सॉलिसिटर/अटार्नी जनरल को किसानों से समझौते की उम्मीद, 11 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

सरकार के साथ किसानों की 8 जनवरी को आठवें दौर की बातचीत होनी है और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल को उम्मीद है कि जल्द ही यह गतिरोध समाप्त होगा। अब उनकी उम्मीद का आधार तो वही जाने पर जहां तक किसानों का पक्ष है तो वे तीनों कानूनों की वापसी और एमएसपी को सुनिश्चित करने के लिए क़ानूनी प्रावधान से एक इंच पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं।

कृषि कानूनों की वापसी को लेकर किसानों का आंदोलन लगातार जारी है। सरकार के साथ किसानों की 8 जनवरी को आठवें दौर की बातचीत होनी है। इस बीच उच्चतम न्यायालय में चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि अब तक हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है। हम हालात समझते हैं और चाहते हैं कि बातचीत से मामला सुलझा लिया जाए। सीजेआई ने कहा कि सोमवार 11जनवरी को कोर्ट में किसान आंदोलन के मामले पर सुनवाई होगी। सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि हमें उम्मीद है कि जल्द ही यह गतिरोध समाप्त होगा।

नए कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को लेकर कुछ वकीलों ने जनहित याचिका दायर की है। इस पर सुनवाई करते हुए पीठ ने ये टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि हम किसान आंदोलन और कृषि कानूनों की अर्जी पर सोमवार को सुनवाई करेंगे, क्योंकि हमें हालात में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है। वहीं, सरकार ने सुनवाई टालने की अपील की है। सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘किसानों से अभी बातचीत चल रही है। इसलिए पीठ को इस मामले को सुनवाई के लिए टालना चाहिए।

अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि हमें उम्मीद है कि दोनों पक्ष किसी मुद्दे पर सहमत हो जाएंगे। इस पर सीजेआई बोबड़े ने कहा कि हम हालात से वाकिफ हैं और चाहते हैं कि बातचीत और बढ़े। हम हालात पर पूरी तरह से नजर बनाए हुए हैं।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि सरकार और किसानों के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण में बातचीत जारी है। उन्होंने कहा कि इन याचिकाओं पर 8 जनवरी को सुनवाई नहीं होनी चाहिए।

पीठ ने कहा कि हम स्थिति को समझते हैं और बातचीत को प्रोत्साहित करते हैं। हम मामले की सुनवाई को सोमवार 11 जनवरी तक स्थगित कर सकते हैं, अगर आप चल रही बातचीत के संबंध में लिखित में दें।

पीठ अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा द्वारा हाल ही में संसद द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने देश भर के कई किसान समूहों के तीव्र विरोध को आकर्षित किया था। याचिका में मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020, किसानों के अधिकार व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौते को चुनौती दी गई है।

पहला अधिनियम विभिन्न राज्य कानूनों द्वारा स्थापित कृषि उपज विपणन समितियों द्वारा विनियमित बाजार यार्ड के बाहर के स्थानों में किसानों को कृषि उत्पादों को बेचने में सक्षम बनाने का प्रयास करता है। दूसरे अधिनियम अनुबंध खेती के समझौतों के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करना चाहता है। तीसरे अधिनियम में खाद्य स्टॉक सीमा और अनाज, दालें, आलू, प्याज, खाद्य तिलहन, और आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत तेल जैसे खाद्य पदार्थों पर मूल्य नियंत्रण की मांग की गई है।

शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि किसान परिवारों को बलपूर्वक उनकी जमीन के कागज़ पर हस्ताक्षर करने /अंगूठे के निशान लगाने के लिए मजबूर किया जाएगा, खेती की फ़सलें और आज़ादी हमेशा के लिए कॉरपोरेट घरानों के हाथों में होगी जो विभिन्न राजनीतिक नेताओं से संबंधित हैं। वास्तव में, यह इन अधिसूचनाओं के माध्यम से किसानों के जीवन, स्वतंत्रता और किसानों और उनके परिवार की स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर खतरा है। इसलिए, लागू किए गए नोटिफिकेशन को रद्द किया जाना चाहिए।

इस मामले में इसके पहले सुनवाई में पीठ ने प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच मध्यस्थता करने के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने का अपना इरादा जताया था। पीठ ने मामले में 8 किसान संगठनों को पक्षकार बनाने की भी अनुमति दी थी। हालांकि पीठ ने किसी भी दिशा-निर्देश को पारित करने से परहेज किया क्योंकि इनमें से कोई भी प्रतिनिधि पीठ के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ था।

इस बीच, पंजाब विश्वविद्यालय के 35 छात्रों द्वारा एक पत्र याचिका भी दायर की गई है जिसमें पुलिस द्वारा बल के अत्यधिक उपयोग और प्रदर्शनकारी किसानों की अवैध हिरासत की विस्तृत जांच की मांग की गई है। पत्र में यह भी आरोप लगाया गया है कि सरकार शांति से विरोध करने के किसानों के संवैधानिक अधिकारों को छीनने के लिए प्रतिशोधी, अत्याचार और सत्ता का असंवैधानिक दुरुपयोग कर रही है।

इसके पहले किसानों और सरकार के बीच बीते शनिवार को विज्ञान भवन में सातवें दौर की बैठक भी बेनतीजा रही थी। अगली बैठक 8 जनवरी को होगी। बैठक के बाद किसान नेताओं ने कहा था कि उनका जोर इसी बात पर रहा कि सरकार को कृषि क़ानून वापस लेने ही पड़ेंगे। इसके अलावा एमएसपी को क़ानूनी रूप देने की मांग भी की गई। किसान नेताओं ने कहा कि अगले दौर की बातचीत में भी कृषि क़ानून और एमएसपी पर ही बातचीत होगी।

कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसान दोनों अपने-अपने रुख से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। किसानों का कहना है कि जब तक सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था बनी रहना सुनिश्चित करने के लिए कानून नहीं लाती, तब तक किसान आंदोलन जारी रखेंगे।

किसानों ने 7 जनवरी को बड़ा प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है।उनका कहना है कि अगर मांगें नहीं मानी गई तो वो गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर ट्रैक्टर परेड करेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि 7 जनवरी को किसान ईस्टर्न और वेस्टर्न एक्सप्रेस वे पर ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे और यह 26 जनवरी को होने वाली ट्रैक्टर परेड का रिहर्सल होगा। साथ ही 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर राज्यों में राजभवनों का घेराव किया जाएगा।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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