छत्तीसगढ़ः भूपेश सरकार की ‘राम वन गमन पथ’ योजना का आदिवासी कर रहे हैं पुरजोर विरोध

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बस्तर। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार राम वन गमन पथ योजना के तहत 51 स्थलों का चयन कर मंदिर निर्माण और पर्यटन को बढ़ावा देने की बात कह रही है, जिसके तहत राम वन गमन पथ पर्यटन रैली का आयोजन किया जा रहा है। यह रैली 14 दिसंबर सुकमा के रामाराव से निकल के 17 दिसंबर को चंदखुरी में पहुंचना है। इस यात्रा के लिए पूरे प्रशासनिक अमले को भूपेश बघेल सरकार ने प्रचार में लगा दिया है।

14 दिसंबर को सुकमा के रामाराव से यह यात्रा निकली, जहां आदिवासियों ने भारी विरोध किया। दरसल यह यात्रा बस्तर के हर जगह से मिट्टी लेते हुए जाने वाली थी, लेकिन सुकमा में आदिवासियों ने मिट्टी नहीं ले जाने दी। वहीं कोंडागांव में 15 दिसंबर को पहुंची यात्रा को आदिवासियों ने घेर लिया और जगह-जगह सड़कें ब्लॉक कर दीं।

16 दिसंबर को उत्तर बस्तर कांकेर जिले में यात्रा पहुंचने वाली थी। प्रशासन जगह-जगह स्वागत को लेकर तैयारी कर बैठी थी, लेकिन तड़के सुबह नगर से सात किलोमीटर पहले कलगांव में आदिवासियों ने नेशनल हाइवे-30 जाम कर दिया। दो घंटे तक नेशनल हाइवे जाम रहा। यात्रा की गाड़ी से आदिवासियों ने पूरे बस्तर की मिट्टी उतारी और यात्रा को सीधा बिना स्वागत सत्कार के आगे बढ़ा दिया।

आदिवासी नेता सोहन पोटाई कहते हैं, “ये आदिवासियों की मिट्टी को समझ क्या रखे हैं! भले सरकार के लिए आम बात होगी, मिट्टी ले जाना हमारे लिए बहुत बड़ी बात है। हमारा पुरखा मिट्टी में बसता है। आप हमारे पुरखा को किसी हिंदुत्व को नहीं सौंप सकते।”

युवा आदिवासी नेता योगेश नरेटी कहते हैं, “संविधान में धर्मनिर्पेक्ष की बात कही गई है, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार पूरे प्रशासनिक अधिकारियों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए हिंदुत्व का बोझ उठा रही है।”

सर्व आदिवासी समाज के संभाग अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर कहते हैं, “कांग्रेस-बीजेपी ने मिलकर बस्तर की पेनगुड़ी पर हमला किए हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। इस देश के संविधान में जनता को विरोध करने का मौलिक अधिकार है। इसी मौलिक अधिकार के तहत संवैधानिक दायरे में रहकर जनजाति समुदाय द्वारा अपनी माटी रूढ़िगत परंपराओं, ग्राम सभा की व्यवस्था, जल, जंगल, जमीन की संस्कृति, भाषा-बोली पर सरकारी अतिक्रमण का संवैधानिक तरीके से पुरजोर रूप से रामारम से लेकर चित्रकूट एवं पूरे बस्तर संभाग में विरोध-प्रदर्शन किया जा रहा है।

बाइक रैली में सिर्फ सरकारी आदेश के कारण ग्रामीण कर्मचारियों की उपस्थिति है। इसमें कोई ग्रामीण स्वेच्छा से भाग नहीं ले रहा है। यह बाइक रैली पूरी तरह से प्रशासनिक अमले की रैली साबित हो गई है और कुछ स्थानों पर आरएसएस पोषित विचारधारा के लोग एवं कांग्रेस पार्टी के लोग ही शामिल हैं। आदिवासियों ने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने मिलकर बस्तर की सांस्कृतिक विरासत पर हमला किया है। इसका सबक जरूर मिलेगा।

