नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और एम. के स्टालिन के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार के बीच एक के बाद एक किसी न किसी मुद्दे पर तीखा संघर्ष चल रहा है, इस संघर्ष का वर्तमान समय में एक बड़ा मुद्दा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP-2020) के तहत प्रस्तावित त्रिभाषा फार्मूला (TLF) है।
केंद्र सरकार तमिलनाडु पर इस बात के लिए दबाव बना रही है कि वह अपने राज्य के सरकारी स्कूलों और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में त्रिभाषा-फार्मूला लागू करें, मतलब बच्चों को तीन भाषाएं पढ़ाए। केंद्र सरकार का कहना है कि तमिलनाडु प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) के तहत संवैधानिक तौर पर इस बात के लिए बाध्य है कि वह त्रिभाषा-फार्मूला अपने राज्य के सरकारी स्कूलों में लागू करे।
तमिलनाडु की सरकार किसी भी कीमत पर इन फार्मूलों को स्वीकार करने के तैयार नहीं, उसका कहना है कि वह पुराने दो भाषा फार्मूले पर कायम रहेगी, वह सिर्फ बच्चों को दो भाषाएं पढ़ायेगी, तमिल और अंग्रेजी। इन दोनों के अलावा कोई तीसरी भाषा नहीं।
उसका कहना है कि वह संवैधानिक तौर पर केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए बाध्य नहीं है, क्योंकि शिक्षा संविधान में समवर्ती सूची में है। यहां ध्यान रेखांकित कर लेना जरूरी है कि समवर्ती सूची संविधान के उन विषयों की सूची है, जिस पर केंद्र और राज्य सरकारों का समान अधिकार है। ऐतिहासिक तौर पर 1975 से पहले शिक्षा राज्य सूची का विषय था। मतलब साफ है संविधान सभा ने शिक्षा नीति तैयार करने का काम पूरी तरह राज्यों को सौंपा था।
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि इस तीसरी भाषा के नाम पर नरेंद्र मोदी सरकार तमिलनाडु पर नए सिरे से हिंदी थोपना चाहती है, जिसका लंबे समय से तमिलनाडु में विरोध होता रहा है। दूसरी तरफ नरेंद्र सरकार में शिक्षा-मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वह त्रिभाषा फार्मूला स्वीकार नहीं करता है, तो उसे समग्र शिक्षा अभियान के लिए आंवटित धनराशि नहीं दी जाएगी। तमिलनाडु का कहना है कि इस राशि पर उसका संवैधानिक अधिकार है। तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री ने कहा कि तमिलनाडु के बच्चों पर जबर्दस्ती तीन भाषाएं थोपी नहीं जा सकती हैं।
उन्होंने कहा कि हम अपने स्कूलों में पहले की तरह सिर्फ दो भाषाएं पढ़ाएंगे, तीसरी भाषा सीखने का बोझ बच्चों के ऊपर नहीं डालेंगे। इसके साथ तीसरी भाषा सिखाने के लिए हमारे पास न पर्याप्त शिक्षक हैं और न ही उसके लिए जरूरी बजट है। उनका यह भी कहना है कि यदि हमारे पास अतिरिक्त बजट और संरचनागत व्यवस्था होगी, तो भी हम अपने बच्चों को सबसे पहले तीसरी भाषा सिखाने की जगह, कम्प्यूटर और एआई (AI) प्राथमिक स्तर से ही सिखाएंगे और गणित एवं विज्ञान पर जोर देंगे। उन्होंने यह कहा कि हालांकि तमिलनाडु शिक्षा पर अपने बजट का सबसे अधिक खर्च करने वाला राज्य है।
शैक्षणिक क्षेत्र में हमारी उपलब्धियां तुलनात्मक तौर पर काफी बेहतर हैं, लेकिन बावजूद इसके हम अपने स्कूलों को और बेहतर बनाने के लिए जरूरी आर्थिक संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। यदि हम शिक्षा क्षेत्र के लिए और संसाधन जुटाने में कामयाब होते हैं, तो हम बच्चों की तीसरी भाषा सिखाने के लिए धन खर्च करने की जगह शिक्षा के अन्य बुनियादी मदों में खर्च करेंगे।
इसके साथ तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार के सामने यह भी चुनौती पेश की है कि भारत सरकार किसी राज्य का मॉडल पेश करे, जहां त्रिभाषा फार्मूला लागू किया गया है और इसका बच्चों के विकास, उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों और उस राज्य की समग्र शिक्षा व्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ा हो।
सवाल यह है कि आखिर केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत देश के तहत तीन भाषाएं सिखाने पर इतना जोर क्यों दे रही है। इस प्रश्न का जवाब देने से पहले त्रिभाषा फार्मूला क्या है, कब शुरु हुआ और इसे क्यों शुरू किया गया?
1968 में इंदिरा गांधी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत त्रिभाषा फार्मूला प्रस्तावित किया। यह फार्मूला डीएस कोठारी के नेतृत्व में बने आयोग ने प्रस्तुत किया। इसमें अंग्रेजी-हिंदी के साथ हिंदी भाषी राज्यों में दक्षिण भारत की कोई भाषा (तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम) पढ़ाने की योजना थी और दक्षिण भारतीय राज्यों में अंग्रेजी के साथ हिंदी और उनकी अपनी राज्य के स्तर की आधिकारिक भाषा। जैसे तमिलानाडु में अंग्रेजी के साथ हिंदी और तमिल भाषा। केरल में अंग्रेजी हिंदी के साथ मलयालम। तमिलनाडु ने घोषित तौर पर त्रिभाषा-फार्मूला स्वीकार नहीं किया, वहां दो भाषाएं ही पढ़ाई गईं। अंग्रेजी और तमिल।
तमिल तमिलनाडु में राज्य स्तर की आधिकारिक भाषा है। सच यह है कि भारत के किसी राज्य ने भी कभी त्रिभाषा फार्मूला लागू नहीं किया। अधिकांश राज्यों में उस राज्य की भाषा के साथ, दूसरी भाषा अंग्रेजी पढ़ाई जाती है। उसमें बहुत कम ऐसे राज्य हैं, जहां सरकारी स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर अंग्रेजी पढ़ाई जाती हो।
यदि औपचारिक तौर पर पढ़ाई भी जाती है, तो नहीं के बराबर बच्चे उसमें दक्ष हैं। यूपी, बिहार, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश और हरियाणा की स्थिति तो यह है कि सरकारी स्कूलों में तीन भाषाएं कौन कहे, सिर्फ एक भाषा हिंदी पढ़ाई जाती है। अंग्रेजी के लिए न अध्यापक हैं, न कोई पाठ्यक्रम। विज्ञान और गणित पढ़ाने के लिए तो अध्यापक हैं नहीं, अंग्रेजी पढ़ाने के लिए अलग से अध्यापक की बात ही क्या की जाए।
अन्य राज्यों और तमिलनाडु में अंतर यह है कि उसने घोषित तौर पर त्रिभाषा-फार्मूला नहीं स्वीकार किया, लेकिन व्यवहार में अधिकांश राज्यों ने इसे नहीं अपनाया। जिन हिंदी भाषी राज्यों से यह उम्मीद की गई थी कि वे हिंदी और अंग्रेजी के साथ कोई दक्षिण भारतीय भाषा तीसरी भाषा के तौर पर पढ़ाएंगे, उन्होंने किसी भी राज्य में इसे पढ़ाने की कोई शुरुआत तक नहीं की।
यहां तक कि हिंदी भाषी राज्य दो भाषा की जगह सिर्फ और सिर्फ एक भाषा हिंदी ही पढ़ाते रहे। प्राथमिक स्तर पर अंग्रेजी तो आज भी कहीं-कहीं, एक्का-दुक्का सरकारी स्कूलों में पढ़ाई जाती है। किसी तरह जूनियर हाईस्कूल के स्तर पर अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू होती है। हां जूनियर हाईस्कूल या हाईस्कूल के स्तर पर तीसरी भाषा के नाम पर संस्कृत भाषा पढ़ाने का नाटक सा किया जाता है। संस्कृति हिंदी की तथाकथित जननी, जिसे भारत में बोलने वाला कोई भाषा-भाषी समूह नहीं है।
