तमिलनाडु के कन्याकुमारी से, तीन समुद्रों के मिलन की उच्छल तरंगों की गर्जना के बीच से शुरू हुई भारत की राजनीति के इतिहास की सबसे लंबी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का अभी सिर्फ़ एक सप्ताह पूरा हुआ है। कुल 3750 किलोमीटर की यात्रा में सिर्फ 150 किलोमीटर। पाँच महीनों के काल की यात्रा का सिर्फ एक सप्ताह। और, इसी बीच भारत की राजनीति का आख्यान बदलने लगा है। भारत एक नई करवट लेता हुआ प्रतीत होने लगा है।
कन्याकुमारी के सागर तट पर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के प्रस्थान के मौक़े पर हुई सभा में शामिल प्रसिद्ध भाषाशास्त्री जी. एन. देवी लिखते हैं कि आज जब जनतंत्र और संविधान से जुड़े प्रत्येक शब्द के अर्थ को बदल दिया जा रहा है, राजनीति के सत्य को कुचल दिया जा रहा है, तभी इस सभा के स्वरों ने समुद्र की लहरों और तेज हवाओं की गर्जना के ज़रिए दिग-दिगंत में एक नए भारत के संदेश का प्रसारण शुरू कर दिया है ।
तमिलनाडु और केरल की सड़कों पर स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े, नौजवान-प्रौढ़, सभी वर्ग, धर्म और जाति के लोग जिस उत्साह से इस यात्रा के अभिनंदन में उमड़ते हुए दिखाई पड़ रहे हैं, उससे लगता है कि जैसे किसी ने उनके अंतर की पहाड़ समान बाधाओं को तोड़ कर उन्हें मुक्त कर दिया है।
राजनीति का मुक्तिकामी सत्य, उसके परम ऐश्वर्य का स्वातंत्र्य अपने बाक़ी सारे उपादानों और निमित्त को, संगठन, जोड़-तोड़ और अन्य सारे कर्मकांडों को किनारे करके इसी प्रकार अपने ‘स्व’ पर ही प्रतिबिंबित हुआ करता है। यह बिना बिंब का प्रतिबिंब ही राजनीति के ऐश्वर्य का स्फोट है। जो क्षणभर पहले तक दिखाई न देता हो, वही एक विकराल रूप में बहुमतों की आँख के सामने अंधेरा पैदा कर देता है। आज के दार्शनिकों की भाषा में इसे ही कहते हैं — Event, एक संक्रमण।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा सचमुच भारत की राजनीति का एक ऐसा इवेंट है, जिस पर आज सारी दुनिया की नज़र अटक गई है। इसके दीर्घायतन की कल्पना से अनेक लोगों के होश फ़ाख्ता हो रहे हैं।
भारत का जो मीडिया भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए इसके संदर्भ में ऊलजुलूल बातें कर रहा है, उसकी फ़ज़ीहत भी वैसे ही हो रही है, जैसी भाजपा के तमाम नेताओं की हो रही है। आरएसएस का सुलगता हुआ निकर इनकी भी दुर्दशा का समान प्रतीक बन चुका है।
और जो सोशल मीडिया अभी इधर-उधर की बातें ज़्यादा कर रहा है, उसकी दशा म्रियमाण प्राणी की तरह की है। उसकी अटकलबाजियां और विश्लेषणकारी अदाएं निरर्थक जान पड़ती हैं। उसकी वार्ताओं के तमाम रोमांचकारी शीर्षक खोखे और अरुचिकर नज़र आते हैं।
चुनावों के वक्त मैदान में पाए जाने वाले रिपोर्टरों का अभी अपने दफ़्तरों में बैठ कर टीका-टिप्पणी करना उनके अंदर गहरे तक पैठ चुकी राजनीति-विमुखता और निराशा का प्रमाण लगता है ।
भाजपा ने राजनीति में अपने झूठ के अस्त्रों के साथ ही अपने अपार धन के बाँध को भी खोल दिया है। विपक्ष, ख़ास कर कांग्रेस के विधायकों को शायद रेकर्ड धन देकर अपने पाले में ला कर राजनीति की गंदी कहानियाँ गढ़ी जा रही हैं। लेकिन उनकी विडंबना है कि गोवा की तरह की उनकी तमाम कहानियाँ अभी यात्रा के रूप में राजनीति के हाथी की झूमती हुई चाल के सामने कुत्तों की भौंक से भी ज़्यादा घिनौनी प्रतीत होती हैं। ऐसी रोमांचविहीन अपराध कथाओं का दो कौड़ी का मोल भी नहीं बच रहा है।
हम फिर से दोहरायेंगे, ‘भारत जोड़ो यात्रा’ राजनीति के जगत का वह प्रतिबिंब है जिसके बिंब की कल्पना निरर्थक हुआ करती है। ऐसे स्व-प्रतिष्ठित राजनीति के जगत के प्रतिबिंब को राजनीति के परम ऐश्वर्य के प्रतीक ही धारण करते हैं। इसे व्यतीत हो चुके अन्य उदाहरणों से व्याख्यायित नहीं किया जा सकता है । हम सहज ही यह कल्पना कर सकते हैं कि आने वाले और लगभग 34 हफ़्तों के बीच से भारत की सड़कें कैसे जन-प्लावन की साक्षी बनेगी।
(अरुण माहेश्वरी लेखक और चिंतक हैं। आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)
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