Thursday, September 28, 2023

लाल किले से 83 मिनट के भाषण का सार “खाया पीया कुछ नहीं, गिलास फोड़ा आठ आने”

सरोज जी- जन कवि मुकुट बिहारी सरोज- की एक कविता की पंक्ति है; “शेष जिसमें कुछ नहीं ऐसी इबारत, ग्रन्थ के आकार में आने लगी है।” आज यदि वे इसे फिर से लिखते तो ग्रन्थ की जगह 83 मिनट के उस भाषण से जोड़ते जिसे 15 अगस्त की सुबह इस देश की जनता को लाल किले की प्राचीर से झिलाया गया है। जब इस तरह की चीजों पर भी लिखना पड़ता है तो बस कबीरदास  का दोहा ही सहारा देता है कि “देह धरे का दंड है, सब काहू को होय।” यह सामाजिक राजनीतिक जीवन में होने का दण्ड है कि ऐसे भाषण पर भी लिखो- लिखना चाहिए भी क्योंकि वह किसी व्यक्ति का नहीं उस देश के प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन है जिसके हम और आप नागरिक हैं। इसलिए अनदेखी महँगी पड़ सकती है। 

इस बार के पूरे भाषण की धुरी हीन ग्रंथि के मवाद का रिसाव थी। वे उस प्राचीर से बोल रहे थे जहां से 1947 को इसी दिन इस महान देश के आजाद होने का एलान किया गया था। उस ऐतिहासिक दिन की 75वीं वर्षगाँठ पर बोलने का अवसर पाने वाले को भलीभाँति मालूम था कि जिस विचार कुनबे के वे हैं उसने भारत की जनता के उस महान संग्राम में अंगुली तो क्या नाखून तक नहीं कटवाए थे। इसके उलट दो राष्ट्र का सिद्धांत देकर देश के टुकड़े करने के अँग्रेजों के नापाक इरादे को हवा दी थी। यह अपराधबोध आज के भाषण में इस कदर हावी था कि वे स्वतन्त्रता सेनानियों की सूची में दनादन ऐसे नाम जोड़े जा  रहे थे कि वे लोग आज यदि जीवित होते तो इतने बड़े झूठ पर खुद उनके चेहरे भी झेंप से लाल हो जाते। 

गांधी के साथ उनकी हत्या के मुकदमे में संदेह का लाभ देकर बरी किये गए, वे सावरकर बिठाये जा रहे थे, जिन्होंने “अत्यंत विनम्रतापूर्वक” इंग्लैंड की महारानी को चिट्ठियां लिखी थीं और आजादी की लड़ाई से अपने आपको बाहर करने और दरबार की सेवा करने की लिखा पढ़ी में कसमें खाई थीं। उनके अलावा बाकी जिन-जिन के नाम आज जोड़े गए हैं उनने आजादी के लिए क्या-क्या किया, यह इतिहास बदलने की लाख कोशिशों के बाद भी अब तक पता नहीं चल पाया है। शायद महामहिम अगले भाषण में कुछ नयी कहानियां लेकर आएं !!

लगता है, मोदी जी और उनके कुनबे – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – के मन में भारत की जनता की महान कुर्बानियों से भरे इस विराट इतिहास में अल्पविराम, पूर्णविराम के बराबर भी जगह न होने का अपराध बोध बड़ा गहरा है। विश्व इतिहास में ऐसे हादसों का समाधान निकालने का सभ्य तरीका आत्मालोचना का होता है। चर्च का गैलीलियो से, अब्राहम लिंकन का अपने देश के अश्वेतों से, अमरीका का जापान वगैरह से अपने कुकर्मों के लिए माफी मांगने के कुछ उदाहरण गिनाये भी जा सकते हैं। इसी तर्ज पर रास्ता था कि भाई लोग सीधे सादे तरीके से हाथ जोड़कर देश की जनता से कह देते कि ; “भाइयों, बहनों, उस समय की हमारी समझदारी गलत थी, तब के हमारे नेताओं ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा न लेकर गलती की……..अब आगे ऐसी चूक नहीं होगी ,” बात ख़त्म !! मगर ऐसा इसलिए नहीं कह सकते क्योंकि वे आज भी अंग्रेजों को मुक्तिदाता मानते हैं। 

इसीलिये हूण, शक, कुषाण, यवन, मंगोल, तुर्क, मुग़ल सबको गरियाते हैं मगर मजाल है कि भारत की रीढ़ तोड़ देने वाले अँग्रेजों के राज के बारे में चूँ तक भी करें। खुद अंग्रेज इतिहासकार अपनी सरकारों के भारत की जनता के साथ किये पापों पर ग्रन्थ पर ग्रन्थ लिख रहे हैं मगर यहां भक्तिभाव इत्ता गाढ़ा है कि एक शब्द तक नहीं बोलते। ऐसे कलुषित रिकॉर्ड के बाद भी शहीदों में नाम लिखाने की भी लालसा है सो वही होता है जो माननीय 15 अगस्त को लाल किले से कर रहे थे।  उस झंडे को फहरा रहे थे जिसे अशुभ, अपशकुनी और साम्प्रदायिक बताते हुए जिंदगी भर ठुकराते रहे हैं।  

