Saturday, April 27, 2024

रोहतक के बाद अब लखनऊ में भी इजराइल में नौकरी पाने के लिए बेरोजगारों की लगी कतार

जी हां, आपने ठीक सुना। उत्तर प्रदेश में भी हरियाणा के रोहतक की तर्ज पर इजराइल में हजारों लोगों को रोजगार के लिए नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यह खबर भले ही देश का कथित राष्ट्रीय मीडिया न दिखा रहा हो, लेकिन स्थानीय वेब पोर्टल और अल-ज़जीरा सहित रॉयटर्स तक की सुर्खियां बना हुआ है।

उत्तर प्रदेश में यह ड्राइव पूरे एक सप्ताह तक जारी रहने वाली है, जिसे यूपी सरकार के द्वारा  औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) में संचालित किया जा रहा है। बता दें कि इन सात दिनों में इज़राइली टीम के द्वारा बार बेंडर (सरिया मोड़ने), मेसन (मिस्त्री), टाइलर (टाइलिंग) और शटरिंग कारीगर जैसी नौकरियों के लिए करीब 4,600 उम्मीदवारों का चयन किया जायेगा। चयनित लोगों को चिकित्सा बीमा, भोजन एवं आवास सहित प्रति माह 1.37 लाख रुपये का वेतन मिलने जा रहा है।

सोशल मीडिया X पर पीयूष राय की यह वीडियो तेजी से वायरल हो रही है, जिसमें लाइन में अपनी बारी के इंतजार में खड़े युवाओं को देखकर सहसा यही अहसास होने लगता है कि कहीं यह अयोध्या के राम मंदिर में राम लला के लिए दर्शनार्थियों की भीड़ तो नहीं?

सोचिये, अयोध्या से 120 किमी की दूरी पर एक अदद ठीक-ठाक सैलरी की उम्मीद में हजारों की संख्या में देश का युवा खुद को एक ऐसे युद्ध-क्षेत्र में झोंकने के लिए मजबूर पा रहा है, जहां शायद ही कोई मां-बाप अपने कलेजे के टुकड़े को भेजने की कल्पना करता हो। 

उत्तर प्रदेश सरकार में श्रम मंत्री अनिल राजभर का इस बारे में कहना है, “यह एक बड़ा अवसर है क्योंकि इज़राइल और भारत दोनों इज़राइल में श्रमिकों की स्थिति में सुधार के तरीके तलाश रहे हैं। जरूरत पड़ने पर उन्हें कम ब्याज पर ऋण भी उपलब्ध कराया जाएगा।”

प्रशिक्षण एवं रोजगार निदेशक, कुणाल सिल्कू के शब्दों में, “इज़राइल में निर्माण श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने की प्रक्रिया का ध्यान एनएसडीसी इंटरनेशनल द्वारा रखा जा रहा है, जो भारत और जनसंख्या, आव्रजन और सीमा प्राधिकरण के कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के तहत काम करने वाली एक एजेंसी है।

इजराइल को अचानक से इतनी बड़ी संख्या में श्रमिकों की जरूरत क्यों पड़ी?

7 अक्टूबर 2023 से जारी इज़राइल-हमास संघर्ष, जो आज 109वें दिन में प्रवेश कर चुका है, के कारण पिछले 3 महीने से वर्क परमिट पर काम करने वाले करीब 1 लाख फिलिस्तीनियों के लिए इजराइल के दरवाजे बंद हो चुके हैं। लेकिन इसका नतीजा यह हुआ है कि अक्टूबर से ही इजराइल की अर्थव्यस्था को तगड़ा झटका लगा है।

7 अक्टूबर को हमास के हमले में 1,200 इजरायली मारे गये थे, जबकि जवाबी हमले में इजराइली सेना ने गाजापट्टी में अब तक 16,000 महिलाओं और बच्चों सहित कम से कम 24,620 फिलिस्तीनियों को मार डाला है।

अल ज़जीरा की खबर के मुताबिक, इजरायली जनसंख्या एवं आव्रजन प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक, युद्ध की वजह से करीब 5 लाख इजरायली और 17,000 से ज्यादा विदेशी श्रमिक देश छोड़ने के लिए मजबूर हुए।

इतना ही नहीं, करीब 7,64,000 इजरायली, जो कि देश की कुल श्रमशक्ति के लगभग 20 फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है, मौजूदा समय में देश से बाहर, स्कूल बंद होने या युद्ध के लिए सेना में रिजर्व ड्यूटी की वजह से श्रमशक्ति का हिस्सा नहीं है।

इसमें भी निर्माण क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित है, जिसमें अभी तक अधिकांश फ़िलिस्तीनी श्रमिक कार्यरत थे। लेकिन गाजा हमला शुरू होने के तत्काल बाद इजरायली सरकार द्वारा 1,00,000 से अधिक फिलिस्तीनी श्रमिकों के वर्किंग लाइसेंस को निलंबित कर दिया गया था।

खबर यह भी है कि इज़राइली सरकार भारत से श्रमिकों की खपत को लेकर पिछले आठ महीने से अधिक समय से योजनाबद्ध ढंग से काम कर रही थी। इस संदर्भ में मई 2023 में, इजरायल के विदेश मंत्री एली कोहेन और उनके भारतीय समकक्ष एस जयशंकर ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे 42,000 भारतीय निर्माण श्रमिकों को काम के लिए इजराइल प्रवास को मंजूरी मिल गई थी।

