Saturday, April 20, 2024

economy

क्या सचमुच कांग्रेस के पुनर्जीवन की शुरुआत हो गई है?

उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की दो रैलियों (वाराणसी और गोरखपुर में) की सफलता से इस राज्य में कांग्रेस की संभावनाओं को लेकर एक नई चर्चा शुरू हुई है। यह शायद मोदी-योगी राज से समाज के एक बड़े हिस्से...

महंगाई ने खड़ा कर दिया है किसानों को शहरी मजदूरों की कतार में

मुरैना जिले के बस्तौली गाँव के गयाराम सिंह धाकड़ को समझ ही नहीं आ रहा है कि सरसों के उम्मीद से कहीं ज्यादा अच्छे भाव मिलने के बाद भी उनका सारा बजट कैसे गड़बड़ा गया। खर्चे अभी भी पूरे...

सत्ता मिली तो ‘हम दो, हमारे दो’ से कैसे निपटेगी कांग्रेस ,क्या है रोडमैप?

देश कि ध्वस्त अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी,भीषण मंहगाई और सरकार कि चतुर्दिक असफलता से एमपी, बिहार विधानसभा चुनाव से शुरू होकर बंगाल चुनाव तक प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और जनाधार में लगातार गिरावट से कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों...

लोहिया की प्रासंगिकता और उनसे जुड़े सवाल

महापुरूषों की स्मृति और मूल्यांकन से ही कोई समाज ऊर्जा ग्रहण कर निखर सकता है। गांधी जी के बाद डॉक्टर राममनोहर लोहिया ही सबसे प्रखर विचारक-चिंतक रहे हैं। अपनी धरती-मिट्टी, उसकी सुगंध से जुड़े हुए हैं। छिटपुट लेखन-भाषण, सभा-गोष्ठियों...

महात्मा गांधी के विचारों की प्रासंगिकता एवं उनसे असहमति: कारण और परिणाम

विचार कभी समाप्त नहीं होते हैं। विशेषकर जन नायकों द्वारा समाज को प्रभावित और उद्ववेलित कर परिवर्तन वादी विचार सदैव प्रासंगिक होते हैं, समाज में विचार, मंथन एवं व्यवस्था में सुधार का मार्ग प्रशस्त करते रहते हैं । यही...

क्या कहते हैं कम्पनियों पर ‘पांचजन्य’के हमले?

निहित स्वार्थों की साधना में सत्तापक्ष व विपक्ष दोनों की भूमिकाएं हथियाना, सांस्कृतिक संगठन के चोले में राजनीतिक मोर्चो पर उतर आना, सारे असुविधाजनक सवालों से कतराना और सुविधाजनक झूठों को बार-बार दोहराना, अर्धसत्यों से काम चलाना, असहमतियों का...

असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के अधिकारों में गंभीर क़ानूनी कमी:जस्टिस भट

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस रवींद्र भट ने कहा है कि असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के अधिकारों की बात आती है तो कानून में एक गंभीर कमी दिखती है। इस क्षेत्र में यह और महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्षेत्रीय...

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने बढ़ा दिया बैंकों के एनपीए का संकट

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) की शुरुआत छोटे कारोबारियों के कारोबार हेतु कर्ज उपलब्ध कराने से हुई है। इसके अंतर्गत शिशु लोन, पचास हजार तक, किशोर लोन 5 लाख तक और तरुण लोन 10 लाख तक विभिन्न ब्याज दरों पर...

निजीकरण: मिथ और हकीकत

निजीकरण का राजनैतिक अर्थशास्स्त्र समझने के लिए किसी राजनैतिक अर्थशास्त्र में विद्वता की जरूरत नहीं है। सहजबोध (कॉमनसेंस) की बात है कि कोई भी व्यापारी कभी घाटे का सौदा नहीं करता, न ही उसका काम जनकल्याण या देश की...

पूर्वांचल में बढ़ता आत्महत्याओं का ग्राफ

भूख, गरीबी, कर्ज और अपराध की गिरफ्त में पूर्वांचल का समाज, अवसाद की अंधेरी कोठरी में समाने लगा है। स्थिति नियंत्रण से बाहर दिख रही है और जागरुक लोग चिंतित हैं कि आखिर इसका समाधान क्या है? किसान और...

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तब की घोषित इमरजेंसी से भयानक है आज का अघोषित आपातकाल?

18 वीं लोकसभा के लिए चुनावों का पहला चरण हो चुका है; 62 प्रतिशत  से अधिक मतदान के साथ...