देश के किसी राज्य में त्रिभाषा-फार्मूला लागू नहीं हुआ, जिसे तमिलनाडु पर लागू करने का दबाव डाला जा रहा है। देश के स्तर पर और विभिन्न राज्यों के स्तर पर एक भाषी, द्वि-भाषी और त्रिभाषी लोगों की संख्या के आधार पर समझ सकते हैं। सबसे पहले हिंदी पट्टी के हिंदी भाषी राज्यों के आंकड़ों को लेते हैं। हिंदी भाषी राज्यों में 10 प्रतिशत से कम लोग ऐसे हैं, जो दो भाषाएं बोल सकते हैं। इन दो भाषाओं में ज्यादातर हिंदी और अंग्रेजी या हिंदी और उर्दू बोलने वाले हैं। उत्तर प्रदेश में सिर्फ 11.45 प्रतिशत लोग हैं, जो दो भाषाएं बोल सकते हैं, बिहार में ऐसे लोगों का प्रतिशत 12.82, मध्यप्रदेश में 13.51 प्रतिशत और राजस्थान में 10.9 प्रतिशत।
1968 में त्रिभाषा फार्मूले के आधार पर देखें, हिंदी भाषा-भाषी राज्यों में ऐसे लोग 2 प्रतिशत से कम हैं, जो तीन भाषाएं बोल सकते हों। हिंदी भाषी राज्यों में जो दो भाषा बोलने वाले लोग हैं, उसमें अपवाद स्वरूप ही दक्षिण भारतीय कोई भाषा बोलने वाले लोग मिलेंगे, जो मिलेंगे वे भी वे लोग हैं, जो दक्षिण भारत के हैं और किसी हिंदी भाषी राज्य में बस गए हैं। हिंदी भाषी राज्यों में थोड़े लोग दो भाषा बोलते हैं, वह या तो हिंदी और उर्दू है या हिंदी और अंग्रेजी है।
त्रिभाषा फार्मूला के आधार पर देखें तो देशव्यापी स्तर पर स्थिति कोई खास अच्छी नहीं है। पूरे देश में सिर्फ 7.1 प्रतिशत लोग हैं, जो तीन भाषाएं बोल सकते हैं। हां दो भाषाएं बोलने वाले 24.79 प्रतिशत लोग हैं। यहां एक बार फिर रेखांकित कर लेने की जरूरत है कि ये दो या तीन भाषाएं बोलने वाले ज्यादातर लोग हिंदी या राज्यों की अन्य भाषाएं जैसे पंजाबी, मराठी, गुजराती आदि बोलते हैं। इसके अलावा अंग्रेजी और उर्दू बोलने वाले हैं।
हिंदी पट्टी से सटे पश्चिमोत्तर भारत (गुजरात, महाराष्ट्र) और पंजाब में गुजराती, मराठी और पंजाबी के साथ हिंदी भी आमतौर पर लोग बोलते हैं। इसका कारण स्कूलों का त्रिभाषा फार्मूला कम हिंदी पट्टी से सटे होना, सांस्कृतिक-धार्मिक तौर पर जुड़े होना और व्यापार-कारोबार, फिल्में हैं। इसके साथ ही इन भाषाओं का आर्य-भाषा भाषी समूह का होना, जिस समूह की हिंदी है।
कोई हिंदी भाषी राज्य या पश्चिमोत्तर का राज्य अपने यहां दक्षिण भारत की कोई भाषा अपने स्कूलों में बच्चों को त्रिभाषा फार्मूले के तहत पढ़ा रहा हो तथ्य इसकी पुष्टि नहीं करते। दूसरे शब्दों में कहें तो त्रिभाषा फार्मूला अब तो पूरी तरह असफल रहा है, त्रिभाषा कौन कहे, सही अर्थों में तो द्वि-भाषा फार्मूला तक नहीं के बराबर सफल है।
अंग्रेजी रोजी-रोटी और व्यापार-कारोबार और दुनिया से संबंध की भाषा है, जिसे सीखना ही है, खासकर 1990-1991 के आर्थिक उदारीकरण और निजीकरण के बाद। दूसरी भाषा के नाम पर हिंदी या अपने राज्यों की भाषा लोग सीखते हैं।
