सुरेन्द्रपाल सिंह जी से पहली मुलाक़ात ‘देस हरियाणा’ पत्रिका की बैठक में हुई थी और तब से लेकर परसों शाम आख़िरी मुलाक़ात तक उनके संवाद की ज़िंदादिली मुझे जीवन भर प्रभावित करती रहेगी।
सुरेन्द्रपाल सिंह हरियाणा के वास्तविक बुद्धिजीवियों में से एक थे। उनसे जो कोई भी मिलता था उसी पल से वह उनका दोस्त बन जाता था। सबके साथ खुले दिल से मिलना और बहुत गहराई से सुनना, समझना उनके व्यक्तित्व में शुमार था। ज़िन्दादिल व्यक्ति होने के साथ-साथ चीजों को सीखने और करने की ललक अंतिम क्षण तक थी।
परसों सुरेन्द्रपाल सिंह जी से आख़िरी मुलाक़ात थी। उनका शरीर सूख-कर काँटा हो चुका था। हमेशा साफ-सुथरा (एकदम जेन्टलमैन) रहने वाले व्यक्ति को देखकर कलेजा मुंह को आ गया। वह बेहद पीड़ादायक स्थिति में थे। कैंसर की अंतिम स्टेज में जिसमें खाना-पीना भी पाइप से दिया जा रहा था, उसके बाद भी उनका हौसला पहले जैसा ही बुलन्द था।
सुरेन्द्रपाल सिंह हमेशा शांत रहते थे और हमेशा दूसरों की मदद करते थे। वह चाहे किसी भी तरह से वह कर सकते थे। कोई भी व्यक्ति कितना परेशान हो, उसकी बातें सुनकर वो दस मिनट में शांत कर देते थे। मेरे जीवन के सबसे मुश्किल और अहम फ़ैसलों में हमेशा रास्ता दिखाया और साथ खड़े रहे।
जीवन, समाज और राजनीति के प्रत्येक पक्ष में उनकी समझ लाजवाब थी। बोलने और लिखने में जो उनकी भाषा थी वह अनुकरणीय थी हमेशा आम लोगों की ज़ुबान में बात करते थे और लिखते थे। उनका लेखन भी कमाल का था। चाहे गुग्गा पीर का लेख पढ़िए, या वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक मसले पर कोई लेख हो।
लिखकर लोगों को पढ़ाना और फिर उस पर चर्चा करना उनका पसंदीदा कार्य था। जितने भी पढ़े लिखे व्यक्ति उनके संपर्क में होते सबको अपने लेख पढ़ाते और उस पर चर्चा करते रहते थे। चर्चा में कोई नई बात सीखने को मिलती तो वह अपनी समझ में बढ़ोतरी करने से पीछे भी नहीं हटते। इतिहास के बड़े अध्येता थे और इतिहास की व्याख्या जिस कहानी की शैली में करते थे कि लोग उनको लगातार सुनते रहते थे।
वो एक ऐसे बुद्धिजीवी थे जो किसी भी तरह के पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं थे। राजनीति की कमाल समझ और विश्लेषण उनके पास थी। राजनैतिक नरेटिव बिल्डिंग को लेकर लगातार काम करते रहते थे। आम लोगों में होने वाली बातों का बहुत बारीकियों से विश्लेषण करते थे आप उनसे घंटों बात कर सकते थे। एक व्यक्ति ऐसा था जो हमेशा हर एक मौक़े पर आगे रहता था। चाहे वह किसान आन्दोलन हो, देस हरियाणा पत्रिका की बैठक हो, सृजन उत्सव हो, सृजन यात्रा हो, आगाज-ए-दोस्ती यात्रा हो, भारत जोड़ो यात्रा हो। कभी उनको हमने काम से परेशान होकर पीछे हटते नहीं देखा।
ज़िंदादिली, सकारात्मकता, खुलेदिल की शख़्सियत थे सुरेन्द्रपाल सिंह।
(विकास साल्यान कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शोध छात्र हैं।)
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