जब भीड़ सड़कों पर ढोर डंगर की तरह भूखी प्यासी चल रही थी तो उच्चतम न्यायालय बिना शपथपत्र के सालिसिटर…
उच्चतर न्यायालयों में जारी है भाई-भतीजावाद का बोलबाला! इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजों की प्रस्तावित सूची पर भी उठे सवाल
इलाहाबाद हाईकोर्ट के कॉलेजियम ने पिछले दिनों 31 नामों को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद एक बार फिर सिफारिशों…
वेतन, EMI और प्रवासी: मोदी सरकार के दावों की पोल खुलनी शुरू
कोरोना संकट को लेकर केन्द्र सरकार ने जनता को राहत देने के लिए तरह-तरह की घोषणाएँ कीं। वित्त मंत्री तो…
पहले संज्ञान लिया होता तो श्रमिकों की इतनी दुर्दशा नहीं होती! योर आनर
उच्चतम न्यायालय का हृदयपरिवर्तन हो गया है और आज उच्चतम न्यायालय स्वयं को प्रवासी मजदूरों का हितैषी बता रहा है।…
सुप्रीम कोर्ट का सरकार से तल्ख़ सवाल, पूछा- कहां गए 20 लाख करोड़ रुपये?
लॉकडाउन के दौरान कारखानों में लगे मजदूरों के वेतन और मजदूरी के भुगतान को लेकर दाखिल की गई जनहित याचिका…
एनजीओ का धंधा, कभी न मंदा
अभी तो मंजिल दूर है, दूर है तेरा गांव। तंबू में तू बैठ कर, ले ले थोड़ी छांव।। मगर उम्मीदों…
राजनीति न करने को कहकर खुद राजनीतिक हो गया गुजरात हाई कोर्ट!
सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार की ओर से पेश हुए वकील तुषार मेहता ने कहा था कि ऐसा लगता है…
तुषार मेहता जी! जनहित याचिकाएं न होतीं तो यूपीए सरकार न उखड़ती और न ही बीजेपी आती सत्ता में
यदि यूपीए-2 सरकार शुरू से ही भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों में न घिरी रही होती और टूजी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले, आदर्श…
जब आलम ‘समानान्तर सरकार’ का हो तो ‘गुस्ताख़’ हाईकोर्ट्स को माफ़ी कैसी?
कोरोना संकट की आड़ में जैसे श्रम क़ानूनों को लुगदी बनाया गया, क्या वैसा ही सलूक अब न्यायपालिका के साथ…
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता को आखिर गुस्सा क्यों आता है!
विधि क्षेत्रों में सवाल उठ रहा है कि सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता को आखिर गुस्सा क्यों आता है? जनहित याचिकाओं (पीआईएल)…