लॉकडाउन में ढील और हवाई जहाज खोलने की असली वजह है ‘6 साल बेमिसाल’!

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लॉकडाउन से देश को बाहर निकालने की जल्दबाजी में मोदी सरकार नज़र आयी तो इसकी एक वजह थी मजदूरों का गुस्सा। भूखे पेट पैदल चलते, गुस्सा दिखाते, प्रदर्शन करते मजदूरों की आवाज़ तेज होने लगी थी। कोरोना थमने का नाम नहीं ले रहा था। 1 मई को गृहमंत्रालय ने जो ‘जहां हैं, वहीं रहे ’ की नीति पलट दिया। स्पेशल ट्रेनों का एलान कर दिया गया। राज्य सरकारें अपनी-अपनी बसें भेजकर बेहाल मजदूरों को अपने यहां बुलाने लगीं। मगर, इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने की कोई पुख्ता रणनीति सामने नहीं थी। समस्या जस की तस बनी हुई है। ऐसे में चौथे लॉकडाउन पर फैसला लेना था। कोई भी राज्य लॉकडाउन हटाने को तैयार नहीं था। मगर, केंद्र सरकार मन ही मन लॉकडाउन को लेकर एक फैसला कर चुकी थी।

12 मई को राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की। उसका पूरा ब्योरा आते-आते लॉकडाउन 4 शुरू हो गया। चार दिन बाद से ही लॉकडाउन में रियायतों की घोषणाएं होने लगीं, जिसका मकसद लॉकडाउन को कमजोर करना था। केंद्र की ओर से कई महत्वपूर्ण घोषणाएं हुईं, जिनमें 10वीं और 12वीं की परीक्षा लेना, 1 जून से ट्रेन खोलना, इस बीच स्पेशल ट्रेनों की संख्या बढ़ाना, हवाई अड्डों को खोलना, ऑफिस-फैक्ट्री आदि को नियमबद्ध रहकर खोलना आदि शामिल हैं। 

लॉकडाउन को लेकर अभिजात्य वर्ग भी परेशान है। उसकी परेशानी हवाई जहाज, होटल, रेस्टोरेंट, शराब पर पाबंदी है। नेता, नौकरशाह, पूंजीपति सभी इसी वर्ग में आते हैं। शराब की दुकानें सरकार अप्रैल के अंत में ही खोल चुकी थी। रेस्टोरेंट से होम डिलीवरी भी शुरू हो चुकी है और अब निर्देशों के साथ रेस्टॉरेंट भी खुल चुके हैं। होटलों में भी बुकिंग शुरू होने लगी है। किसी तरह से हवाई यातायात को खोलना था।

हवाई यातायात खोलना आसान फैसला नहीं था। इस देश में हवाई जहाज के जरिए ही कोरोना आया। ऐसे में सरकार ने श्रमिकों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने-ले जाने के बीच विदेश से एनआरआई को लाने के बहाने हवाई अड्डों को संचालित करना शुरू किया। लॉकडाउन 4 के गाइडलाइन में कहा गया कि उडानें अभी शुरू नहीं की जाएंगी। मगर, मौका देखते ही इसे 25 मई से शुरू करने की घोषणा कर दी गयी। 23 मई 2019 को दोबारा बहुमत लेकर नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे और 30 मई को दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। अब हवाई उड़ानों के बीच 6 साल बेमिसाल का जश्न मनाया जाना संभव हो पाएगा।

अभिजात्य वर्ग को लॉकडाउन से निकाले बगैर मोदी सरकार ‘6 साल बेमिसाल’ का उत्सव कैसे मना सकती थी। 12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन वाले दिन ही इस लेखक ने टीवी डिबेट में कहा था कि सरकार हवाई अड्डों को खोलने का गुनाह करने जा रही है। ऐसा होने पर पूरे देश को इसका विरोध करना चाहिए। मगर, अफसोस की बात यह है कि हवाई अड्डों को खोलने का विरोध करने वाली राजनीति इस देश में दिखती ही नहीं। 

गरीबों पर कोरोना के सारे बुरे अंजाम थोप दिए गये। उनकी नौकरी गयी, सैलरी छिनी। वे बेघर हुए। अपने-अपने घरों को लौटते हुए विपरीत परिस्थितियों को झेला। कभी पटरी पर कटे, कभी सड़क पर मौत मिली तो कभी भूख ने मार डाला।  और, कोरोना की चपेट में आए बगैर क्वॉरंटाइन भी वही हुए। इस देश के गरीब कोरोना लेकर नहीं आए, फिर भी उनको ही इसका दंश झेलना पड़ा।

कोरोना का संकट थमने के बजाए बढ़ता ही जा रहा है ऐसे में हवाई यातायात सेवा को खोलना क्या जरूरी था? हवाई जहाज में चढ़ने वाले लोग कोरोना छिपाने में भी माहिर हैं। याद है न कनिका कपूर। हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग से वह बच निकली थीं। हाई लेवल पार्टी में शरीक हुईं। नेता, नौकरशाह और धनाढ्य वर्ग भी कोरोना की चपेट में आए। संसद तक कोरोना पहुंचा। मगर, इन लोगों को ‘होम क्वॉरंटाइन’ की सुविधा मिल गयी। क्या गरीब ऐसी सुविधा की कल्पना कर सकते हैं? हिन्दुस्तान के ज्यादातर राज्यों में कोरोना का पहला मरीज विदेश से या फिर हवाई जहाज से आया। आने वाले समय में भी हवाई जहाज के जरिए कोरोना आता रहेगा। कठोर नियमों का दिखावा महज इस सुविधा को खोलने के बहाने है। 

आज कोरोना संक्रमित शहरों को गिन लीजिए। अधिकांश हवाई अड्डों वाले शहर कोरोना की चपेट में हैं। इन शहरों के मामलों को देखें तो 70 फीसदी कोरोना इन शहरों में ही हैं। कोरोना के गहराते संकट के बीच लॉकडाउन को खत्म करते जाना और हवाई अड्डों को खोलना 6 साल बेमिसाल का जश्न मनाने की तैयारी है। एक तरफ कोरोना से पीड़ित बढ़ रहे होंगे, मरने वालों की संख्या बढ़ रही होगी और मोदी सरकार कह रही होगी 6 साल बेमिसाल। यही है कोरोना से लड़ाई का सच।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल आप इन्हें विभिन्न चैनलों के पैनल में बहस करते देख सकते हैं।)

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