सच्चे अर्थों में द्विभाषी राज्य पूर्वोत्तर के राज्य और गोवा हैं। बहुभाषावाद के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य गोवा है – इसकी 77.21% आबादी द्विभाषी है और 50.82% त्रिभाषी है। गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहां त्रिभाषी दर 50% से अधिक है, उसके बाद चंडीगढ़ 30.51% और अरुणाचल प्रदेश 30.25% है। द्विभाषी दर वाले अन्य राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (67.64%), अरुणाचल प्रदेश (64.03%), सिक्किम (63.71%), नागालैंड (62.15%)। हां महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है, जहां 51.1 प्रतिशत लोग दो भाषाएं बोल सकते हैं।
यहां भी दो भाषा मतलब हिंदी- मराठी या हिंदी-अंग्रेजी, मराठी-गुजराती या उर्दू है। हां सबसे अधिक त्रिभाषा बोलने वालों में तमिल-तेलगु-कन्नड़ भाषा-भाषी लोग भी हैं। हिंदी भाषा-भाषी यह तो चाहते हैं कि द्रविड़ियन भाषा परिवार के लोग हिंदी सीख लें, लेकिन उन्हें लगता है कि उन्हें कोई द्रविड़ भाषा ( तमिल, तेलगु, कन्नड़ या मलयालम) सीखने की जरूरत नहीं। हिंदी भाषियों को लगता है कि दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर के लोगों का राष्ट्रीय कर्तव्य है कि वे हिंदी सीखें, क्योंकि हिंदी उनकी नजर में राजभाषा और राष्ट्रभाषा है, उन्हें कोई दक्षिण भारतीय भाषा सीखने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि ये छोटी-मोटी भाषाएं हैं, क्षेत्रीय भाषाएं हैं। राष्ट्रीय एकता और बंधुता के लिए इनको सीखने की कोई जरूरत नहीं है।
त्रिभाषा फार्मूला और हिंदी-तमिल विवाद
सवाल यह है कि त्रिभाषा फार्मूला लागू करने की बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) में की गई है, तो हिंदी इसमें कहां से विवाद का विषय बन गई है, क्यों तमिलनाडु यह कह रहा है कि त्रिभाषा फार्मूले के नाम पर हिंदी थोपने की कोशिश की जा रही है? आखिर त्रिभाषा फार्मूले में हिंदी पढ़ाने का सवाल कहां से आ गया। इस सवाल का जवाब संविधान सभा और संविधान में भारत सरकार की आधिकारिक भाषा (राजभाषा) क्या हो, इससे जुड़ा हुआ है।
संविधान सभा में मुद्दों पर सबसे तीखी बहस हुई, उसमें हिंदी को भारत की (केंद्र सरकार) आधिकारिक भाषा बनाने से जुड़ा हुआ है, जिसे राज भाषा भी कहते हैं। संविधान सभा ने एक वोट के बहुमत से हिंदी को भारत सरकार (केंद्र सरकार) की आधिकारिक भाषा घोषित किया यानी राजभाषा घोषित किया गया।
संविधान में यह प्रावधान तो कर दिया गया, लेकिन इसके साथ ही यह जोड़ दिया गया कि 15 सालों तक इसे लागू नहीं किया जाएगा। हिंदी के साथ अंग्रेजी भी राजभाषा बनी रहेगी। 1965 में इस स्थिति को बदलने की कोशिश की गई। हिंदी को एकमात्र भारत सरकार की आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया गया है।
