Sunday, April 28, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: पत्थर खदानों में काम करने को मजबूर, मिल रही सिलिकोसिस की जानलेवा बीमारी

हमारे देश में आबादी के अनुपात में रोजगार प्राप्त करना सबसे बड़ी चुनौती है। चीन को पछाड़ कर हम आबादी के मामले में भले नंबर एक हो गए हों, लेकिन रोजगार के मामले में हमारी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में यह समस्या और भी तेजी से बढ़ती नजर आ रही है। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकतर पुरुष रोजगार के लिए बड़े शहरों की ओर पलायन करते हैं। जहां पहुंच कर भी उन्हें प्रतिदिन रोजगार के लिए संघर्ष करनी पड़ती है। गांव से पलायन करने वाले अधिकतर पुरुष शहरों में दैनिक मजदूर के रूप में काम करते हैं। कई बार पुरुष अकेले ही शहर कमाने आता है तो कई बार परिवार समेत शहर पलायन कर जाता है। ऐसे में इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि इन सब में महिलाओं की क्या स्थिति होती होगी?

गांव में ही रहकर महिलाओं को भी एक बेहतर रोजगार प्राप्त करना बहुत मुश्किल होता है। कई बार उन्हें केवल दैनिक मजदूरी ही मिलती है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में कई स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा रोजगार उपलब्ध कराने से महिलाओं को आमदनी हो जाती है। इसके अलावा सरकार द्वारा भी विभिन्न परियोजनाओं के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान किये जा रहे हैं। जिससे महिलाओं को काफी लाभ हो रहा है। इसका एक उदाहरण राजस्थान के अजमेर जिला स्थित सिलोरा गांव भी है। जहां महिलाएं मजदूरी करने पर विवश होती हैं। हालांकि विभिन्न योजनाओं से जुड़कर वह आर्थिक रूप से सबल हो रही हैं। किशनगढ़ तहसील से करीब 15 किमी दूर और अजमेर जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर इस गांव की आबादी लगभग 5526 है। सिलोरा पंचायत भी है, जिसके अंतर्गत 5 गांव हैं। गांव के अधिकतर पुरुष रोजगार के लिए पड़ोसी राज्य गुजरात के बड़ौदा, सूरत या अहमदाबाद पलायन करते हैं। कुछ स्थानीय मिनरल्स ग्राइंडिंग यूनिट (पत्थर के खदान) में भी काम करते हैं।

जिन घरों के पुरुष पलायन करते हैं, उन घरों की महिलाएं इन्हीं यूनिट्स में काम करने को मजबूर हैं। जहां उन्हें प्रतिदिन 300 से 350 रुपए मिलते हैं। हालांकि यह यूनिट स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही खतरनाक होता है। इससे प्रभावित अधिकतर मजदूर एक जानलेवा सिलिकोसिस नामक बीमारी से घिर जाते हैं। जिसमें उनके फेफड़े प्रभावित हो जाते हैं। यह एक प्रकार की लाइलाज बीमारी है। जिससे ग्रसित मरीजों का अंत निश्चित है। इसमें मरने वाले मजदूरों के परिवार वालों को कोई मुआवजा भी नहीं मिलता है। हालांकि स्थानीय एनजीओ ‘ग्रामीण एवं सामाजिक विकास संस्था’ के दखल के बाद से कई महिलाओं ने इस काम को छोड़कर आजीविका के अन्य साधन को अपना लिया है। इसमें राज्य सरकार द्वारा संचालित “राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परियोजना” (राजीविका) प्रमुख है।

इस संबंध में सिलोरा पंचायत स्थित गोदियाना गांव की 38 वर्षीय संजू देवी बताती हैं कि ‘मेरे पति कुछ वर्ष पूर्व तक मिनरल्स इकाई में काम करते थे। जहां वह सिलिकोसिस बीमारी से ग्रसित हो गए और उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मौत के बाद घर की आमदनी के लिए कई दिनों तक मैंने भी उसी जानलेवा इकाई में काम किया था। जहां पैसे कम और खतरा अधिक था। एक दिन मुझे ग्रामीण एवं सामाजिक विकास संस्था के सदस्यों द्वारा राजीविका के संबंध में न केवल जानकारी दी गई बल्कि संस्था के सहयोग से मैं उससे जुड़ भी गई। इसके अतिरिक्त संस्था द्वारा जागरूकता से जुड़े कई ऐसे कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं जिससे कि इन इकाइयों में काम कर रहे मजदूरों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां प्राप्त हो सकें।’ संजू देवी बताती हैं कि पिछले दो वर्षों में लगभग 15 से 20 मजदूरों की सिलिकोसिस के कारण मौत हो चुकी है। अभी भी इस क्षेत्र में 20 से 22 श्रमिक इस गंभीर बीमारी की चपेट में हैं। जिनके इलाज का कोई साधन उपलब्ध नहीं है और वह धीरे धीरे मौत की तरफ बढ़ रहे हैं। घर में पैसे के लिए अब महिलाएं और बच्चे इस जानलेवा इकाई में काम करने को मजबूर हैं।

हालांकि संस्था के प्रयास का प्रभाव धीरे धीरे दिखने लगा है। कई महिलाएं राजीविका से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। राज्य सरकार द्वारा राजीविका के माध्यम से महिलाओं को साबुन बनाना और सेनेटरी नैपकिन बनाने के काम दिए जाते हैं। इसमें महिलाएं समूह बनाकर इस कार्य को करती हैं। जिसमें उन परिवार की महिलाओं को शामिल करने का प्रावधान है जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। इस संबंध में परियोजना के बीपीएम धर्मराज सिलोरा बताते हैं कि वर्तमान में यह परियोजना किशनगढ़ तहसील के 8 ग्राम पंचायतों डिंडवाड़ा, सिलोरा, बरना, काढ़ा, सरगांव, मालियों की बाड़ी, बांदरसिंदरी और टिकावड़ा स्थित 30 गांवों उदयपुर कल्ला, सिलोरा, काचरिया, उदयपुर खुर्द, गोदियाना, मालियों की बाड़ी, ढाणी पुरोहितान, जोगियों का नाडा, रारी, बीती, सरगांव, काढ़ा, मुंडोलाव, बालापुरा, गोरधनपुरा, टिकावड़ा, भुवाड़ा, रघुनाथपुरा, बांदरसिंद्री, खंडाच, खेड़ा कर्मसोतान, खेड़ा टिकावड़ा, कदमपुरा और रामपुरा की ढाणी में संचालित किया जा रहा है। जिससे बड़ी संख्या में महिलाएं जुड़कर न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं बल्कि मिनरल्स इकाई जैसी जानलेवा काम से भी मुक्त हो रही हैं।

लेकिन सरकार द्वारा आजीविका का यह माध्यम भी अब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता जा रहा है। इस संबंध में संस्था के एक सदस्य ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि कई बार महिलाओं को काम के बाद भी उन्हें पैसा नहीं दिया जाता है। जो महिलाएं पैसे के बारे में मांग करती हैं तो उन्हें समूह से निकालने की धमकी दी जाती है। जिससे महिलाओं की आवाज़ बाहर निकल कर सामने नहीं आ पाती है। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है बल्कि महिलाओं के रोजगार से भी जुड़ा हुआ एक गंभीर मसला है। यदि सरकार द्वारा संचालित इस परियोजना को भ्रष्टाचार मुक्त नहीं बनाया गया तो एक बार फिर से यह महिलाएं मिनरल्स जैसी जानलेवा इकाई में काम करने को मजबूर हो जाएंगी।

(राजस्थान के अजमेर से महेश कुमार योगी की ग्राउंड रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles