Sunday, April 28, 2024

किस तरह का भारत बनाना चाह रही है हिन्दुत्व की राजनीति

लखनऊ। हाजी जुबैर अहमद लखनऊ की नगर पंचायत ‘बख्शी-का-तालाब’ के रहने वाले हैं और वहां के राशन दुकानदार हैं। उन्होंने पंचायत का चुनाव भी लड़ा था। 15 अगस्त को उनकी 16 वर्षीय मूक व बघिर लड़की ने अपने मोबाइल फोन पर पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस की झांकी की एक तस्वीर लगा दी। एक हिन्दू संगठन के कार्यकर्ताओं ने बख्शी-का-तालाब थाना में शिकायत की और जुबैर पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की मांग की।

थानाध्यक्ष ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 में उनका चालान किया और उन्होंने अपनी जमानत करा ली। आश्चर्य की बात यह है कि जिला पूर्ति अधिकारी संतोष कुमार ने कोटेदार के लाइसेंस को सिर्फ ग्रामीणों के बयान के आधार पर कि जुबैर को पुलिस ले गई है, बिना पुलिस से पता किए ही कि उनका अपराध क्या है, उनकी राशन की दुकान का अनुबंध तत्काल प्रभाव से निलम्बित कर दिया।

ऐसा प्रतीत होता है कि उनके राजनीतिक विरोधियों द्वारा सारी साजिश इसीलिए की गई थी कि जुबैर को कोटेवाली दुकान का विक्रेता न रहने दिया जाए। नहीं तो पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस की तस्वीर लगाना कोई अपराध कैसे हो सकता है? अब जुबैर जिनका उस इलाके में अकेला मुस्लिम परिवार है, भागे-भागे फिर रहे हैं। क्योंकि ऐसी आशंका है कि वे अपने मोहल्ले में जाएंगे तो उन्हें अभद्रता या भीड़ की हिंसा का शिकार बनाया जाए।

जबकि गांव के गरीब दलित लोग जुबैर के पक्ष में हैं। क्योंकि वे राशन वितरण का काम बड़ी इमानदारी से करते थे। बल्कि उन्हें थाने ले जाने पर गांव की दलित महिलाओं ने उनके समर्थन में तहसील पर प्रदर्शन भी किया।

गुजरात के मेहसाना जिले की खेरालू तालुका के लुनवा गांव में इस साल के.टी. पटेल स्मृति विद्यालय में कक्षा दस की बोर्ड परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक अरनाज़ बानो के आए। प्रत्येक वर्ष बोर्ड परीक्षा में सबसे अच्छे अंक लाने वालों को विद्यालय स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित करता है। किंतु इस वर्ष दूसरे, तीसरे, चौथे स्थान पर आए बच्चे तो सम्मानित किए गए किंतु अरनाज़ बानो को मंच पर बुलाया तक नहीं गया। वह अपमान का घूंट पी कर रह गई। घर लौटकर उसने रोते हुए अपनी मां से कहा कि इससे अच्छा तो मैं पढ़ने ही नहीं जाती।

मुजफ्फरनगर के खुब्बापुर गांव के एक निजी विद्यालय की स्वामिनी तृप्ता त्यागी ने अपने विद्यालय के एक सात वर्षीय मुस्लिम लड़के को, सिर्फ उसके धर्म के कारण, अन्य छात्रों से थप्पड़ मरवाए। यानी साम्प्रदायिकता का जहर अब विद्यालयों में बोया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी चन्द्रयान का श्रेय गलत ले रहे हैं। वह श्रेय तो नेहरू को जाता है। उन्हें तो मुजफ्फरनगर की घटना का श्रेय लेना चाहिए क्योंकि उनकी राजनीति का असर यह है कि एक सामान्य विद्यालय की प्रबन्धक भी उनके राजनीतिक ध्रुवीकरण का काम कर रही है। या उस रेल सुरक्षा बल के सिपाही चेतन सिंह जिसने अपने वरिष्ठ को मारने के बाद चुनचुनकर तीन मुस्लिम यात्रियों को मार डाला, की कार्यवाही का श्रेय लेना चाहिए जिसने सरकारी सेवा में रहते हुए भी उनका राजनीतिक काम किया। या मणिपुर में हिन्दू मैतेई व इसाई कुकी के बीच दरार पैदा करने का श्रेय लेना चाहिए जिससे अब आने वाले कई वर्षों तक भारतीय जनता पार्टी की सत्ता में बने रहने की गारंटी हो गई है।

गुजरात में बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार व उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के जुर्म में आजीवन जेल की सजा काट रहे ग्यारह लोगों को पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर समय से पहले जेल से रिहा कर दिया गया।  

