तीन अध्यादेशों से किसानों को कार्पोरेट को गिरवी रखने की तैयारी, नौ अगस्त को 25 संगठन होंगे सड़कों पर

एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप के सदस्य और जय किसान आंदोलन के संस्थापक योगेन्द्र यादव ने कहा है कि केंद्र सरकार कोरोना काल में तीन किसान विरोधी अध्यादेश लाई है। इनका असली नाम जमाखोरी चालू करो कानून, मंडी खत्म करो कानून और खेती कंपनियों को सौंपो कानून होना चाहिए। इन अध्यादेशों का यही असली मकसद है।

व्यापारी कृषि उत्पाद खरीद कर जमा खोरी करके अपनी मनमर्जी से रेट तय करके बेचता है। इससे किसान और उपभोक्ता दोनों को नुकसान होता है। एपीएमसी की कमियों के कारण किसानों का शोषण होता है। उसे दूर किया जा सकता था, लेकिन कंपनियों को फायदा पंहुचाने के लिए खरीद का अधिकार निजी हाथों में दिया जा रहा है। इसमें किसान अपनी उपज बेचने का अधिकार खो देगा। ठेका खेती कानून में कहने को किसान खेत का मालिक होगा, लेकिन खेती करने और उत्पाद बेचने का अधिकार कंपनी का होगा।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा खेती किसानी की बुनियादी व्यवस्था बदलने की साजिश की जा रही है। हमें पंजाब और हरियाणा के किसानों के आंदोलन जैसा आंदोलन नौ अगस्त को देशव्यापी स्तर अपनी ताकत दिखानी होगी।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के ऑनलाइन फेसबुक कार्यक्रम के तीसरे दिन “किसान विरोधी अध्यादेशों को वापस लो” विषय पर चर्चा की गई। योगेंद्र यादव इसी आयोजन में बोल रहे थे।

अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री ,वर्किंग ग्रुप सदस्य और पूर्व विधायक कॉमरेड राजाराम ने कहा कि कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार संवर्धन कहने को तो किसान हितैषी है, लेकिन ऐसा है नहीं। एमएसपी से सरकार बचना चाहती है। व्यापारियों के जरिए किसानों को बंधक बनाया जा रहा है। खेती से बेदखल हुए किसान क्या करेंगे? उन्होंने कहा कि देश की धरती से सिर्फ किसान ही जुड़ा है व्यापारी या कंपनियां नहीं। देश के करोड़ों लोगों को भोजन की गारंटी भी किसान ही देता है। राज्य सरकारें जो बोनस देती थीं उसे केंद्र सरकार ने बंद कर दिया है।

अखिल भारतीय किसान सभा के बीजू कृष्णन ने कहा कि इस वर्ष 11 प्रतिशत अधिक गेहूं की बुआई के बावजूद कोरोना के चलते 55 लाख टन गेंहू मंडियों में कम आया। समर्थन मूल्य पर गेहूं नहीं खरीदा गया। उन्होंने कहा कि तीन किसान विरोधी अध्यादेश मेहनतकश किसानों पर हमला हैं और किसानों को बंधुआ बनाने की शुरुआत है।

उन्होंने बताया कि केरल सरकार ने एमएसपी से 800 रुपये अधिक पर 2695 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर धान की खरीद की है, लेकिन अन्य सरकारें एमएसपी पर भी धान खरीदने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने बताया कि केरल सरकार ने 87 लाख नागरिकों और 25 लाख बच्चों को अनाज के अलावा दो किस्म का खाने का तेल, आटा, तेल, शक्कर, नमक, मूंग, अरहर, उरद, चना दाल, सूजी, चाय, मसाले, सांभर पॉवडर के पैकेट दिए हैं। 55 लाख लोगों को 1300 रुपये प्रति माह की पेंशन छह महीने दी जा रही है, लेकिन अन्य सरकारें कोरोना काल में भी केवल खानापूरी कर रही हैं।

आशा संगठन के प्रमुख और वर्किंग ग्रुप सदस्य हैदराबाद के किरण विस्सा ने कहा कि सरकार ने कहा है कि किसानों को आजादी मिल गई है, लेकिन यह आजादी कारपोरेट को किसानों को लूटने की मिली है। संसद और विधान सभाओं को बिना विश्वास में लिए अध्यादेशों को लागू करने का काम किया गया है। उनका मकसद मंडी को दरकिनार करना, ध्वस्त करना है।