दक्षिण के राज्यों ने इसका तीखा विरोध किया, विशेषकर तमिलनाडु ने। बड़े पैमाने पर तमिलनाडु में इसके विरोध में आंदोलन हुआ, कुछ लोगों की जान गई। उसके बाद केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को वापस ले लिया। पहले जैसी स्थिति बहाल कर दी गई। हिंदी के साथ अंग्रेजी भी भारत की आधिकारिक भाषा बनी रही, आज भी है।
सवाल यह है कि भारत में 543 जीवित भाषाएं हैं, वे भाषाएं जो लोगों द्वारा बोली जाती हैं या लिखी-पढ़ी जाती हैं। 23 भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में आधिकारिक भाषाओं का दर्जा प्राप्त है। इसके अलावा भारत में भाषाओं की एक और श्रेणी है, जिन्हें भारत सरकार ने क्लासिकल भाषाओं का दर्जा दिया है। इसमें संस्कृत, तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम, उड़िया और मराठी शामिल है। इस देखें तो भारत सरकार (केंद्र सरकार) की दो आधिकारिक भाषाएं हैं- हिंदी और अंग्रेजी।
राज्यों की अपनी-अपनी आधिकारिक भाषाएं हैं, जैसे पंजाब की पंजाबी, महाराष्ट्र की मराठी, तमिलनाडु की तमिल, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश आदि हिंदी भाषी राज्यों की हिंदी। हिंदी भाषी राज्यों की वही आधिकारिक भाषा है, जो केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा है-हिंदी। क्यों संविधान केवल केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता देता है, अंग्रेजी तो फिलहाल के लिए है। हालांकि यह फिलहाल 75 वर्षों से अभी तक चल रहा है, आगे भी चलता ही रहेगा। फिर हिंदी-तमिल का विवाद क्या है?
विवाद यह है कि दक्षिण के अधिकांश राज्य, विशेषकर तमिलनाडु केंद्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर अंग्रेजी और अपने राज्य की आधिकारिक भाषा के तौर पर तमिल भाषा की अपने राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ाते हैं। कमोवेश यही काम अधिकांश राज्य करते हैं। वे अपने प्रदेश की आधिकारिक भाषा और केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा पढ़ाते हैं। जिन राज्यों की आधिकारिक भाषा हिंदी है और राज्य की आधिकारिक भाषा भी हिंदी है, वह आमतौर पर सिर्फ एक भाषा हिंदी पढ़ाते हैं। हां प्राइवेट स्कूल अंग्रेजी पर जोर देते हैं और उसके साथ हिंदी पढ़ाते हैं। पंजाब के स्कूल पंजाब की आधिकारिक भाषा पंजाबी के साथ अंग्रेजी पढ़ाते हैं, यदि संभव होता है।
हालांकि सैद्धांतिक तौर पर त्रिभाषा फार्मूले के तहत तमिलनाडु इस बात के लिए आजाद है कि वह त्रिभाषा फार्मूले के तहत तमिल और अंग्रेजी के साथ क्लासिकल तमिल पढाएं। लेकिन यह सिर्फ कहने-सुनने के लिए सैद्धांतिक बातें हैं। भारत की केंद्रीय सत्ता, यहां तक कि संविधान सभा का बहुमत भी यही सोचता था कि हिंदी को राजभाषा होना चाहिए। उसे सभी राज्यों में पढ़ाया जाना चाहिए। इससे देश की एकता-अखंड़ता मजबूत होगी। भारतीयता की भावना बढे़गी। देश में नागरिकों में एकता और बंधुता की भावना बढ़ेगी। इसी सोच को ध्यान में रखकर कोठारी आयोग ने त्रिभाषा फार्मूला प्रस्तुत किया था।
