Rome
बीच बहस
नीरो, नीरो होता है, इन्सान नहीं होता
कहानियों और मुहावरों में सुना था कि जब रोम जल रहा था तो कोई नीरो बादशाह बांसुरी बजा रहा था। आज भारत देश का नीरो भी कुछ वैसा ही कर रहा है। आज वह हज़ारों करोड़ रुपये की लागत...
संस्कृति-समाज
स्पार्टाकसः गुलामों की सेना ने हिला दी थी रोम की चूलें
हावर्ड फॉस्ट के कालजयी उपन्यास स्पार्टाकस का हिंदी अनुवाद अमृत राय ने आदिविद्रोही शीर्षक से किया है। मैं इस अनुवाद को मानक मानता हूं। अच्छा अनुवाद वह है जो मौलिक सा ही मौलिक लगे। यह दास प्रथा पर आधारित...
बीच बहस
हाथरस नहीं, मनाली की हसीन वादियां निहार रहा है नीरो
रोम के जलने पर नीरो अब बाँसुरी नहीं बजाता वह मनाली की हसीन वादियों को किसी टनल के उद्घाटन के बहाने निहारने जाता है।...
वहीं नीरो मोर को दाना चुगाते हुए अपने चेहरे पर मानवीयता की नक़ाब ओढ़ लेता है।...
वह...
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