मायनेखेज़ है साहिब जी की साइप्रस यात्रा  

प्रधानमंत्री मोदी साइप्रस के राष्ट्रपति के निमंत्रण पर 15-16 जून तक आधिकारिक दौरे पर हैं। यह उनके तीन देशों की यात्रा का हिस्सा है, जिसमें वे 16-17 जून को कनाडा में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे और क्रोएशिया भी जाएंगे। इसे डिप्लोमैट यात्रा कहा जा रहा है। यह यात्रा ऐसे समय पर हो रही है जब पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर है। इजरायल, ईरान और कुछ समय के लिए लेबनान का हवाई क्षेत्र बंद था, जिसके चलते प्रधानमंत्री के विमान को अरब सागर, सोमालिया, इथियोपिया, इरीट्रिया और मिस्र होते हुए साइप्रस पहुंचना पड़ा।

पिछले दिनों आपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय विदेश नीति की जिस तरह फजीहत हुई है। लगभग सभी देशों ने भारत से किनारा किया उसकी क्षतिपूर्ति की दिशा में इस यात्रा को एक क़दम बताया जा रहा है। उधर एयर इंडिया की अहमदाबाद लंदन उड़ान में मारे गए 241 लोगों में इंग्लैंड के 53और कनाडा का एक व्यक्ति शामिल है।जिसकी जांच करने यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका से बोईंग कंपनी के जांच दल आ रहे हैं। इस बीच जो ख़बरें आ रही हैं उनके मुताबिक कहा जा रहा कि यह तुर्किश करामात है जो इसकी देखभाल के लिए नियुक्त थे।

आपको याद होगा ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तुर्किये ने जिस तरह से खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था और साथ ही भारत पर हमले के लिए पाकिस्तान को ड्रोन मुहैया कराए थे उससे भारत और तुर्किये के संबंधों में खटास आई है। अब प्रधानमंत्री साइप्रस दौरे पर गए हैं और उनका दौरा तुर्किये के लिए एक संदेश के तौर पर देखा जा रहा है। क्योंकि तुर्किये और साइप्रस में दुश्मनी है और साल 1974 के बाद से दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध भी नहीं हैं।

संघर्ष के दौरान भारत ने दावा किया था कि आठ मई को पाकिस्तान ने बड़ी संख्या में जिन ड्रोनों से हमला किया गया था, वे तुर्की निर्मित सोनगार ड्रोन्स थे हालांकि, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने हमले की बात से इनकार किया था। मात्र12 लाख की आबादी वाला यह छोटा सा मुल्क यूरोपीय प्रवेश द्वार होने के कारण महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने यहां सीईओ सम्मेलन में साइप्रस के साथ अपने व्यापार सम्बन्ध और बढ़ाने की बात कही है।ऐसा कहा जा रहा है कि इससे तुर्किए में बेचैनी बढ़ेगी। देखना यह होगा इसका कितना असर होता है।यह देश भारत का समर्थक मित्र देश रहा है। इंदिरा जी और अटल जी ने भी यहां की यात्रा की थी।

इस यात्रा का मकसद सिर्फ इतना नहीं है। साइप्रस मनी लांड्रिंग की जन्नत कहा जाता है। वहां गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी का बड़ा कारोबार और मनी लांड्रिंग का खेल भी चल रहा है। जितना मर्ज़ी उतना पैसा साइप्रस में ब्लैक व्हाइट घूमता है।कोई रोक टोक नहीं है।हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में साइप्रस में अडानी के मनी लॉन्ड्रिंग नेटवर्क पर तफ़्सील से लिखा गया था। जब तक हिंडनबर्ग की रिपोर्ट नहीं आई थी तब तक गौतम अडानी ने विनोद अडानी से किसी भी तरह के व्यापारिक रिश्तों से इनकार कर दिया था। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बा’द अडानी ने मजबूरन विनोद अडानी के साथ व्यापारिक रिश्तों को क़ुबूल किया था।

यात्रा उस समय हो रही है जब गौतम अडानी के इज़राइल स्थित हाइफ़ा बंदर गाह को ईरान द्वारा ध्वस्त करने की अपुष्ट खबरें आ रही हैं। तब मित्र राष्ट्र साइप्रस में गौतम अडानी जैसे कारोबारी की स्थापना और मजबूती के लिए भी यह यात्रा मायने रखती है। दिनों दिन बढ़ते अमरीकी दबाव से गौतम को मुक्त कराने की दिशा में यह एक पहल भी समझी जा रही है।

वैसे भी हम देखते आए हैं कि साहिब जी की लगभग सभी विदेश यात्राएं अपने कारोबारी प्रगाढ़ मित्र के लिए ही हुई हैं।इस यात्रा का प्रथम उद्देश्य भी यही जान पड़ता है। इसीलिए चर्चाओं में यह शुमार है कि मोदी की जान अडानी में ।अडानी की जान साइप्रस में और मोदी साइप्रस में। बात गहरी है तथा समझने की भी है।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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