सरकारी राशन पर आश्रित हैं कोरवा जनजाति के लोग, तीन महीने से नहीं मिला राशन

झारखंड। गढ़वा जिलान्तर्गत रंका प्रखंड के खरडीहा पंचायत के अंतर्गत आता है सिंजो गांव। इस गांव में रहने वाले कोरवा जनजाति के लोग सरकारी राशन पर ही अश्रित हैं लेकिन दो-तीन महीने से इन्हें राशन नसीब नहीं हुआ है। जनजाति के लोग दाने-दाने को मोहताज हो रहे हैं और दिन में एक वक्त का खाना खाकर किसी तरह से गुजारा कर रहे हैं। गांव में कोरवा परिवार के लगभग 600 लोग और लगभग इतनी ही संख्या में है पिछड़ी जाति के यादव (ग्वाला) समुदाय के लोग। यहां के कोरवा जनजाति के मात्र 15 फीसदी लोगों के पास खेती की जमीन है, वह भी काफी कम अनुपात में। यानी कोरवा जनजाति के 85 फीसदी लोग मजदूरी पर निर्भर हैं।

यह गांव चारों तरफ जंगल और पहाड़ से घिरा हुआ है। कहा जाय तो यह क्षेत्र पूरी तरह से प्रकृति की गोद में है। यहां जहां यादवों मुख्य पेशा खेती है वहीं कोरवा लोग पूरी तरह मजदूरी और जंगल पर निर्भर हैं। वे रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं। शिक्षा की स्थिति यह है कि यहां के आदिम जनजाति कोरवा के बच्चे प्राथमिक विद्यालय से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। यानी इनके बच्चे पांचवी से अधिक तक की पढ़ाई नहीं कर पाते हैं, क्योंकि मध्य विद्यालय और हाईस्कूल यहां से काफी दूर हैं और कोरवा जनजाति के बच्चे दूर जाकर पढ़ाई नहीं कर सकते। कारण यह है कि ये अपने परिवार के लोगों के साथ मजदूरी के काम में लग जाते हैं। 

मजदूरी करने के अलावा ये लोग जंगल के कंद-मूल, जड़ी-बूटी, फल-फूल, जलावन की लकड़ी, महुआ, सखुआ का पत्ता और दतुवन वगैरह तोड़कर लाते हैं और सड़क किनारे के छोटे-मोटे होटलों में बेचकर कुछ पैसा पा लेते हैं। सरकारी स्तर से रोजगार के नाम पर मनरेगा में इनका नाम रहता है लेकिन सरकारी कर्मियों और बिचौलियों की मिलीभगत से काम मशीन से करा लिया जाता है और बैंक कर्मियों की मिलीभगत से पैसा भी निकाल भी लिया जाता है। 

राजकीय प्राथमिक विद्यालय में राशन के लिए इंतजार करते कोरवा जनजाति के लोग

सरकारी योजना के तहत आदिम जनजाति के लिए मुख्यतः दो योजनाएं आदिम जनजाति पेंशन योजना और आदिम जनजाति डाकिया खाद्यान्न योजना है। आदिम जनजाति पेंशन योजना का लाभ उसे मिलता है, जो किसी सरकारी, निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी नहीं करता है और किसी भी तरह का नियमित मासिक आय प्राप्त नहीं करता है। इस योजना का लाभुक परिवार की मुख्य महिला ही होती है। यहां कुछ महिलाओं को आदिम जनजाति पेंशन योजना का लाभ मिलता है। लेकिन नई बहूओं को इसका लाभ नहीं मिलता है। इनका राशन कार्ड भी नहीं बना है।

वहीं आदिम जनजातियों के लिए आदिम जनजाति डाकिया खाद्यान्न योजना है। इसके तहत सरकार की ओर से प्रत्येक परिवार को हर माह 35 किलो चावल दिया जाता है। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग से जुड़े अधिकारी खासकर आपूर्ति पदाधिकारी अनाज को आदिम जनजाति के घरों तक पहुंचाते हैं। लेकिन यहां कई-कई महीने बीत जाते हैं, इन्हें नियमित तौर पर इसका लाभ नहीं मिलता है। कभी दो महीने का तो कभी तीन महीने का राशन इन्हें हासिल नहीं हो पाता है।

