गृहस्थी खुले आसमान के नीचे आ गई है। दिन में धूप और रात में सर्दी के बीच रोटियां सेंकनी पड़ रही है। चार-पांच लोगों का परिवार एक कंधे तक ऊंचाई वाले टीन शेड की तंग झोपड़ी में रहने को विवश हैं।” सरोज ने 30 जनवरी को अपर पुलिस कमिश्नर वाराणसी संतोष कुमार सिंह से मिलकर जेसीबी से मकान को ढहाए जाने की शिकायत की। साथ ही आरोपी पर एससी\एसटी एक्ट के तहत मुक़दमा दर्ज कर न्याय की गुहार भी लगाई है। जवाब में अपर पुलिस आयुक्त ने कार्रवाई का भरोसा दिया है।
मुझे कहा गया कि- गांव छोड़कर चली जाओ
पीड़िता सरोज वनवासी ने बताया कि “शादी के बाद हम मजदूरी करके और पेट काटकर जैसे-तैसे ईंट की दीवार बनवा कर उसपर टीनशेड डालकर रहते थे। जहां हम लोग यानी वनवासी समाज रहता है, वह भूमि सैकड़ों सालों से बंजर है। हमारी चार पुश्तें यहीं रहती आई हैं। हाल के सालों में शहर बढ़ते-बढ़ते हम लोगों की जमीन तक आ पहुंचा है।
वनवासी आबादी के पास बंजर भूमि व जलखाता होने की वजह से भूमाफिया जोड़-तोड़ कर इन जमीनों को हथियाने का मंसूबा पाल रखे हैं। वनवासी बस्ती से लगा हुआ, एक आईटीआई कॉलेज है, जिसका प्रबंधक अवैध तरीके से पांच फीट जमीन वनवासी बस्ती की तरफ होने का दावा करता है। मेरा घर बुलडोजर से तहस-नहस करने के बाद मुझे कहा गया कि गांव छोड़कर चले जाओ। जिस दिन मेरा घर तोड़ा जा रहा था। उस दिन बस्ती के अधिकांश महिला-पुरुष मजदूरी करने गए हुए थे। मुझे अपने मकान का मुआवजा चाहिए। हम यहां से नहीं जायेंगे, तिलमापुर से जाएगी तो सिर्फ हमारी लाश। “
लड़ेंगे और अपनी जमीन बचाएंगे
“जब से शादी हुई है, तब से यहां रह रही हूँ। मेरे सास-ससुर और पति इसी मिट्टी में मरे-खपे हैं। अस्सी- सौ साल से हमारी पीढ़ियां यहां रहती आईं हैं। कुछ ही दिन पहले गलत तरीके से सरोज का घर तोड़ दिया गया। अब हम लोगों की बस्तियों को निशाना बनाया जा रहा है। गांव के कुछ दबंग कहते हैं कि तुम लोग यहाँ से चले जाओ। ताल-खेत में बस जाओ। मैं ऐसे लोगों से कहना चाहती हूं कि तिलमापुर-हलचल से कम से कम मैं तो जीते जी नहीं जाने वाली। अपनी माटी और पुरखों की यादों को छोड़कर क्यों जाए? अपने बलबूते जैसे-तैसे लड़ेंगे और अपनी जमीन बचाएंगे।” ऐसा राधिका वनवासी ने अपना निवास प्रमाण पत्र, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र दिखते हुए कहा।
हम लोगों की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दे रहा : वनवासी
कार्तिक वनवासी के चार बच्चे हैं। कार्तिक तकरीबन चार पीढ़ियों से तिलमापुर गांव में रहते हैं। इस बात की तस्दीक राजभर समाज की कई अधेड़ व उम्रदराज महिलाओं ने की। वह कहते हैं कि “बस्ती के पास में कॉलेज संचालक ने पांच लट्ठा जमीन बनवासियों की अवैध तरीके से कब्ज़ा कर लिया है। प्रधान कह रहा है कि यहां से तुमलोग चले जाओ। ये जलखाता की जमीन है। जबकि, वनवासी बस्ती के पास कई बीघे बंजर भूमि थी। जिसे सुनियोजित तरीके से पाट-पाट कर कब्ज़ा किया जा रहा है।
बंजर भूमि पर कुआं भी है, जहाँ से हमलोग पानी ले आते थे। जिसके पास की भूमि को पाट दिया गया है। इतना ही नहीं खुलेआम कई घरों का नाला व सीवर हमलोगों की बस्ती की तरफ बहाया जा रहा है। गन्दा पानी लगाने की वजह से हम लोगों ने कुएं का पानी पीना छोड़ दिया है। बस्ती के पहले तालाब जैसी स्थिति नहीं थी, लेकिन अब गांव भर का सीवर आने से गन्दा पानी बस्ती से लगकर सड़ने लगा है, और तालाब जैसा रूप ले लिया है। आए दिन इन गंदे पानी में मच्छर, मक्खी, जहरीले कीड़े-मकोड़े और जानवरों से बस्ती के बच्चे व बुजुर्ग बीमार रहते हैं। हम लोगों ने प्रधान और अन्य लोगों से यहाँ गन्दा पानी न आये, इसके लिए कई बार कहा, लेकिन हम लोगों की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।”
सुविधा के नाम पर सिर्फ एक नल
