Sunday, April 28, 2024

सुरक्षा बलों की गोली के शिकार आदिवासी ब्रह्मदेव की पत्नी को दो साल के संघर्ष के बाद मिला आंशिक न्याय

लातेहार। 12 जून 2021 को लातेहार जिला अंतर्गत गारू प्रखण्ड के पिरी गांव निवासी ब्रह्मदेव सिंह और गांव के अन्य पांच युवा पारंपरिक शिकार पर निकले थे। इस दरम्यान नक्सल सर्च अभियान पर निकले सुरक्षा बलों ने आदिवासी युवा ब्रह्मदेव सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी। गांव से निकलते समय ही युवकों पर सुरक्षा बलों द्वारा फायरिंग हुई, जिसमें 24 वर्षीय आदिवासी ब्रह्मदेव सिंह की गोली लगने से मौत हो गयी। बताया जाता है कि ग्रामीण युवकों ने पुलिस को देखते ही हाथ उठा दिए थे और चिल्लाए थे कि वे ‘आम जनता हैं, नक्सली नहीं’, साथ ही गोली नहीं चलाने का अनुरोध किया था। लेकिन सुरक्षा बलों ने गोली चलाना जारी रखा।

इस हत्याकांड के बाद पिछले दो सालों से ब्रह्मदेव की पत्नी जीरामनी देवी इंसाफ के लिए गांव से लेकर न्यायालय तक संघर्ष कर रही हैं। 14 अगस्त 2023 को झारखंड उच्च न्यायालय ने जीरामनी द्वारा दायर रिट पिटीशन (W.P.(Cr.)/402/2021) में फैसला सुनाते हुए राज्य को आदेश दिया कि जीरामनी देवी को पांच लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाए और ब्रह्मदेव सिंह की हत्या के मामले की वरीय पुलिस पदाधिकारी द्वारा नए सिरे से जांच कर तीन महीने के अंदर रिपोर्ट कोर्ट को दी जाए।

घटना के बाद ब्रह्मदेव सिंह समेत पांच ग्रामीणों पर दर्ज की गई प्राथमिकी (गारू थाना 24/2021 दिनांक 13/06/21) को भी राज्य पुलिस ने ‘सबूत न मिलने’ के आधार पर बंद कर दिया है। यह सही दिशा में कार्रवाई है लेकिन साथ ही साथ पुलिस ने जीरामनी द्वारा दोषी सुरक्षा बलों के विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी (गारू थाना 11/2022 दिनांक 5/05/2022) को भी ‘तथ्य की भूल’ बोलकर बंद कर दिया है।

न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि पुलिस ने यह माना है कि सुरक्षा बलों की गोली से ही निर्दोष ब्रह्मदेव की जान गयी। प्राथमिकी को बंद करना दर्शाता है कि दोषी को बचाने की कोशिश की जा रही है। इस आलोक में न्यायालय ने पुलिस द्वारा इस प्राथमिकी को बंद करने की रिपोर्ट को खारिज करते हुये वरीय पदाधिकारियों द्वारा निष्पक्ष जांच का निर्देश दिया।

झारखंड जनाधिकार महासभा ने इस मामले में विस्तृत तथ्यान्वेषण किया था और पाये गए तथ्यों को सरकार व मीडिया के सामने प्रस्तुत किया था। इस मामले में महासभा लगातार न्याय के लिए संघर्षरत रही है। इस बावत महासभा के कार्यकर्ताओं ने कहा है कि महासभा उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करती है और जीरामनी समेत इस मामले में सहयोग कर रहे सभी ग्रामीणों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के संघर्ष व स्थानीय और उच्च न्यायालय में मामले को देख रहे वकीलों की प्रतिबद्धता को सलाम करती है। लेकिन यह न्याय आंशिक है।

महासभा ने कहा है कि इस मामले ने शोषित आदिवासियों के प्रति राज्य के रवैये व पुलिस व्यवस्था पर कई गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। जिसके कुछ तथ्य निम्न प्रकार हैं –

