Saturday, April 27, 2024

उत्तराखंड: खतरे में विकास नगर, जल विद्युत निगम की घोर लापरवाही 

विकास के नाम पर पहाड़ों को काटकर और खनन के नाम पर नदियों को खोखली करने के बाद अब उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार नहरों की मरम्मत के काम में भारी लापरवाही करके नगरों और गांवों के लिए खतरा पैदा कर रही है। ऐसा ही एक मामला पछवादून की शक्तिनहर का है। उत्तराखंड जल विद्युत निगम के दो पावर हाउस चलाने वाली इस नहर के मरम्मत कार्य में हुई लापरवाही और धांधली के कारण यह नहर पछवादून के सबसे बड़े शहर विकास नगर और जिले के सबसे बड़े गांवों में शुमार ढकरानी के लिए खतरा बन गई है।

खास बात यह है कि इसी वर्ष मई में जब 5 वर्षों के बाद इस नहर की मरम्मत की जा रही थी तो लोगों ने काम में लापरवाही का आरोप लगाते हुए विरोध किया था। स्थानीय व्यापारियों और कांग्रेस ने धरना-प्रदर्शन भी किया था। खुद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा भी धरने-प्रदर्शन में शामिल हुए थे। यूजेवीएनएल के तमाम अधिकारियों, जिले के प्रशासनिक अधिकारियों और यहां तक कि मुख्यमंत्री को भी शिकायत पहुुंचाई गई थी, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। नतीजा यह हुआ कि नहर में उसकी अधिकतम क्षमता के बराबर पानी छोड़े जाने से पहले ही नहर के किनारे धंसने लगे हैं। करीब 70 हजार क्यूसेक पानी के बहाव से नहर के तटों का कटाव रोकने के लिए रेत के कट्टे लगाये जा रहे हैं। ये फौरी उपाय कटाव रोकने में नाकाफी साबित हो रहे हैं।

नहर से हो रहे कटाव को लेकर लगातार उठ रही आवाजों के बीच जनचौक प्रतिनिधि ने विकासनगर और ढकरानी गांव के आसपास इस नहर के सबसे संवेदनशील हिस्सों का जायजा लिया। यहां भीमावाला से कुछ दूर करीब दर्जनभर ऐसी जगहें दिखी, जहां खतरनाक तरीके से नहर की तट में कटाव हो रहा है। भीमावाला में नहर के एक तरफ विकासनगर की तहसील और एसडीएम कार्यालय हैं। इसके साथ ही विकासनगर की घनी बस्ती शुरू हो जाती है। नहर के दूसरी तरफ ढकरानी गांव है, जो देहरादून जिले के सबसे बड़े गांवों में शामिल है। नहर के दोनों तटों का कटाव एक तरफ जहां विकासनगर के लिए खतरा पैदा कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ ढकरानी गांव भी खतरे की जद में है।

विकासनगर के भीमावाला से करीब एक किलोमीटर आगे बढ़ते ही नहर के दोनों तरफ कटाव नजर आने लगता है। कटाव कुछ जगहों पर मामूली है तो कुछ जगहों पर बड़ा हिस्सा पूरी तरह से धंस चुका है, खिसक चुका है या फिर वहां दरारें नजर आ रही हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार तीन दिन पहले तक पानी का स्तर करीब डेढ़ मीटर नीचे था और लगभग सभी जगह नहर के किनारे धंसे हुए या टूटे हुए नजर आ रहे थे। तीन दिन से पानी बढ़ गया है। फिलहाल शक्ति नहर में उसकी पूरी क्षमता के बराबर यानी करीब 7 हजार क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया है। ज्यादा पानी छोड़े जाने से नहर के टूटे हुए किनारे तो नजर नहीं आ रहे हैं, लेकिन अब ऊपर की तरफ कटाव शुरू हो गया है। 