जनजाति समुदाय में आक्रमणकारी बाइक रैली का भारी आक्रोश व्याप्त है। इसका खामियाजा आने वाले दिनों में कांग्रेस पार्टी को अनुसूचित क्षेत्रों में उठाना होगा। विधानसभा चुनाव के दौरान अनुसूची 5 पी पेसा कानून वन अधिकार अधिनियम का वादा करके कांग्रेस पार्टी को जनजाति समुदाय के द्वारा विश्वास व्यक्त किया गया था, लेकिन यह भी बीजेपी की सहयोगी निकल गई।

धर्मनिरपेक्ष देश में राज्य और केंद्र सरकार किसी विशेष धर्म के प्रचार प्रसार और संवर्धन के लिए कार्य नहीं कर सकती, लेकिन यहां पर राज्य सरकार धर्मसापेक्ष होकर जनजातियों की आस्था विश्वास एवं संस्कृति को बलपूर्वक, छलपूर्वक बदलने पर आमादा है। इसका पुरजोर विरोध हो रहा है।

सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग राज्य सरकार से श्रेया प्रश्न करती हैं, “जनजाति समुदाय की पेन व्यवस्था में बैलाडीला के पहाड़ अबूझमाड़ के पहाड़ राव घाट की पहाड़ बोधघाट पठार में हमारे देवी देवता हैं। यही हमारी आस्था एवं धर्म है। इन पर क्यों प्रहार किया जाता है। तब हमारी आस्था पर राज्य सरकार क्यों मौन है, इसका जवाब तो देना ही होगा। आदिवासियों की आस्था क्या मानव भी आस्था नहीं है। दूसरा प्रश्न राम पथ वन गमन काल्पनिक कथा-कहानी इसका कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं है। इसके लिए पूरे प्रशासन का अमला धर्म के सापेक्ष रैली निकाल रहा है। आने वाले दिनों में 18 दिसंबर को गुरु घासीदास की जयंती है।

25 दिसंबर को क्रिसमस है और 10 फरवरी को बस्तर के वीर नायक गुंडाधुर की भूमकाल दिवस है। इस दिन पूरे प्रशासन के कर्मचारियों को रैली निकालने के लिए आदेश जरूर करेगी या नहीं, यह सर्व आदिवासी समाज अनुसूचित जाति समाज अन्य पिछड़ा वर्ग मूल बस्तरिया समुदाय देखने वाली है। राज्य सरकार और प्रशासन इन त्योहारों पर बाइक रैली निकालती है, या नहीं इसका जवाब आने वाले चुनाव में पुरजोर तरीके से मिलने वाला है। इसके लिए कांग्रेस पार्टी तैयार रहे और बीजेपी भी तैयार रहे। 70 सालों से जनजातियों की आस्था पर प्रहार कर यह दोनों पार्टियां एक-दूसरे को आरोप-प्रत्यारोप लगाकर जनजातियों को पांच साल के लिए बेवकूफ बनाकर इसी तरह के हथकंडे अपना रहे हैं।”

क्या हैं सरकार के इरादे और तर्क?
दरअसल, राज्य सरकार राम वन गमन पथ का निर्माण करना चाहती है। इसकी घोषणा बघेल द्वारा 27-29 दिसंबर, 2019 को रायपुर में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दौरान की गई थी। तब भी इस घोषणा की आलोचना हुई थी। मुख्यमंत्री ने अब कहा है कि इस योजना पर 10 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। योजना के तहत राज्य के उन नौ स्थानों को विकसित किया जाएगा, जहां से होकर राम गुजरे थे। राज्य सरकार के मुताबिक प्रदेश में ऐसे 51 स्थानों की पहचान हुई है। जिन नौ जगहों के विकास की बात कही जा रही है. उनमें सीतामढ़ी-हर चौका, रामगढ़, शिवरीनारायण तुरतुरिया, चंदखुरी, राजिम, सिहावा सप्त ऋषि आश्रम, जगदलपुर और रामाराम शामिल हैं।

बहरहाल, छत्तीसगढ़ में द्विज संस्कृति और परंपराओं को खारिज करने और आदिवासी परंपराओं और संस्कृति को बचाने के लिए आंदोलन तेज हो चुका है।

(छत्तीसगढ़ से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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