बाबू जगदेव प्रसाद जी का समय और समाज, दोनों जिन विडंबनाओं से गुजरे हैं और उन्होंने जिस वैचारिकी की नींव आजादी के बीस साल बाद ही रख दी, उनके निहितार्थ और प्रयोग के साधनों पर विमर्श किया जाना जरूरी...
“दस का शासन नब्बे पर, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।”
“सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग हमारा है”
“धन-धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है।”
तथा
“मानववाद की क्या पहचान, ब्राह्मण भंगी एक समान”
पुनर्जन्म और भाग्यवाद, इनसे जन्मा ब्राह्मणवाद”- जैसे समाजिक न्याय...