पीआईबीए द्वारा चयनित श्रमिकों में से आगरा, कानपुर और लखनऊ के 629 श्रमिकों के कौशल का परीक्षण मंगलवार को किया जा चुका है। इसके बाद 24 जनवरी को आज़मगढ़ और बांदा मंडल के 585 श्रमिकों का परीक्षण किया जा रहा है। 25 जनवरी को बरेली, झांसी, नोएडा, मुरादाबाद एवं देवीपाटन मण्डल के 563 श्रमिक परीक्षण में शामिल होंगे।

26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में अवकाश के बाद 27 जनवरी को वाराणसी, मिर्ज़ापुर, मेरठ और गाजियाबाद से 656 श्रमिक, 28 जनवरी को गोरखपुर मण्डल के 877 श्रमिक तो 29 जनवरी को अयोध्या एवं सहारनपुर मंडल के 739 श्रमिक तथा 30 जनवरी को अलीगढ़, बस्ती व प्रयागराज मंडल के 603 श्रमिकों का चयन किया जायेगा।

इससे पहले हरियाणा के रोहतक जिले में भी कुछ इसी प्रकार की कवायद को अंजाम दिया गया था। इसमें बताया गया था कि प्रथम चरण में चयनित होने के बाद कुशल श्रमिकों का मेडिकल एवं पुलिस वेरिफिकेशन किया जायेगा, और जिन श्रमिकों के पास पासपोर्ट नहीं है, उन्हें पासपोर्ट के लिए अप्लाई करना होगा। इसके 30 दिन के भीतर इन श्रमिकों को इजराइल भेज दिया जाएगा।

ऐसे में भारत सरकार से कहा गया है कि श्रमिकों के पासपोर्ट की प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा कराया जाये। हालांकि, चयनित श्रमिकों को इजराइल जाने का हवाई भाड़ा स्वयं वहन करना होगा, लेकिन 1.37 लाख रुपये प्रति माह के साथ-साथ उन्हें मेडिकल सुविधा सहित बीमा की सुविधा इजराइल की ओर से उपलब्ध कराई जाएगी।

विश्वगुरु की कलई पूरी दुनिया के सामने खुल रही है

अल-ज़जीरा के रिपोर्टर ने बिहार के रोहतक जिले के शर्मा से बातचीत का ब्यौरा देते हुए अपनी खबर में बताया है कि शर्मा के साथ 40 अन्य श्रमिक भी बिहार से इस परीक्षा में चयनित होने के लिए आये हैं। उन्होंने बताया कि शुरुआत में उन्हें बिहार में एक भर्ती एजेंसी के द्वारा ली गई मौखिक परीक्षा से गुजरना पड़ा, जिसमें निर्माण से संबंधित विषयों के बारे में उनका साक्षात्कार लिया गया था।

शर्मा के अनुसार, “उन्होंने मुझसे कहा कि मैंने पहला राउंड पास कर लिया है, इसके बाद दूसरे राउंड के इंटरव्यू के लिए मुझे रोहतक जाना होगा, जहां इजरायली क्लाइंट द्वारा इंटरव्यू लिया जायेगा।”

शर्मा आगे कहते हैं, “हम पिछले तीन दिनों से इस ठंड में एक बस के भीतर सो रहे हैं और अपने साक्षात्कार के इंतजार में सड़क किनारे एक भोजनालय में बने शौचालय का उपयोग कर रहे हैं।” इससे पहले शर्मा 2020 में कोविड-19 महामारी से पहले दिल्ली में निर्माण कार्य से जुड़े हुए थे, लेकिन महामारी में नौकरी जाती रही।

उनके अनुसार, “इज़राइल में काम करना गरीबी के दलदल से बाहर निकलने का जीवन में एक ही बार मिलने वाला अवसर नजर आता है।” कोरोनाकाल शुरू होने के बाद से वे अभी तक एक सरकारी रोजगार योजना (मनरेगा) के तहत काम कर रहे हैं, जिसमें पांच घंटे काम के बदले प्रति दिन 3 डॉलर (240 रूपये) से भी कम का भुगतान किया जाता है।

इसी में उन्हें अपनी पत्नी सहित दो बच्चों और एक बहन के लिए भोजन उपलब्ध कराने के लिए जूझना पड़ रहा है। शर्मा के अनुसार यदि उन्हें इज़राइल में नौकरी मिल जाती है, तो वे अपने बच्चों का भरण-पोषण करने के साथ-साथ अपनी बहन की शादी के लिए पर्याप्त बचत कर पाने में सक्षम हो सकते हैं।

इसी प्रकार हरियाणा के पानीपत जिले के 32 वर्षीय विकास कुमार ने भी कौशल परीक्षा में हिस्सा लिया। कुमार रोजाना 12 घंटे प्लास्टर का काम करते हैं, और बदले में वे प्रति माह 120 डॉलर (10,000 रुपये) कमाते हैं। छह लोगों के परिवार का भरण-पोषण करने के लिए विकास कुमार को भी इज़राइल में नौकरी हासिल करने की उम्मीद है।

लेकिन सिर्फ मजदूर वर्ग ही काम के लिए इज़राइल की यात्रा करने की चाह नहीं रखता, बल्कि बड़ी संख्या में स्नातक या बी.टेक शिक्षित युवा भी भारत की तुलना में अच्छी आय की तलाश में इन नौकरियों के लिए आवेदन कर रहे हैं।

अल-ज़जीरा के अनुसार हरियाणा के एक सरकारी विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर के छात्र सचिन (25) भी साक्षात्कार के लिए आये थे। सचिन का कहना था, “कोई भी ऐसी जगह पर नहीं जाना चाहेगा जहां सिर के ऊपर से रॉकेट दागे जाते हों, लेकिन मजबूरी है क्योंकि भारत में अवसर ही बहुत सीमित हैं।”

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles