ग्राउंड रिपोर्ट: धरती बचाने के संघर्ष से पीछे नहीं हट रहीं जबरकोट की महिलाएं

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चमोली। उत्तराखंड में चमोली जिले के जबरकोट में कुछ दिनों की चुप्पी के बाद गांव की महिलाओं और गांव में स्टोन क्रशर लगाने वाले व्यक्ति के कारिंदों के बीच फिर से तनाव की स्थिति बन गई है। थराली तहसील के जबरकोट गांव में यह स्टोन क्रशर 11 महीने पहले लगाना शुरू हुआ था और इसी के साथ गांव की महिलाएं क्रशर के विरोध में उतर आई थीं। जब भी यहां जेसीबी मशीन क्रशर लगाने के लिए खुदाई का काम शुरू करती है, महिलाएं मशीन के आगे बैठ जाती हैं और काम रूकवा देती हैं।

महिलाओं का कहना है कि स्टोन क्रशर लगाने से गांव का पर्यावरण दूषित होगा, लोगों का स्वास्थ्य खराब होगा और भारी भरकम मशीनें चलने से गांव के धंसने का खतरा भी पैदा हो जाएगा। महिलाओं का यह भी तर्क है कि पहाड़ों में ग्रामीण सड़कें सिर्फ छोटे वाहनों के चलने लायक ही बनाई जाती हैं, ऐसे में क्रशर के लिए पत्थर लाने और रोड़ी ले जाने के लिए जो भारी-भरकम गाड़ियां आएंगी, गांव की सड़क उनका भार नहीं उठा पायेंगी।

11 महीने पुराना विवाद एक बार फिर से तेज हो जाने के बाद जनचौक जबरकोट गांव पहुंचा। यह गांव देहरादून से करीब 250 किमी दूर कर्णप्रयाग-बागेश्वर मोटरमार्ग पर कुलसारी से ऊपर पहाड़ी पर करीब 5 किमी दूर है। इस पहाड़ी सड़क पर 3 किमी चढ़ते ही एक जगह जेसीबी मशीन दिखी। सड़क पर दर्जनभर महिलाएं बैठी हुई थी। महिलाओं ने बताया कि क्रशर करीब 300 मीटर ऊपर लगाया जाना है। यहां से क्रशर तक सड़क बनाई जा रही है।

महिलाओं के अनुसार क्रशर लगने से होने वाली परेशानियों को देखते हुए वे इसका विरोध कर रही हैं और काम आगे न बढ़ सके, इसके लिए बारी-बारी से यहां पहरा दे रही हैं। करीब दो दर्जन महिलाएं सक्रिय रूप से इस आंदोलन में शामिल हैं। इनमें से आधी महिलाएं कुछ घंटे के लिए यहां पहरा देती हैं और बाकी घर में अपना काम निपटाती हैं। कुछ घंटे बाद महिलाओं का दूसरा समूह पहरा देने आता है और यहां बैठी महिलाएं अपने घर का काम निपटाने चली जाती हैं। मशीन चलाने का प्रयास सुबह 9 बजे के करीब शुरू होता है, इससे पहले ही महिलाएं यहां पहुंच जाती हैं। शाम को जेसीबी ऑपरेटर जब तक वहां रहता है, तब तक महिलाओं का पहरा जारी रहता है।

सड़क पर जहां महिलाएं बैठी हैं, उससे करीब 200 मीटर ऊपर क्रशर लगाने के लिए जमीन समतल की गई है। महिलाएं बताती हैं कि एक-दो बार रात को मशीन चलाकर यह काम किया गया था। इसके बाद महिलाओं ने रात के वक्त भी पहरा देना शुरू कर दिया। कुछ दिन महिलाओं ने निर्माणस्थल के पास सड़क पर ही रात बिताई और उसके बाद सड़क के ऊपर एक झुग्गी डाल दी, जिसमें 15-20 महिलाएं सो सकती हैं। आंदोलन को लगातार सक्रिय बनाये रखने के लिए महिलाएं बीच-बीच में कुछ आयोजन भी करती हैं। कभी पर्यावरण बचाने के लिए जनगीत गाने का आयोजन किया जाता है तो कभी शाम के वक्त मशाल जुलूस निकाला जाता है। आंदोलन को समर्पित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी महिलाओं की ओर से आयोजित किया गया था।