इससे संकेत मिलता है कि पानी के अंदर तटों का कटाव पहले से ज्यादा बढ़ गया है। स्थानीय लोगों ने हमें जगह-जगह कटाव रोकने के रखे गये रेत के कट्टे दिखाए। इनमें से कुछ पानी के बहाव के साथ डूब गये हैं, नीचे खिसक गये हैं या उनके अंदर भरी रेत धीरे-धीरे बह गई है। जिन जगहों पर नहर के सतह से लगे रेत के कट्टे दिख रहे हैं, वे किसी भी तरह से पानी के तेज बहाव को रोकने में समर्थ नजर नहीं आ रहे हैं। परिणाम यह है कि तटों का कटाव लगातार बढ़़ रहा है। कुछ जगहों पर किसी सफेद पदार्थ से नहर के किनारों का ट्रीटमेंट किया गया है। लोगों का कहना है यह स्टील या लोहा है, इससे किनारों का कटाव छिप तो गया है, लेकिन रुका नहीं है। कटाव लगातार बढ़ रहा है। इससे विकासनगर का भीमावाला और कचहरी परिसर के साथ ही नहर के दूसरी तरफ स्थित ढकरानी पर खतरा लगातार बढ़ रहा है।

यमुना नदी पर डाकपत्थर से निकलने वाली पछवादून की यह सबसे बड़ी और प्रमुख नहर है। इसे शक्ति नहर के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड जल विद्युत निगम इस नहर से दो हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट चलाता है। 33.75 मेगावाट का प्रोजेक्ट ढकरानी में है और 51 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाला हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट ढालीपुर में है। ये दोनों पावर प्रोजेक्ट उत्तराखंड जल विद्युत निगम के प्रमुख हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में शामिल हैं। लेकिन मरम्मत और रखरखाव के नाम पर शक्ति नहर में हुई धांधली और लापरवाही न सिर्फ विकासनगर और ढकरानी गांव के एक बड़े हिस्से की लिए खतरा बन गई है, बल्कि इससे यूजेवीएनएल को भी बिजली उत्पादन का नुकसान होने की आशंका बनी हुई है। हालांकि फिलहाल उत्तराखंड जल विद्युत निगम के अधिकारी इस मामले में कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं हैं।

शक्ति नहर की सफाई और मरम्मत के लिए हर पांच वर्ष में एक महीने का क्लोजर लगाया जाता है। यानी कि एक महीने के लिए नहर में पानी बंद कर दिया जाता है। इस वर्ष 25 मई को एक महीने के लिए क्लोजर लगा था। 25 जून तक नहर की सफाई और मरम्मत का काम किया जाना था। 17 करोड़ रुपये की लागत से नहर का बेस नया बनाने के साथ ही किनारों की मरम्मत भी की जानी थी। जब क्लोजर लगा और मरम्मत का काम शुरू हुआ तो स्थानीय लोगों ने देखा कि नहर से बेड यानी बेस कई जगहों पर टूटा हुआ है। लेकिन मरम्मत के नाम पर सिर्फ लीपोपोती की जा रही है।

कांग्रेस सेवादल से जुड़े और स्थानीय व्यवसायी भास्कर चुघ अपने कुछ साथियों के साथ पानी का स्तर बढ़ने के बाद नहर की मौजूदा स्थिति का जायजा लेने के लिए भीमावाला क्षेत्र में मौजूद थे। भास्कर चुघ ने ही क्लोजर के दौरान मरम्मत के कामों में होने वाली लापरवाही के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाई थी। बाद के विकासनगर के कुछ अन्य व्यापारी भी इस विरोध में उनके साथ जुड़ गये थे। एसडीएम से लेकर डीएम और उत्तराखंड जल विद्युत निगम के अधिकारियों से लेकर सीएम तक शिकायत करने के बाद भी जब मरम्मत के कामों में सुधार नहीं हुआ तो उन्होंने यह बात अपनी पार्टी के मंच पर रखी। 

