विचार कभी समाप्त नहीं होते हैं। विशेषकर जन नायकों द्वारा समाज को प्रभावित और उद्ववेलित कर परिवर्तन वादी विचार सदैव…
क्या कहते हैं कम्पनियों पर ‘पांचजन्य’के हमले?
निहित स्वार्थों की साधना में सत्तापक्ष व विपक्ष दोनों की भूमिकाएं हथियाना, सांस्कृतिक संगठन के चोले में राजनीतिक मोर्चो पर…
असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के अधिकारों में गंभीर क़ानूनी कमी:जस्टिस भट
उच्चतम न्यायालय के जस्टिस रवींद्र भट ने कहा है कि असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के अधिकारों की बात आती है…
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने बढ़ा दिया बैंकों के एनपीए का संकट
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) की शुरुआत छोटे कारोबारियों के कारोबार हेतु कर्ज उपलब्ध कराने से हुई है। इसके अंतर्गत शिशु…
निजीकरण: मिथ और हकीकत
निजीकरण का राजनैतिक अर्थशास्स्त्र समझने के लिए किसी राजनैतिक अर्थशास्त्र में विद्वता की जरूरत नहीं है। सहजबोध (कॉमनसेंस) की बात…
पूर्वांचल में बढ़ता आत्महत्याओं का ग्राफ
भूख, गरीबी, कर्ज और अपराध की गिरफ्त में पूर्वांचल का समाज, अवसाद की अंधेरी कोठरी में समाने लगा है। स्थिति…
‘जुर्माना’ कहानी की समीक्षा के बहाने: पसमांदा समाज के महान कथाकार थे मुंशी प्रेमचंद
कथाकार प्रेमचंद की कहानी ‘ज़ुर्माना’ अशराफ बनाम पसमांदा के बीच अंर्तद्वन्द्व को समझने के लिए बेहतरीन कहानी है। इस कहानी…
प्रधानमंत्री का स्वतन्त्रता दिवस उद्बोधन: वे बोले तो बहुत किंतु कहा कुछ नहीं
यह पहली बार हुआ है कि देश के प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस उद्बोधन को किसी गंभीर चर्चा के योग्य नहीं…
गिरते लोकतंत्र के बैरोमीटर पर ऊंचा होता भ्रष्टाचार का पैमाना
भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित तीन महत्वपूर्ण आकलन इस वर्ष जारी हुए हैं: प्रथम, वर्तमान में भारत में भ्रष्टाचार में अत्यधिक…
देश के लोकतांत्रिक वजूद के लिए खतरा हैं आरएसएस और बीजेपी: अखिलेंद्र
देश अपने राजनीतिक व सांस्कृतिक जीवन के सबसे बुरे दौर में है। मोदी सरकार के केन्द्रीय सत्ता पर काबिज होने…