पूरे भाषण में सबसे ज्यादा हावी था वह नाम – जवाहरलाल नेहरू का नाम-  जिसे बोला नहीं गया। इसे लेने में इस कुनबे की रूह कांपती है। इसलिए नहीं कि पंडित जी ने प्रधानमंत्री रहते हुए कोई इनकी भैंस खोल ली थी। नेहरू से इन्हें भय इसलिए लगता है कि नेहरू ने जिस आधुनिक सभ्य, धर्मनिरपेक्ष और वैज्ञानिक रुझान वाले भारत के निर्माण की आधारशिला रखी थी, ये उसे मिटाकर भारत को मध्ययुगीन आर्यावर्त में बदलना चाहते हैं और जाहिर है कि 58 वर्ष पहले दुनिया छोड़ गए नेहरू आज भी इसमें आड़े आते हैं। 

यह दोहराने का कोई अर्थ नहीं कि पूरा भाषण चुनावी भाषण था; क्योंकि सर जी की यूएसपी ही उनका 24 घंटा, सातों दिन, बरसो बरस चुनावी मोड में रहने की है। 

हीनता की इस ग्रंथि को सहलाने के अलावा भाषण की दूसरी ख़ास बात यह थी कि इस बार नाम के वास्ते भी कोई लोकलुभावन घोषणा नहीं थी। हर बार के भाषण की तरह इस बार घर तो छोड़िये छत और छप्पर तक का जिक्र नहीं था।  देश की बड़ी और जानलेवा समस्याओं पर मौन पूरी तरह मुखर था; आकाश छूती महँगाई, रिकॉर्ड दर रिकॉर्ड बनाती बेरोजगारी, दुनिया भर में शर्मसार करती गरीबी का जिक्र तक नहीं था। जनता के लिए सिर्फ और केवल कर्तव्य थे, नयी बातों में फकत  5 जी था सो वो भी मोटा भाई के लिए था। 

जब वे लाल किले से भ्रष्टाचार पर जुमले दाग रहे थे तब आवाज भर की दूरी पर खड़ा सीएजी का दफ्तर पिछली 8 सालों से कुम्भ कर्णी ख़र्राटे ले रहा था और मध्यप्रदेश के धार जिले में उन्हीं की पार्टी की सरकार में उन्हीं की पार्टी के नेताओं की ठेकेदारी में बना बाँध दहाड़ें मार मार कर बह रहा था। पूरा देश देख रहा था कि किस तरह तिरंगे झण्डे के लिए खादी के कपड़े की अनिवार्यता खत्म कर उसे पॉलिएस्टर पर बनवाने और पॉलिएस्टर से जीएसटी हटाकर मोटाभाई की तिजोरी को कुछ सैकड़ा करोड़ से और मोटा करने का धतकरम किया जा चुका है। बाकी भ्रष्टाचार तो राम नाम की लूट की लूट की तरह हरि अनंत हरि कथा अनंता है ही।  

महिलाओं की दशा पर आंसू उस देश की जनता के सामने बहाये जा रहे थे जहां खुद इन्हीं के कर्मों के चलते श्रम शक्ति में महिलायें घटकर 10 प्रतिशत से भी कम रह गयी हैं। बाकी उनके जो हाल हैं सो हैंइयें सो हैंइयें। परिवारवाद पर वे कलप रहे थे जिनके परिवार ने देश की नाक में दम कर रखी है। भाई-भतीजावाद के आलाप के पीछे क्षेत्रीय दलों को निबटाने का इरादा ज्यादा था। वरना राजनीति और बाकी अन्य संस्थानों में भाई भतीजावाद को कोसते में उन्हें अम्बानी और अडानी जैसे भाइयों और भतीजों की याद अवश्य आनी  चाहिए थी जिन्होंने इस देश को अपनी डाइनिंग टेबल पर सजाकर रख दिया है। परम्परा पर गर्व की बात कहते में भी यह नहीं बताया कि वे किस परम्परा की बात कर रहे हैं ? गांधी की या गोडसे की ? भगत सिंह की या सावरकर की ? जोतिबा फुले और बाबा साहब की या मनु और गौतम की ? 

यह सिर्फ उस कहे पर फौरी टिप्पणी है जिसे बोलने में 83 मिनट खर्च किये गए।  विद्वानों का कहना है कि असली भावार्थ लिखे में पंक्तियों के बीच और कहे में उस अनकहे में होता है, जिसे दरअसल बिना कहे कहा गया होता है। और वह यह है कि यह भाषण आजादी की 75 वीं वर्षगाँठ पर उसके इन 75 वर्षों और उससे पहले के 90 वर्षों के निरंतर संग्राम के हासिल के निषेध और नकार का भाषण है। उपलब्धियों के तिरस्कार का भाषण है।

(बादल सरोज लोकजतन के संपादक और भारतीय किसान यूनियन के संयुक्त सचिव हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles

अब अमेरिका के खिलाफ मोर्चा खोलेगा भारत? 

कनाडा में खालिस्तानी कार्यकर्ता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में अब भारत...