कहने को इसमें कहा गया था कि हिंदी प्रदेशों के राज्य दक्षिण भारतीय भाषाएं अपने स्कूलों में पढ़ाएंगे। ऐसा कभी घटित नहीं हुआ। त्रिभाषा फार्मूला कहने को छिपा उद्देश्य, लेकिन खुली हुई बात यह थी कि दक्षिण भारत के राज्य और पूर्वोत्तर के राज्य अपने बच्चों को हिंदी पढ़ाएं, क्योंकि दिल्ली में बैठी सरकारें हमेशा यह सोचती हैं कि हिंदी ही देश को एकजुट रख सकती है।
वहीं देश में एकता-अखंड़ता का विचार पैदा कर सकती है। हिंदी सबको सीखना पढ़ना चाहिए। असल में इसके पीछे की सोच यह है कि हिंदी भाषी समूह ही सबसे ज्यादा देशभक्त है, वही देश की सभ्यता-संस्कृति का वाहक है, संरक्षक है। इस सभ्यता-संस्कृति को हिंदू संस्कृति-सभ्यता भी कहा जा सकता है, इसकी मूल चाह यही है।
दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर के राज्य हमेशा हिंदी पट्टी और पश्चिमोत्तर (गुजरात) की नजर में देश की एकता-अखंडता के लिए चुनौती रहे हैं, हिंदी और उसकी जननी संस्कृति से जुड़ी सभ्यता-संस्कृति (आर्य-वैदिक-ब्राह्मणवादी) ही देश को एकजुट रख सकती है, उसी का पूरे देश पर वर्चस्व होना चाहिए। इस सभ्यता-संस्कृति और उसकी वाहक भाषा हिंदी-संस्कृति को दक्षिण भारत के राज्य, विशेषकर तमिलनाडु हमेशा चुनौती देता रहा है।
आजादी से पहले के स्वतंत्रता आंदोलन और आजादी के बाद कभी तमिलनाडु ने हिंदी-हिंदू संस्कृति के वर्चस्व को स्वीकार नहीं किया। संविधान सभा में पूरे देश पर हिंदी थोपने की कोशिश में सैद्धांतिक सफलता के बाद भी व्यवहारिक तौर यह काम किया नहीं जा सका, क्योंकि हिंदी के साथ अंग्रेजी भी केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा बनी रही। अब उस काम को त्रिभाषा फार्मूले के नाम पर देश के सारे राज्यों पर थोपने की कोशिश की जा रही है, जिसमें तमिलनाडु भी शामिल है। इसके लिए शिक्षा का बजट रोक लेने और संविधान विरोधी काम करने की धमकियां भी दी जा रही हैं।
तमिलनाडु आज की तारीख में वह अकेला राज्य है, जो नरेंद्र मोदी के हिंदू राष्ट्र की परियोजना का हर स्तर पर खुला विरोध कर रहा है। तमिलनाडु पर त्रिभाषा फार्मूले के नाम पर हिंदी थोपने की कोशिश पर नरेंद्र मोदी सरकार की हिंदू राष्ट्र की परियोजना का ही एक हिस्सा है, जिसका हर कीमत पर विरोध करने का निर्णय तमिलनाडु सरकार ने लिया है, यहां तक कि मुख्यमंत्री स्टालिन ने यह भी कह दिया है कि भले ही सरकार क्यों न चली जाए, हम त्रिभाषा फार्मूले के नाम पर तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की कोशिश को स्वीकार नहीं करेंगे।
(डॉ. सिद्धार्थ लेखक और पत्रकार हैं।)
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