इसके बाद अब उत्तर प्रदेश सरकार ने अमरमणि त्रिपाठी व उनकी पत्नी मधुमणि, जो कवयित्री मधुमिता शुक्ल की हत्या के जुर्म में आजीवन जेल की सजा काट रहे थे। उनको समय से पहले जेल से रिहा कर दिया गया है। हत्या के पहले अमरमणि मधुमिता को गर्भवती कर चुके थे। इस 17 वर्ष की अवधि में आधे से ज्यादा समय अमरमणि व मधुमणि ने गोरखपुर चिकित्सा विश्वविद्यालय के अस्पताल के एक निजी वार्ड में बिताया। त्रिपाठी दम्पत्ति के बेटे अमनमणि, जिनके ऊपर खुद अपनी पत्नी की हत्या का मुकदमा चल रहा है, का कहना है कि जिस तरह राम के वनवास से लौटने पर अयोध्या में हर्षोल्लास का वातावरण था उसी तरह का माहौल नौतनवा, त्रिपाठी परिवार के गृह जनपद कुशीनगर के मुख्यालय, पर बना है।

अब राम का इससे ज्यादा अपमान क्या हो सकता है? राम क्यों वनवास पर गए थे एवं अमरमणि एवं मधुमणि क्यों जेल गए थे? क्या इसमें कोई फर्क है या नहीं? ऐसा प्रतीत होता है कि राम अब हिन्दुत्व की राजनीति का मोहरा बन गए हैं। उनका जैसे चाहे इस्तेमाल कर लो।

जिस तरह अब बिलकिस बानो, जिसके ग्यारह बलात्कारी उसी के इलाके में घूम रहे हैं, को अपनी जान कर खतरा है। उसी तरह अब मधुमिता की बहन निधि का कहना है कि त्रिपाठी दम्पत्ति से उसको अपनी जान का खतरा है। महिला पहलवानों के तमाम संघर्ष के बाद भी उनका यौन शोषण करने वाले के बाहुबली भाजपा नेता बृज भूषण शरण सिंह को लगातार सरकार ने बचाया।

अजय मिश्र टेनी के बेटे ने चार किसानों व एक पत्रकार को अपनी गाड़ी से कुचल कर मार डाला लेकिन बेटे आशीष मिश्र को जमानत मिल गई और अजय मिश्र केन्द्र में मंत्री बने हुए हैं। साफ है कि भाजपा सरकार अपने आपराधिक पृष्ठभूमि के, खासकर सवर्ण, लोगों को संरक्षण प्रदान करती है भले ही वह कितना भी दावा करे कि वह अपराध खत्म कर रही है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भाजपा इस देश को कहां ले जाना चाह रही हैं? जब विद्यालयों में जहां अपेक्षा की जाती है कि हम बच्चों के अंदर मानवीय मूल्य पैदा करेंगे ताकि वे एक बेहतर एवं संवेदनशील नागरिक बन सकें। अगर उन्हें जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव करना सिखाएंगे तो हम कैसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं? यदि बच्चे नकारात्मक चीजें सीखेंगे तो आगे उनके जीवन में और विकृतियां आएंगी। वह नफरत सिर्फ दूसरों तक सीमित नहीं रहेगी हो सकता है किसी दिन अपनों को भी निशाना बनाए। दूसरा हमारे संविधान में बराबरी, स्वतंत्रता, न्याय, बंधुत्व जैसे मूल्यों की भी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों के प्रति नर्म रवैया दिखाकर सरकार क्या संदेश देना चाह रही है? यही न कि आप कैसा भी जघन्य अपराध करें, सजा पाने से बच सकते हैं। शर्त सिर्फ यह है कि आपको भाजपा के साथ रहना है। अपराध मुक्त समाज की जगह भाजपा अपराधीयुक्त समाज बना रही है। जहां अपराधी खुले घूमेंगे और निर्दोष, जैसे भीमा-कोरगांव मामले में अथवा दिल्ली दंगों के मामले में कई लोग सालों से जेल में बंद हैं। सिर्फ इसलिए कि वे आऱएसएस-भाजपा की विचारधारा का विरोध करते हैं।

यह देश के विभाजन के बाद पुनः बांटने की कोशिश है, भले ही भौतिक बंटवारा न हो, मानसिक तो होता ही जा रहा है। भाजपा की नीतियां देश में अराजकता पैदा कर रही हैं। जैसे दिन दहाड़े प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को जान से मार डालना, कोई मुस्लिम या दलित यदि गाय लेकर जा रहा हो तो उसे पीट- पीट कर मार डालना, कोई मुस्लिम लड़का हिन्दू लड़की से शादी कर ले तो उनका जीना हराम कर देना। खासकर मुसलमानों की सम्पत्ति पर बुलडोजर चलवा देना। इसके पहले कि उनका कोई जुर्म भी साबित हुआ हो, जानबूझकर धार्मिक यात्राएं मुस्लिम या दलित इलाकों से निकाल कर विपक्षियों को उकसाना ताकि कोई हिंसा हो जाए और विरोधियों को फंसाया जा सके। नाम पूछ कर हमला कर देना, आरएसएस की विचारधारा का विरोध करने वालों को देशद्रोही घोषित कर उनके खिलाफ माहौल बनाना, आदि। शर्म की बात तो यह है कि यह सब धर्म के नाम पर हो रहा है जबकि धर्म तो हमेशा न्याय, सहिष्णुता, करुणा की बात करता है।

अब समय आ गया है कि देश के लोग तय करें कि उन्हें कैसा देश चाहिए?

(संदीप पाण्डेय सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के महासचिव हैं।)

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