30 नवंबर से 20 दिसंबर तक पांच चरणों में हुए विधानसभा चुनाव का परिणाम आ गया है। उम्मीद के अनुसार ही महागठबंधन (झामुमो-कांग्रेस-राजद) को स्पष्ट बहुमत (झामुमो-30, कांग्रेस-16, राजद-1) के साथ 81 सदस्यीय विधानसभा में 47 सीटें मिली हैं। अब तक सत्तासीन रही भाजपा को मात्र 25 सीटें ही मिली हैं।
यहां तक कि झारखंड में पहली बार पांच साल तक मुख्यमंत्री रहने वाले रघुवर दास को अपनी सुरक्षित सीट जमशेदपुर पूर्वी से हार का सामना करना पड़ा है। इस चुनाव में एक तरफ एनडीए (भाजपा, जदयू, लोजपा, आजसू) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन में तीन मजबूत दलों (झामुमो-कांग्रेस-राजद) ने पूरी एकजुटता के साथ चुनाव लड़ा।
वाम मोर्चा ने महागठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ा, लेकिन कई सीटों पर वामदलों के प्रत्याशी आपस में भी लड़े। वामपंथी दलों में सिर्फ भाकपा (माले) लिबरेशन को ही एक सीट मिली, जबकि मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) को झारखंड में पहली बार एक भी सीट नहीं मिली। 2014 के चुनाव में वामपंथी पार्टियों को दो सीटें मिली थीं, जिसमें निरसा से मासस के अरूप चटर्जी और धनवार से भाकपा (माले) लिबरेशन के राजकुमार यादव जीते थे। इस बार इन दोनों को तीसरा स्थान मिला।
महागठबंधन के मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए गए झामुमो के हेमंत सोरेन अगले मुख्यमंत्री होंगे। जाहिर बात है कि सोरेन से जनता को बहुत उम्मीदें हैं। क्या झारखंड के आदिवासी-मूलवासी जनता की उम्मीदें नयी सरकार से पूरी होंगी?
नयी सरकार से उम्मीदें
पिछले पांच सालों से विपक्ष में रहते हुए झामुमो ने जिस-जिस आंदोलन को समर्थन किया और भाजपा सरकार की जिन-जिन जनविरोधी नीतियों के खिलाफ उन्होंने सड़क से लेकर विधानसभा तक आंदोलन किया, अब जब वे खुद सरकार में होंगे, तो उन सवालों पर उनका रुख क्या होगा? क्योंकि झारखंड के आदिवासी-मूलवासी जनता के सामने आज भी वे तमाम सवाल जस के तस खड़े हैं। वे सवाल उनके जीवन-मरण से जुड़े हुए हैं।
एक बात तो स्पष्ट है कि झारखंड गठन के 19 साल बाद भी झारखंडी जनता के अलग राज्य के साथ जो आकांक्षाएं जुड़ी हुई थीं, वह पूरी नहीं हुईं और इसे पूरा नहीं होने के पीछे सभी सत्तधारी राजनीतिक दल दोषी हैं। चाहे वह झामुमो ही क्यों न हो। झामुमो ने सिर्फ कुर्सी की चाहत में आदिवासी-मूलवासी विरोधी भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और भाजपा को झारखंड में फलने-फूलने का मौका दिया।
आज झामुमो को अपनी गलती सुधारने का मौका मिला है, इसलिए झारखंड की नयी सरकार को केंद्र की ब्राह्मणीय-हिन्दुत्व-फासीवादी नरेंद्र मोदी सरकार की उन तमाम नीतियों के खिलाफ (जो झारखंड की आदिवासी-मूलवासी जनता के साथ-साथ पूरे देश की मेहनतकश जनता के हित के खिलाफ में है) डटकर और तनकर खड़ा होना चाहिए। ताकि झारखंड की जनता की उम्मीदों पर कुठाराघात न हो।
झारखंड की जनता की उम्मीदों के मुताबिक नयी सरकार को शपथ ग्रहण के बाद अविलंब निम्नलिखित घोषणाएं करने का दबाव होगा, जिस पर झारखंड की जनता पिछले दिनों आंदोलित रही है।
1. एनआरसी और सीएए को झारखंड में लागू न करने का मुद्द।
2. पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान हजारों लोगों पर दर्ज देशद्रोह के मुकदमे को वापस लेने का मुद्दा। इस मुकदमे के तहत जेल में बंद सभी आंदोलनकारियों की रिहाई का मामला।
3. पारा शिक्षकों समेत सभी अनुबंधकर्मियों की नौकरी को स्थायी करना मुद्दा।
4. नौ जून 2017 को गिरिडीह जिला में कोबरा द्वारा मारे गए डेली मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या की न्यायिक जांच करवाने का मामला।
5. सीएनटी और एसपीटी एक्ट में भविष्य में किसी भी प्रकार के संशोधन न करने की शपथ का मामला।
6. आदिवासी-मूलवासी विरोधी भूमि अधिग्रहण संशोधन को कभी लागू नहीं करने का दबाव।
7. सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने की घोषणा करने का दबाव।
8. देशी-विदेशी पूंजीपतियों के साथ किए गए तमाम जनविरोधी एमओयू को अविलंब रद्द कर देने का दबाव।
9. अडानी को गोड्डा में पावर प्लांट के लिए दी गई भूमि वापस लेने का दबाव।
10. मजदूर संगठन समिति समेत कई प्रगतिशील-जनवादी संगठनों पर झारखंड सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को वापस लेने दबाव।
11. ग्रामीण इलाकों से अर्द्धसैनिक बलों के कैंपों को अविलंब हटाने का मामला।
12. माओवादी का टैग लगाकर फर्जी मुकदमे के तहत जेल में बंद आदिवासियों-मूलवासियों की अविलंब रिहाई सुनिश्चित करने का दबाव।
13. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची का नाम बदलकर बिरसा मुंडा विश्वविद्यालय करने की पहल।
14. मॉब लिंचिंग के आरोपियों को कठोर सजा सुनिश्चित करने की पहल।
15. राज्य में सांप्रदायिक तत्वों पर कड़ी निगरानी रखने की व्यवस्था का मामला।
16. संथाली, मुंडारी, हो, कुड़ूक, खोरठा आदि क्षेत्रीय भाषा और क्षेत्रीय लिपि को भी प्रोत्साहित करने की कोशिश।
17. आदिवासी-मूलवासी जनता की इज्जत-अस्मिता और जल-जंगल-जमीन पर उनके परंपरागत अधिकार की रक्षा का संकल्प लेने का दबाव।
18. राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों की रक्षा की भी गारंटी की घोषणा करने का दबाव।
19. किसानों के कर्ज को माफ कर देने का मामला।
20. उच्च शिक्षा को आदिवासी-मूलवासी जनता के लिए सुलभ करने की हरसंभव कोशिश करने का मामला।
रूपेश कुमार सिंह
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)