जबरकोट की महिलाओं का नेतृत्व कर रही दीपा देवी कहती हैं, पहाड़ों में सर्दियों के मौसम में खेती-बाड़ी के काम कम होते हैं। महिलाओं के पास समय होता है। क्रशर मालिक ने इस दौरान काम नहीं किया। यहां तक कि जो जेसीबी यहां रखी गई थी, वह भी वापस भेज दी गई। लेकिन, अब जैसे ही खेती का काम शुरू हुआ, फिर से जेसीबी मशीन आ गई और काम शुरू कर दिया गया। वे कहती हैं कि क्रशर मालिक दरअसल महिलाओं को थका देने की रणनीति अपना रहा है। उसे मालूम है कि इस मौसम में खेती-बाड़ी के कई काम एक साथ शुरू हो जाते हैं। ऐसे में महिलाएं काम छोड़कर विरोध करने नहीं आएंगी, लेकिन हमने उसके मंसूबे अब तक पूरे नहीं होने दिये हैं। वे कहती हैं कि परेशानी तो बहुत हो रही है। मुंह अंधेरे उठकर खेती-बाड़ी और पशुओं का काम निपटाकर, बच्चों को स्कूल भेजकर 9 बजे तक हर हाल में कुछ महिलाओं को क्रशर साइट पर आना पड़ता है। आमतौर पर कुछ महिलाएं दोपहर से पहले और कुछ दोपहर बाद पहरा देती हैं।

जहां स्टोन क्रशर लग रहा है, उसके ठीक ऊपर करीब 500 मीटर पर जबरकोट गांव का प्राइमरी स्कूल है और आंगनबाड़ी केन्द्र भी। हालांकि प्राइमरी स्कूल में पहाड़ के तमाम अन्य गांवों की तरह की बच्चों की संख्या बहुत कम रह गई है। निर्माणाधीन क्रशर के पास ही गांव का प्राकृतिक जल स्रोत है। जबरकोट गांव स्कूल से करीब 400 मीटर आगे है। महिलाओं से अभी बातचीत हो ही रही थी कि एक व्यक्ति सड़क से आता नजर आया। महिलाओं ने बताया कि वे ग्राम प्रधान विजय लक्ष्मी के ससुर वीर राम आर्य हैं। ग्राम प्रधान के ज्यादातर काम वे खुद करते हैं। स्टोन क्रशर के समर्थन में हैं। महिलाओं की उनसे बातचीत बंद है। वीर राम आर्य को रोककर जब हमने उनसे बात करनी चाही तो उन्होंने कहा कि महिलाएं किसी के बहकावे में आकर आंदोलन कर रही हैं।

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वे खुद पहले इस क्रशर के विरोध में थे और आंदोलन भी किया था। बाद में विरोध के बजाय समर्थन में क्यों आये, इस सवाल के जवाब में उनका कहना था कि गांव के लोग अपने बच्चों को तो प्राइमरी स्कूल में भेज नहीं रहे हैं और स्कूल के नाम पर आंदोलन कर रहे हैं। ये ठीक नहीं है। बाद में हमने ग्राम प्रधान विजय लक्ष्मी से बात की तो उनका कहना था बच्चे छोटे होने के कारण वे आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा नहीं ले पा रही हैं, लेकिन आंदोलन के साथ हैं।

जब हमने गांव की महिलाओं से पूछा कि स्टोन क्रशर लगाने की लिए ग्राम पंचायत की मंजूरी तो ली गई होगी, यह मंजूरी कैसी दी गई। इस सवाल का जवाब किरन देवी ने विस्तार से दिया। उन्होंने बताया कि तकनीकी रूप से यह जमीन पास्तोली गांव की है। पास्तोली यहां से करीब 2 किमी दूर है। पहाड़ी के दूसरी तरफ। गांव से अलग-थलग होने के कारण कुछ पीढ़ी पहले पास्तोली के लोगों ने यह जमीन एक तीर्थ पुरोहित को दान में दे दी थी। तीर्थ पुरोहित की मौजूदा पीढ़ी के लोगों ने जमीन स्टोन क्रशर लगाने के लिए बेच दी। पास्तोली की ग्राम सभा ने भी खुशी-खुशी प्रस्ताव पारित कर दिया, क्योंकि पास्तोली पर इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है।

किरन देवी बताती हैं कि उनके खिलाफ दो मुकदमे दर्ज किये जा चुके हैं। डराया-धमकाया जा रहा है। इसके बावजूद उन्होंने तय किया है कि यहां किसी भी हालत में क्रशर नहीं लगाने दिया जाएगा। वे कहती हैं कि उनका गांव जबरकोट इस जगह से कुछ सौ मीटर दूरी पर है। क्रशर की धूल उड़ेगी तो गांव तक पहुंचेगी, लोग टीबी और कैंसर जैसी बीमारियों की चपेट में आएंगे। क्रशर के आसपास उनके खेत हैं, खेती चौपट हो जाएगी।

ठीक ऊपर प्राइमरी स्कूल है, लगातार मशीन चलेगी तो धूल-धुएं से बच्चों का स्वास्थ्य तो खराब होगा ही, मशीन के शोर से बच्चों की पढ़ाई संभव नहीं हो पाएगी। इसके अलावा कुलसारी से यहां तक ग्रामीण सड़क की क्षमता इतनी नहीं है कि बड़े-बड़े ट्रकों को बोझ उठा पाएगी। ग्रामीण सड़कें सिर्फ पहाड़ काटकर और एक लेयर कंक्रीट डालकर बनाई जाती हैं। भारी-भरकम वाहन चलेंगे तो सड़क तो धंसेगी। इन सवालों को जवाब देने के बजाय उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं।

यशोदा देवी, पुष्पा देवी, कल्पना देवी सहित दो दर्जन महिलाएं इस आंदोलन में लगातार सक्रिय हैं। इन महिलाओं के खिलाफ पहले शांतिभंग का मुकदमा दर्ज करवाया गया। इस मामले में महिलाओं ने एसडीएम कोर्ट से जमानत करवाई। इसके अलावा क्रशर मालिक को आर्थिक नुकसान पहुंचाने का भी एक मामला दर्ज करवाया है, जो कोर्ट में विचाराधीन है। महिलाओं की ओर से भी क्रशर मालिक के कारिंदों पर मारपीट करने का एक केस दर्ज करवाया गया है। महिलाएं बताती हैं कि इस क्रशर का असली मालिक बागेश्वर जिले का रहने वाला एक व्यक्ति है। देवाल का रहने वाला सुभाष मिश्रा नामक व्यक्ति, जिसे पार्टनर बताया जाता है, वह यहां काम करवा रहा है। वह शुरू में एक-दो बार यहां दिखा था। उसके बाद हाल में एक पुलिस टीम के साथ आया था।

खेती का काम शुरू होते ही महिलाओं की व्यस्तता का फायदा उठाने के लिए स्टोन क्रशर का काम फिर शुरू हुआ

जबरकोट आंदोलन को लेकर क्रशर मालिक बेशक सामने आकर टकराव नहीं ले रहा है, लेकिन महिलाओं का कहना है कि उसके कुछ लोग सोशल मीडिया पर लगातार उन पर और आंदोलन को समर्थन देने वाले लोगों पर कई तरह के आरोप लगा रहे हैं। यहां तक कि जबरकोट आंदोलन का कवर करने वाले पत्रकारों को भी क्रशर मालिक के समर्थक निशाना बना रहे हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से आरोप लगाया जा रहा है कि यह आंदोलन जबरकोट के निर्माणाधीन क्रशर मालिक के प्रतिद्वंद्वी को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है।

आंदोलनकारी महिलाओं का कहना है कि अब तक इस क्षेत्र में जितने भी स्टोन क्रशर है वे नदी के आसपास हैं। यह पहला क्रशर है जो नदी से दो 4 किमी ऊपर पहाड़ पर लगाया जा रहा है। क्रशर मालिक के समर्थक बार-बार एक सवाल पूछ रहे हैं कि महिलाएं कुलसारी में चल रहे स्टोन क्रशर का विरोध क्यों नहीं कर रही है। महिलाओं का जवाब है कि उनकी प्राथमिकता अपनी और अपने बच्चों की चिन्ता करना है। महिलाएं इस सवाल को क्रशर मालिक और उसके समर्थकों की बौखलाहट बताती हैं।

जबरकोट स्टोन क्रशर के समर्थकों का एक तर्क यह भी है कि इस क्षेत्र में सिर्फ एक स्टोन क्रशर कुलसारी में है। उसका मालिक मनमाने दाम पर रोड़ी बेच रहा है। जबरकोट में क्रशर लगने से उसकी मनमानी पर अंकुश लगेगा। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि कुलसारी स्टोन क्रशर का मालिक जबरकोट क्रशर के विरोध में आंदोलन चलाने के लिए रुपया दे रहा है। इस आंदोलन को कवर करने वाले पत्रकारों पर भी ऐसे ही आरोप सोशल मीडिया पर लगाये जा रहे हैं। महिलाएं कहती हैं कि यदि दूसरा स्टोन क्रशर लगाना जरूरी है तो वह कुलसारी के स्टोन क्रशर के आसपास ही नदी के किनारे लगाया जाना चाहिए। कच्ची पहाड़ी पर क्रशर लगाना हर लिहाज से खतरनाक साबित होगा।

(चमोली से वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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