भाजपा के जाल में फंसने से बच रहा है महागठबंधन

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बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वामपंथी दलों का महागठबंधन अपने चुनाव अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने से परहेज कर रहा है। इतना ही नहीं, वे भाजपा नेताओं द्वारा उठाए जा रहे विवादास्पद और भड़काऊ बयानों को भी तूल देने से बच रहे हैं। महागठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता अलग-अलग तरीके से इसका इशारा भी कर रहे हैं। उन्होंने अपने उम्मीदवारों और जमीनी कार्यकर्ताओं को भी हिदायत दे रखी है कि वे अपने हमले का फोकस सिर्फ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर ही रखें और मोदी को निशाना बनाने और भाजपा नेताओं द्वारा दिए जा रहे भड़काऊ बयानों पर प्रतिक्रिया देने से बचें।

हालांकि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस मामले में कोई रियायत नहीं बरतेंगे और उनका हमले का निशाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहेंगे। इस बात का स्पष्ट संकेत नवादा में हुई उनकी पहली चुनावी रैली से भी मिल गया। राहुल ने अपने भाषण में भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ को लेकर मोदी पर जम कर निशाना साधा और उन पर देश को गुमराह करने और सेना का अपमान का करने का आरोप लगाया।

पिछले दिनों सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वेक्षण में बताया गया है कि बिहार में नीतीश कुमार के कामकाज से 52 फीसदी लोग संतुष्ट हैं पर 61 फीसदी लोग मोदी के काम से संतुष्ट हैं, इसीलिए भाजपा के स्टार प्रचारक भी नीतीश से ज्यादा मोदी के काम का डंका पीट रहे हैं। योगी आदित्यनाथ अपनी सभाओं में सिर्फ जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की बात कर रहे हैं। जेपी नड्डा का भाषण इस पर केंद्रित है कि मोदी ने राजनीति की संस्कृति बदली और उनके बाद से ही लोगों ने जाति के बजाय विकास के बारे में बात करना शुरू किया। महागठबंधन के नेताओं के पास इसकी काट नहीं है। वे मोदी के बजाय अपना सारा फोकस सिर्फ नीतीश कुमार पर रखना चाह रहे हैं।

महागठबंधन में शामिल सीपीआई के नेता कन्हैया कुमार ने अपने एक इंटरव्यू में कहा भी है कि बिहार का चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर जनमत संग्रह नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार के लोगों में नीतीश कुमार के खिलाफ नाराजगी है और चुनाव भी इसी मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। अगर तेजस्वी के भाषण को ध्यान से देखें तब भी यह बात समझ में आती है। वे केंद्र सरकार के कामकाज का मुद्दा नहीं बना रहे हैं। अर्थव्यवस्था, चीन, कोरोना वायरस, कृषि कानून, श्रम कानून आदि किसी मुद्दे पर वे कुछ नहीं बोल रहे हैं।

तेजस्वी का हमला सिर्फ नीतीश कुमार पर है। वे छोटे मोदी यानी सुशील मोदी का नाम लेने से भी बच रहे हैं। भाजपा लगातार बिहार सरकार में शामिल रही है पर तेजस्वी भाजपा के मंत्रियों या उनके कामकाज पर कुछ नहीं बोल रहे हैं। पुल टूटे, सड़कें बहीं पर सड़क निर्माण मंत्री और भाजपा के नेता नंदकिशोर यादव पर कोई हमला नहीं हो रहा है। कोरोना वायरस को संभालने में बिहार सरकार बुरी तरह से फेल रही, परंतु स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय के ऊपर कोई सवाल नहीं उठाया जा रहा है। ले-देकर नीतीश कुमार निशाने पर हैं।

यही नहीं, महागठबंधन के नेता भाजपा की ओर से छेड़े जा रहे विभाजनकारी मुद्दों पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। भाजपा की ओर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी चुनावी सभाओं में राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दों पर ही भाषण कर रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने पहले चुनावी दौरे की तीनों रैलियों में राम मंदिर और धारा 370 का जिक्र किया।

केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय और गिरिराज सिंह भी चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करने के लिए लगातार भड़काऊ भाषण दे रहे हैं, लेकिन महागठबंधन के नेताओं ने इन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। भाजपा चाहती है कि महागठबंधन के नेता उसकी ओर से उठाए गए मुद्दों पर प्रतिक्रिया देते हुए कुछ बोलें, लेकिन महागठबंधन के नेता उसके इस दांव का भांपते हुए अपने भाषणों में सिर्फ स्थानीय मुद्दों पर ही फोकस करते हुए नीतीश कुमार को निशाना बना रहे हैं।

असल में महागठबंधन के नेताओं को लग रहा है कि नरेंद्र मोदी का नाम और भाजपा द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे बिहार में वोटों का ध्रुवीकरण करा सकते हैं। उनके जेहन में डेढ़ साल पहले हुए लोकसभा चुनाव के नतीजे घूम रहे हैं। मोदी के नाम पर हुए उस चुनाव में भाजपा गठबंधन ने राज्य की 40 में से 39 सीटें जीत लीं। राजद के इतिहास में पहली बार हुआ कि उसका कोई लोकसभा सांसद नहीं जीत सका, इसलिए मोदी का नाम लेने से महागठबंधन के सारे नेता बच रहे हैं।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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