• सुरक्षा बल व पुलिस द्वारा शुरुआती दौर में इस मामले को नक्सलियों के साथ एक मुठभेड़ का जामा पहनाने की कोशिश की गयी। पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में भी तथ्यों से विपरीत बातें दर्ज की गयीं। जनता के दबाव व कानूनी हस्तक्षेप के बाद ही पुलिस ने सच्चाई को मानते हुये कोर्ट में एफ़िडेविट दर्ज किया कि यह मुठभेड़ नहीं थी, एवं सुरक्षा बल की फ़ायरिंग में गोली लगने से निर्दोष ग्रामीण ब्रह्मदेव सिंह की मौत हुई। पुलिस ने इस घटनाक्रम में अपना version मीडिया में, दर्ज की गयी प्राथमिकी में, व न्यायालय में जमा किए गए एफ़िडेविट में लगातार बदला है।

• जीरामनी देवी ने अपने पति की हत्या के लिए जिम्मेवार सुरक्षा बलों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करवाने के लिए 29 जून 2021 को गारू थाना में आवेदन दिया था। लगभग एक साल के जन संघर्ष व कानूनी लड़ाई के बाद ही पुलिस द्वारा प्राथमिकी (गारू थाना 11/2022 दिनांक 5 मई 2022) दर्ज की गयी।

• पुलिस द्वारा चुपके से ‘तथ्य की भूल’ के आधार पर जीरामनी द्वारा दर्ज प्राथमिकी को बंद करना दर्शाता है कि पुलिस सुरक्षा बल के दोषी पदाधिकारियों को बचाना चाहती है। 

• दोषी सुरक्षा बल के विरुद्ध कार्रवाई एवं पीड़ितों के परिवार के लिए मुआवज़े की मांग जीरामनी देवी, ग्रामीण व महासभा ने पिछले दो वर्षों में लगातार हर स्तर पर की। कई बार इसके विरुद्ध धरना व प्रदर्शन किया गया। साथ ही जीरामनी ने स्थानीय न्यायालय व उच्च न्यायालय में भी संघर्ष किया। इसके बाद ही, यह आंशिक न्याय मिला है। लेकिन अभी तक सरकार ने दोषी सुरक्षा बल के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की है। शायद न्यायालय के आदेश का इंतज़ार है।

इस मामले ने फिर से यह दर्शाया है कि किस प्रकार निर्दोष आदिवासी फर्जी मामले/फर्जी मुठभेड़/राज्य दमन का शिकार होते हैं व उनके परिवार को न्याय मिलना कितना कठिन होता है। दोषी पुलिस व सुरक्षा बल के विरुद्ध महज़ एक प्राथमिकी दर्ज करवाना एक लंबा संघर्ष है।

यह सोचने का विषय है कि उसी ज़िले के आदिवासी अनिल सिंह को पुलिस ने माओवादियों को मदद करने के आरोप में गैर-क़ानूनी तरीके से तीन दिनों (23-25 फरवरी 2022) तक थाने में रखा और उन पर अमानवीय शारीरिक और मानसिक हिंसा की। आज तक न हिंसा के दोषी पुलिस पदाधिकारियों के विरुद्ध दंडात्मक कारवाई हुई है और न ही अनिल सिंह को मुआवजा मिला है।

जीरामनी देवी मामले में न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हुये महासभा ने झारखंड सरकार से निम्न मांगे की है-

• न्यायालय के आदेश के अनुसार तीन महीने के अंदर मामले की निष्पक्ष जांच कर ब्रह्मदेव सिंह की हत्या के लिए ज़िम्मेदार सुरक्षा बल के जवानों व पदाधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाए। 

• न्यायालय द्वारा निर्देशित मुआवज़ा राशि के अलावा राज्य सरकार द्वारा जीरामनी देवी को कम-से-कम 5 लाख रुपये अतिरिक्त मुआवज़ा दिया जाए और उनके बेटे की परवरिश, शिक्षा व रोज़गार की पूरी जिम्मेवारी ली जाए।

• लातेहार जिला अंतर्गत बरवाडीह प्रखंड के कुकू गांव के अनिल सिंह पर पुलिस द्वारा हिरासत में की गई हिंसा के लिए दोषी पुलिस पदाधिकारियों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई हो एवं अनिल को मुआवज़ा दिया जाए।

• स्थानीय पुलिस को स्पष्ट निर्देश दिया जाएं कि पीड़ितों द्वारा दोषियों, खास करके पुलिस व प्रशासनिक पदाधिकारियों पर प्राथमिकी दर्ज करने में किसी प्रकार की परेशानी न हो।

(विशद कुमार पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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