पिछली कई सदियों से हिंदू-मुस्लिम संस्कृति का जो ताना बाना बुना गया था उसे संभल जिला प्रशासन ने तहस-नहस कर दिया। वे इस बात की ताल ठोक रहे हैं कि दंगा फसाद और कत्लेआम नहीं हुआ। यह सब जिस तरह किया गया सबके सामने है। प्रशासन की तारीफ इस बात की हो रही है कि जुमा के रोज यानि होली के रोज़ मस्ज़िदों को ढका गया। ढाई बजे तक जम कर हुड़दंगियों ने 49 ढकी हुई मस्जिदों के सामने मुस्लिम समाज को जी भर कोसा, गाली-गलौज हुई लेकिन प्रशासन सब देखता सुनता रहा। जुमे की नमाज़ के लिए 2.30 बजे का वक्त निर्धारित था किंतु नमाज़ी तत्काल निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। इससे नमाज़ का वक्त गुजर गया। लेकिन बाद में नमाज़ अदा की गई। जिसकी चर्चा देश विदेश में हो रही है।
कारक कोई भी हो पर जिला प्रशासन ने जिस तरह का यह प्रयोग किया है वह मनोमालिन्य बढ़ाने वाला है क्योंकि कई मुस्लिम परिवार सदियों से होली खेलते आए हैं उन्हें होली मिलन का अवसर नहीं मिला। एक मुस्लिम का तो यह भी कहना है हमें रंग गुलाल से कभी परहेज नहीं। रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर नमाज़ पढ़ने से भी ख़ुदा की इबादत हो सकती थी। उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए बताया कि कीचड़ में सने कपड़ों में भी नमाज हुई है।
हम सदियों से एक हैं हमारे भाईचारे में खलल डालने वाली ताकतें आज सत्तारूढ़ हैं इसलिए इस तरह के कदम उठाए गए। ये वही ताकतें हैं जिन्होंने बाबरी को ढहाने और गुजरात में नरसंहार के लिए कसूरवार थीं।
बेशक, यदि मुजफ्फरनगर, दिल्ली, प्रयागराज, भोपाल, इंदौर जैसे बड़े नगरों में जुमा और होली साथ मन सकते हैं तो संभल में क्यों नहीं? यह भी सत्य है सरकार की शह पर कुछ उन्मादी तत्व युवाओं को भड़काते हैं और इसके बदले मंत्री जैसे पद सुशोभित करते हैं। गोली मारो…….को। इसका एक उदाहरण है। जबकि इसी देश में बरसों से ईद, होली, दीपावली, क्रिसमस और रक्षाबंधन जैसे पर्व साथ-साथ मनाए जाते रहे हैं। मध्यप्रदेश में धार जिला में स्थित भोजशाला में सरस्वती पूजन और नमाज़ साथ साथ होती रही है। अभी तक बहुसंख्यक हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ये रिश्ते मज़बूत हैं। पैगम्बर साहब के जन्मोत्सव का अवसर हो या ईद का हिंदू भाई बड़ी तादाद में हर जगह उपस्थित रहते हैं।
अब सवाल ये उपस्थित हुआ है कि मुसलमानों को आप जितना परेशान कर रहे हो, ये कतई ठीक नहीं है।
बहुसंख्यक भाई चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान इसका समाधान इनके ही हाथ में है वे चुप ना बैठे और हिंदू और मुस्लिम भाइयों के बीच जुड़े रिश्ते को पुनर्स्थापित करें। ये सरकार के बस में नहीं है। पहल दोनों ओर से होनी चाहिए। इसके लिए निडरता और सत्य का सहारा लेना होगा। डरते हुए दोनों पक्ष घर बैठे रहेंगे तो कटुता और बढ़ेगी। ये हिंदुस्तान हम सबका है। जो इसके निवासी हैं। विविध वेशभूषा, खान-पान, बोलीबानी, संस्कृति सब अलग हैं किंतु अनेकताओं में एकता के लिए यह देश जाना पहचाना जाता है। अल्लामा इक़बाल इसे भली-भांति समझ गए थे इसलिए तो लिख पाए-सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा।
इस पहचान को कायम रखना हम सब का दायित्व है। हमारे बीच घुसे नफ़रती चिंटुओं का सामाजिक बहिष्कार करना आज की अनिवार्य आवश्यकता है। यह जादू सरकार नहीं, हम कर सकते हैं। तब कहीं मस्जिद, चर्च ढकने की ज़रुरत नहीं होगी। सब मिलकर गर्व से सभी त्यौहार मनाएंगे। संभल में इस भावना का जिस तरह दहन हुआ है वैसा कभी कहीं नहीं होगा।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)