वनवासी समाज के किशोर रघुबीर स्थानीय सरकारी स्कूल में कक्षा छह के छात्र हैं। वह बताते हैं कि “हमारी बस्ती में सरकारी सुविधा के नाम पर सिर्फ एक नल लगा हुआ है। सभी को राशन मिलता है। सभी लोगों ने आवास योजना के लिए आवेदन किया हुआ है, लेकिन अभी वे सुविधा से वंचित हैं। नल में पानी तो आता है, लेकिन सुबह और शाम एक नल से पानी भरने में बड़ी दिक्कत होती है। कई बार एक-दो दिन पानी नहीं आने पर बस्ती के लोगों को बड़ी परेशानी उठानी पड़ती है, और पानी के इंतजाम में ही सारा दिन बीत जाता है।
बस्ती या आसपास कोई हैंडपंप नहीं है। पानी नहीं आने की दशा में हम लोग आसपास-पड़ोसियों के यहां पानी लेने जाते हैं, तो कोई पानी दे देता हैं। वहीं, कुछ लोग पानी तो देते ही नहीं ऊपर से जातिसूचक अपशब्द कहकर भगा देते हैं। मेरी मांग है कि कम से कम एक हैंडपंप और गांव की गलियों से जोड़ने के लिए व आवागमन के लिए वनवासी बस्ती तक पक्की नाली, रोशनी की व्यवस्था, सीमेंट की इंटरलॉकिंग सड़क बनाई जाए, ताकि बारिश और रात में लोगों को आवागमन में सहूलियत हो। वनवासी समाज को डराना-धमकाना बंद किया जाए, हम लोग कहीं जाने वाले नहीं हैं।’
कड़ाई से कानून अमल में लाने की जरूरत
पत्रकार राजीव सिंह कहते है कि “सनद रहे कि लखनऊ में सात दिसंबर 2020 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि “अनुसूचित जाति-जनजाति के जो लोग ग्राम समाज की भूमि पर लम्बे अरसे से रह रहे हैं। उन्हें विस्थापित नहीं किया जाएगा व उनके विनियमतीकरण की कार्रवाई की जाएगी। अनुसूचित जाति और जनजाति को जब तक घर न मिल जाए, तब तक किसी भी प्रकार की जमीन से नहीं हटाया जा सकता।”
इधर, निर्वाण के शहर में अवैध निर्माण की बाढ़ सी आई हुई है। कम से बनारस से तो ऐसी कम ही अपेक्षा थी, लेकिन ये सब चल रहा है। उसी बनारस में, जो प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र है। इसी शहर में अपने फायदे के लिए आम लोगों के साथ बिल्डर, कॉलोनाइजर्स अवैध निर्माण के सेंचुरी पर सेंचुरी क्रास कर रहे हैं। वीडीए, एसडीएम व राजस्व महकमे सिर्फ खानापूर्ति में जुटे हैं। कारगर रणनीति व कार्रवाई नहीं होने से भू-माफिया और कॉलोनाइजर्स के हौसले बुलंद हैं। मौजूदा वक्त में बनारस जनपद में 15 से 20 हजार से अधिक अवैध निर्माण और भू-माफिया का अतिक्रमण है। कायदे से तो इन पर कड़ी कार्रवाई अमल में लाने की जरूरत महसूस हो रही है।”
तो आने वाले दिनों में और बढ़ सकते हैं मामले
कम्युनिस्ट फ्रंट के संयोजक व नट-मुसहर (वनवासी) समाज के उत्थान के लिए काम करने वाले मनीष शर्मा ने “जनचौक” को बताया कि “अभी के दौर में समूचे बनारस में वनवासी, नट और अन्य जातियों को क्रम से प्रति महीने उजाड़ने की गैर क़ानूनी कोशिश की जा रही है। तिलमापुर में वनवासी समाज कई पीढ़ियों से रह रहा है। इतने लम्बे अरसे के गुजर जाने के बाद भी उक्त भूमि को उपजिलाधिकारी\ तहसीलदार व अन्य राजस्व अधिकारी ने वनवासी समाज के नाम नहीं कर पाया है अबतक। यह बहुत बड़ी चूक है।”
वहीं, दिनों-दिन जमीनों की कीमतों के बढ़ने व तिलमापुर के नगर निगम में शामिल होने के बाद से भूमाफिया-कॉलोनाइजर्स की गिद्ध निगाह भी वनवासी-नट समाज के घर-मकान और बस्तियों पर जा टिकी है।
वनवासी व नट समाज का कोई संगठन, आवाज और जनप्रतिनिधि नहीं होने से इनकी कहीं निर्णायक सुनवाई नहीं हो पा रही हैं। इससे कोई भी मनमाने तरीके से इनको अपनी ही जमीनों और बस्तियों से बेदखल करने की कुचेष्टा कर रहा है। आने वाले दिनों में जनपद में उक्त जातियों के निवास स्थान को हड़पने के और मामले देखे जा सकते हैं। लिहाजा, वनवासी और नट समाज को अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए प्रयास तेज कर दिए गए हैं। इस मामले से जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी को अवगत कराकर वनवासी व नट समाज को जमीनों के भूलेख उनके नाम पर करने और सुरक्षा की मांग की जाएगी।
(वाराणसी से पत्रकार पीके मौर्य की रिपोर्ट।)