इसके बाद कांग्रेस भी विरोध में उतर आई। कई दिनों तक विकासनगर में और शक्ति नहर के आसपास धरने-प्रदर्शन का दौर चला। खुद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए विकासनगर आये। एक बार फिर पार्टी स्तर पर संबंधित अधिकारियों और सीएम सहित कई जन प्रतिनिधियों को नहर के मरम्मत के काम में हो रही लापरवाही के बारे में अवगत कराया गया। भास्कर चुघ बताते हैं कि इसके बाद भी कहीं से कोई कार्रवाई नहीं हुई। एक महीने और 5 दिन तक क्लोजर चला। इस दौरान 17 करोड़ रुपये ठिकाने लगा दिये गये। दोनों हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बंद होने से बिजली उत्पादन का जो नुकसान हुआ वह अलग था।

ढकरानी गांव के पूर्व ग्राम प्रधान हाजी शरीफ अहमद कहते हैं कि जब क्लोजर लगा तो साफ नजर आ रहा था कि नहर का बेस कई जगह से उखड़ा हुआ है। पूरे बेस की मरम्मत किये जाने की जरूरत थी। लेकिन, मरम्मत के नाम पर सिर्फ लीपापोती की गई। यहां तक तक नहर का पानी ठीक से सुखाये बिना ही बेस की मरम्मत करने का औपचारिकता कर ली गई। शरीफ अहमद कहते हैं कि अब जो नहर के किनारे टूट रहे हैं, उसकी असली वजह बेस की मरम्मत न होना ही है। पिछले वर्षों तक नहर की तली में भरी गाद के कारण ज्यादा धंसाव नहीं हुआ। लेकिन इस बार क्लोजर में गाद निकाले जाने के बाद बेड पूरी तरह खोखला हो गया। इसके बाद नहर में पानी छोड़ा गया तो किनारे धंसने शुरू हो गये हैं।

व्यापारी और कांग्रेस सेवादल के कार्यकर्ता भास्कर चुघ के अनुसार उत्तराखंड जलविद्युत निगम की यह लापरवाही विकासनगर और ढकरानी गांव के लिए बड़ी तबाही का कारण बन सकती है। अभी नये सिरे से मरम्मत  वर्षों के बाद होनी है। फिलहाल नहर के किनारों पर जिस तरह से धंसाव हो रहा है उससे नहीं लगता कि नहर अगले 5 साल तक ठीक-ठाक चल पाएगी। वे कहते हैं कि नहर में क्लोजर लगाना अपने आप में एक बड़ी घटना होती है। इससे एक तरफ जहां नहर के तमाम जलीय जन्तुओं की जान चली जाती है, वहीं दूसरी ओर इस दौरान शक्ति नहर से चलने वाले सभी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट भी बंद हो जाते हैं। भीषण गर्मी के एक महीने क्लोजर लगने से यूजेवीएनएल को 25 सौ मेगावाट से ज्यादा बिजली का नुकसान होता है, जो बिजली की कमी वाले राज्य के लिए बड़ा नुकसान है।

शक्ति नहर के साथ ही इस नहर का पार करने के लिए बनाये गये पुल भी बेहद जर्जर हालत में पहुंच गये हैं। शक्ति नहर के साथ ही उस पर बने पुलों का निर्माण वर्ष 1960 में किया गया था। बताया जाता है ये पुल अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं, इसके बावजूद न सिर्फ इन पुलों को इस्तेमाल हो रहा है, बल्कि नये पुल बनाने की भी दूर-दूर तक कोई योजना नहीं है। ढकरानी गांव में जाने के लिए बनाया गया पुल सबसे बुरी हालत में है। जनचौक प्रतिनिधि ने इस पुल का जायजा लिया। न सिर्फ पुल की हालत जर्जर हो चुकी है, बल्कि इस पुल के किनारे भी धंसने की आशंका बनी हुई है। ढकरानी गांव के लोग जान जोखिम में डालकर इस पुल से अपने गांव पहुंच रहे हैं।

( उत्तराखंड से त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट )

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