Sunday, October 1, 2023

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जुबान और भाषा किसी मजहब की बपौती नहीं- जावेद अख्तर    

मशहूर तरक्कीपसंद अदीब और नगमाकार जावेद अख्तर को इस बात पर गहरा अफसोस है कि उर्दू को सिर्फ मुसलमानों की जुबान मान लिया गया है। पाकिस्तान दौरे के बाद चंडीगढ़ आए जावेद अख्तर ने कहा कि अगर उर्दू महज...

देवेंद्र सत्यार्थी: लोकगीतों में धड़कती जिंदगी

देवेंद्र सत्यार्थी एक विलक्षण इंसान थे। पूरे हिंद उपमहाद्वीप में उनकी जैसी शख़्सियत शायद ही कोई हो। वे उर्दू-हिंदी-पंजाबी जुबान के अज़ीम अदीब थे। मगर इन सबसे अव्वल उनकी एक और शिनाख़्त थी, लोकगीत संकलनकर्ता की। अविभाजित भारत में...

हिंदी एक भाषा नहीं- एक संस्कार, एक जीवन शैली है

हिंदी साहित्य और आलोचना को समृद्ध करने में लगे मनीषी निरंतर यह प्रयास करते रहते हैं कि देश और दुनिया में जो कुछ भी नया घट रहा है उसकी अभिव्यक्ति हिंदी में हो या हिंदी को इतना समर्थ बना...

राहुल सांकृत्यायन: बहुमुखी प्रतिभा, अगाध मेधा और महान सर्जक

मैं जब इंजीनियरिंग प्रथम वर्ष का छात्र था तब मेरे मित्र कृष्णानंद के पड़ोसी छोटे उर्फ राम दुलारे ने मुझे राहुल सांकृत्यायन की लिखी एक पुस्तिका दी 'भागो नहीं दुनिया को बदलो'। मुझे लगा कि मेरे व्यक्तित्व में जो...

क्या कोई कह सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी गंभीर और शालीन वक्ता हैं?

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए पांचवें चरण के मतदान के बीच 27 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र बनारस पहुंचे। वहां उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राजनीति...

एक गैर बिरहोर ने तैयार की आदिम जनजाति बिरहोर के लिए बिरहोर-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश 

27 नवंबर को संस्कृति संग्रहालय एवं आर्ट गैलरी, हजारीबाग में पद्मश्री बुलु इमाम के द्वारा बिरहोर-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश का विमोचन किया गया। इस शब्दकोश को देव कुमार, प्रखंड कार्यक्रम प्रबंधक, जेएसएलपीएस ने तैयार किया है। पद्मश्री बुलु इमाम ने पुस्तक पर...

ख़ास रिपोर्ट: अपनी भाषा में अपनी बात यानि असुरों का अपना रेडियो!

'नोआ हाके असुर अखड़ा रीडियो, एनेगाबु डेगाबु सिरिंगेयाबु दाहां-दाहां तुर्रर….धानतींग नातांग तुरू…।' लातेहार व गुमला जिले के हर साप्ताहिक बाजार में ढोल-मांदर और दूसरे वाद्य यंत्रों से एक शानदार संगीत के साथ कुछ महिलाओं की सामूहिक आवाज लोगों को...

भाषा की गुलामी खत्म किये बिना वास्तविक आज़ादी संभव नहीं

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के लिए आज़ादी का सवाल केवल अंग्रेजों से देश को मुक्त कराना भर नहीं था बल्कि उनके लिए आज़ादी व्यक्ति और समाज की मुक्ति का भी प्रश्न था। यह मुक्ति अपनी भाषा में ही संभव थी...

सांप्रदायिकता और आभिजात्यता में फंसी है हिंदी

रोते-धोते हिंदी दिवस गुजर गया। लोगों ने जमकर अंग्रेजी को गलियां दी और इसके दबदबे का रोना रोया। वैसे, भाषाएं उस अर्थ में मरती नहीं हैं जिस अर्थ में प्राणी मरते हैं। वे गायब जरूर हो जाती हैं। लेकिन...

लगातार पांव पसार रही है हिंदी

संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया। इसी की स्मृति में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। आधुनिक हिंदी की बात की जाए तो इस पर महावीर प्रसाद द्विवेदी का...

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दीगर शायरों से ज़ुदा, बेहद ख़ास और बग़ावती तेवर वाले थे मजरूह सुल्तानपुरी

1 अक्टूबर, 1919 यही वो तारीख है जब तरक़्क़ीपसंद शायर मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म हुआ था। तरक़्क़ीपसंद तहरीक के...