उन्होंने कहा कि व्यापारियों को मजबूती देने के लिए किसान को कमजोर कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि राज्यों के अधिकार छीनने का काम केंद्र सरकार ने किया है, लेकिन किसान भी चुप बैठने वाला नहीं है।

कार्यक्रम का संचालन एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप के सदस्य डॉ. सुनीलम ने किया। उन्होंने कहा कि जिस तरह किसानों ने सरकार को भूमि अधिग्रहण कानून और आरसीईपी समझौते आदि मुद्दों पर पीछे धकेला है। संसद में तीन किसान विरोधी बिल पेश होने के पूर्व ही लॉकडाउन खत्म होने के बाद अपनी ताकत दिखलाएंगे। कार्यक्रम में प्रकाशम जिले के किसान नेता रंगाराव भी उपस्थित रहे।

उधर, नौ अगस्त को छत्तीसगढ़ में किसानों और आदिवासियों के 25 संगठन “ये देश बिकाऊ नहीं है और कॉर्पोरेटों, किसानी छोड़ो” के नारे के साथ आंदोलन करेंगे। इसी दिन केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के झंडे तले संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूर भी देशव्यापी आंदोलन करेंगे। इसका आह्वान अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन ने किया है।

किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन से जुड़े विजय भाई और छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि यह आंदोलन मुख्यतः जिन मांगों पर केंद्रित है, उनमें आगामी छह माह तक हर व्यक्ति को हर माह 10 किलो अनाज मुफ्त देने और आयकर के दायरे के बाहर के हर परिवार को हर माह 7500 रुपये नकद सहायता राशि देने, मनरेगा में मजदूरों को 200 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने और शहरी गरीबों के लिए भी रोजगार गारंटी योजना चलाने को मुद्दे पर है।

इसके अलावा श्रम कानूनों, आवश्यक वस्तुओं, कृषि व्यापार और बिजली कानून में हाल ही में अध्यादशों और प्रशासकीय आदेशों के जरिए किए गए संशोधनों को वापस लेने, कोयला, रेल, रक्षा, बैंक और बीमा जैसे सार्वजनिक उद्योगों के निजीकरण पर रोक लगाने, किसानों की फसल का समर्थन मूल्य सी-2 लागत का डेढ़ गुना तय करने, उन्हें कर्जमुक्त करने, किसानों को आधे दाम पर डीजल देने, प्राकृतिक आपदा और लॉकडाउन के कारण खेती-किसानी को हुए नुकसान की भरपाई करने, वनाधिकार कानून के तहत आदिवासियों को वन भूमि के व्यक्तिगत और सामुदायिक पट्टे देने और पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग का फैसला करने का अधिकार स्थानीय समुदायों को दिए जाने की मांगें भी इसमें शामिल हैं।

अध्यादेशों के जरिये कृषि कानूनों में किए गए परिवर्तनों को किसान विरोधी बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे फसल के दाम घट जाएंगे। खेती की लागत महंगी होगी और बीज और खाद्य सुरक्षा के लिए सरकारी हस्तक्षेप की संभावना भी समाप्त हो जाएगी। ये परिवर्तन पूरी तरह कॉरपोरेट सेक्टर को बढ़ावा देते हैं और उनके द्वारा खाद्यान्न आपूर्ति पर नियंत्रण से जमाखोरी और कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि किसानों को “वन नेशन, वन एमएसपी” चाहिए, न कि वन मार्केट!

किसान नेताओं ने कहा कि कोरोना महामारी के मौजूदा दौर में केंद्र की भाजपा सरकार आम जनता विशेषकर मजदूरों, किसानों और आदिवासियों को राहत पहुंचाने में असफल साबित हुई है। वह उनके अधिकारों पर हमले कर रही है और आत्मनिर्भरता के नाम पर देश के प्राकृतिक संसाधनों और धरोहरों को चंद कारपोरेट घरानों को बेच रही है। इसलिए देश के गरीबों को आर्थिक राहत देने और उनके कानूनी और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर किसानों और आदिवासियों के संगठन नौ अगस्त को गांवों और मजदूर बस्तियों में देशव्यापी विरोध आंदोलन आयोजित कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में इस आंदोलन में शामिल होने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग किसान-मजदूर महासंघ, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), किसान महापंचायत, आंचलिक किसान सभा, सरिया, परलकोट किसान संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी आदि संगठन प्रमुख हैं।

9 अगस्त को ये संगठन फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए अपने-अपने क्षेत्रों में सत्याग्रह, धरना, प्रदर्शन, सभाएं आदि आयोजित करेंगे।

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