पिछले 1 अगस्त को इस गांव के लोग सिजों प्राथमिक विद्यालय के पास सुबह से लेकर शाम तक यानी दिन भर राशन के इंतजार में बैठे रहे। क्योंकि अंचल के सीओ की ओर से कहा गया था कि सभी लाभुकों को सिजों प्राथमिक विद्यालय के पास पिछले दो माह का राशन दिया जाएगा। लेकिन राशन नहीं पहुंचा और भूखे प्यासे बड़े-बुजुर्ग महिला-पुरुष अपने बच्चों के साथ दिन भर बैठे रहे। अंततः लोग निराश होकर अपने-अपने घर लौट गए।

राशन के लिए इंतजार करते प्यारी कोरवा

इस बावत खरडीहा पंचायत के सिंजो गांव के प्यारी कोरवा बताते हैं कि हमलोग सुबह से राशन के इंतजार में बैठे रहे, लेकिन शाम तक राशन नहीं आया। ऐसे में हमलोगों का पूरा दिन बर्बाद हो गया। अगर कहीं मजदूरी करते तो कुछ पैसा आता या जंगल से जलावन वगैरह लाकर बेचते तो भी कुछ पैसा आता। बाल बच्चा के लिए खाने की कोई व्यवस्था होती, अब बच्चों के भोजन के लिए भी परेशानी हो गई। उसने बताया कि इस महीना, उस महीना करके दो-तीन महीना हो गया राशन नहीं मिला है। ब्लॉक का बाबू लोग बोला था कि स्कूल पर राशन आएगा और सबको राशन मिल जाएगा। 

इसी गांव की संगीता देवी कहती हैं कि हमारा पूरा दिन खराब हो गया। अगर हम कहीं मजदूरी करते तो बाल-बच्चा को खाना मिलता। बाल-बच्चे भूखे हैं, घर में अनाज का एक दाना नहीं है। ब्लॉक के लोगों ने स्कूल पर बुलाया था कि सबको एक साथ राशन मिल जाएगा, लेकिन हमलोग दिन भर ठगे गये। न राशन आया न ही कोई आकर बताया कि राशन आज नहीं मिलेगा।

रूदना देवी काफी परेशान स्वर में कहती है दो महीना से राशन नहीं मिला है। बच्चे भूखे बिलबिला रहे हैं। समझ में नहीं आता है कि हमलोग बच्चों को क्या खिलाएं और क्या खाएं। दिन भर बैठाकर रखा और राशन भी नहीं दिया। कहीं काम करते तो कुछ मजदूरी मिलता तो पेट चलता।

राशन के लिए इंजतार करती रुदना देवी

आदिम जनजाति कोरवा परिवार की प्रमिला देवी, सबिता देवी, लालती देवी, सनपतिया देवी, मुनेश्वरी देवी, चिंता देवी, प्रभा देवी, कलावती देवी, पार्वती देवी, देवकुमार कोरवा, घुरविगन कोरवा आदि का भी यही कहना था कि हमलोग सुबह से शाम तक राशन के इंतजार में बैठे रहे, लेकिन राशन नहीं आया। ऐसे में हमलोगों का पूरा दिन बर्बाद हो गया। अगर कहीं मजदूरी वगैरह करते तो कुछ पैसा आता, बच्चों को खाना मिलता। 

इसके संबंध में कोरवा समुदाय के ही एक समाजसेवी हिरामन कोरवा ने बताया कि सुबह मोबाइल फोन से सूचित किया गया था कि आज राशन लेकर डाले गांव के निवासी उपेंद्र तिवारी सिंजो आ रहे हैं। सूचना के आलोक में सभी कार्ड धारी लाभुकों को खबर देकर बुलाया गया। लोग दिन भर राशन के इंतजार में बैठे रहे, लेकिन राशन नहीं आने से निराश हो कर लोग घर चले गए। उन्होंने बताया कि आदिम जनजाति कोरवा परिवार के लोग बेहद गरीब हैं। जिनके पास खाने के लिए अनाज नहीं है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो सुबह खाते हैं तो रात को भूखे सोते हैं और रात को खाते हैं तो सुबह भूखा रहना पड़ता है। किसी प्रकार लोग सरकारी राशन पर जीवित हैं।

वे कहते हैं कि पदाधिकारियों को चाहिए कि समय-समय पर राशन, किरासन तेल की आपूर्ति कर दिया करें। ऐसी स्थिति से परेशान कोरवा समुदाय के लाभुकों ने जिम्मेवार पदाधिकारी से एक दिन का हजार्ना देने की मांग की है। इसके संबंध में पूछने पर प्रभारी रंका प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी शंभू राम ने बताया कि राशन एक दो दिन के अंदर चला जाएगा। 

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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