झारखंड में जल संकट गहराया, महिलाएं काफी मेहनत के बाद जुटा पाती हैं जरूरत भर पानी

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जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती और आज जिस तरह जल संकट का बढ़ता जा रहा है वह काफी चिन्तनीय विषय बनता जा रहा है जिससे झारखंड भी अछूता नहीं है। आज पानी राजधानी रांची समेत राज्य भर के लोगों के जीवन में एक संघर्ष का विषय बन गया है। राजधानी में पानी की किल्लत इतनी बढ़ गई है कि लोग रोज नहा भी नहीं पा रहे हैं। कुछ लोग दूर रिश्तेदारों के यहां या जो लोग यहां रोज़गार के लिए बसे हैं वे अब अपने घर को पलायन भी कर रहे हैं।

रांची के विद्यानगर की बात करें तो यहां रहने वाले किराएदार पलायन कर चुके हैं। मोहल्ले के लगभग हर घर में किराएदारों के घरों में ताला लटका हुआ है। पानी की किल्लत देख यहां रहने वाले किराएदार भाग खड़े हुए हैं। मकान मालिकों का कहना है कि वे भी मजबूरी में रह रहे हैं, उनके पास अपना घर है, इसलिए भाग भी नहीं सकते।

वैसे पानी की कमी को दूर करने के लिए टैंकर से पानी लाया जा रहा है ताकि पानी की कमी को दूर किया जा सके। लेकिन पानी की किल्लत दूर करने के सभी प्रयास अब तक विफल हो रहे हैं। पानी का टैंकर देखते ही देखते लोगों में अफरा तफरी मच जाती है। पानी लिए लोग टूट पड़ते हैं। यहां तक कि पानी को लेकर रोज व रोज लोगों में गाली-गलौज और मारपीट भी शुरू हो गई है।

राज्य में पानी की हो रही किल्लत पर आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2020 में राज्य में भूमिगत जल का दोहन और निकासी 29.13 फीसदी था और वो 2022 में बढ़कर 31.35 फीसदी हो गया है। नगर निगम की माने तो हर साल जल का स्त्रोत 20 फीट नीचे जा रहा है, जो चिंता का विषय है। रांची समेत बोकारो, जमशेदपुर, गिरिडीह, धनबाद सभी जगह कमोवेश में यही स्थिति है। झारखंड के शहरी क्षेत्रों में पानी की जरूरत 1616.3 लाख गैलन पानी की है, लेकिन उपलब्धता सिर्फ 734.53 एमसीएम है।

कहना ना होगा कि राज्य में शहर हो या ग्रामीण क्षेत्र, पानी की व्यवस्था लगभग महिलाओं के कंधों पर है। स्थिति यह है कि वे काफी मेहनत के बाद इधर-उधर से जरूरत भर पानी जुटा पाती हैं। बता दें कि पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर बसे करमाटांड़ पंचायत का एक गांव मसधारी। जहां की रहने वाली बामरी पहाड़िन का दिनभर का अधिकांश समय पानी की व्यवस्था करने में ही चला जाता है। दिन में पानी की व्यवस्था नहीं होने पर रात में भी इसी काम में लगना पड़ता है। वहीं गांव के बाकी परिवारों की महिलाओं का भी मुख्य काम यही रहता है।

इन महिलाओं को रोज़मर्रा के कामों में खाना बनाना, बच्चों को देखना, उन्हें खाना खिलाना के साथ-साथ इनके जिम्मे पानी की व्यवस्था सबसे जरूरी होता है। बताना जरूरी हो जाता है कि पहाड़ी गांव से ना नदी गुजरती है और ना ही पानी के लिए चापाकल या अन्य कोई व्यवस्था है। एक बरसाती झरना और कुआं है। लेकिन गर्मी में वह भी सूख जाता है। ऐसे में पहाड़ की तलहटी में बने एक झरने में लोग बारी-बारी से पानी भरने के लिए पहुंचते हैं।

मसधारी गांव में करीब 27 परिवार के करीब 200 लोग रहते हैं। मुख्य सड़क से करीब 4 किलोमीटर भीतर स्थित गांव में पेयजल समस्या को दूर करने के लिए लगभग चार वर्ष पूर्व डीप बोरिंग कर पानी टंकी का निर्माण कराया गया था। लेकिन विभाग व संवेदक की लापवाही के कारण आज तक उक्त योजना का कार्य पूर्ण नहीं किया गया है। जिससे ग्रामीणों की समस्या जस की तस बनी हुई है। लिट्टीपाड़ा प्रखंड का सिर्फ मसधारी गांव ही पानी की समस्या से नहीं जूझ रहा है बल्कि इस तरह के कई गांव है, जहां के लोग पानी की व्यवस्था में ही दिन रात लगे रहते हैं। यहां का पानी भी पूरी तरह से साफ नहीं होने के कारण बड़ी तादाद में लोग एक साथ बीमार भी होने लगते हैं। ऐसे में इस इलाके में प्रदूषित पानी पीने से डायरिया सहित अन्य बीमारियां फैलते रहती है।

गांव की महिला बामरी पहाड़िन ने बताया कि पहाड़ी गांव होने के कारण पानी की सुविधा नहीं है। हम लोग झरने का पानी पीते हैं। दिन रात पानी की व्यवस्था में चला जाता है। घर का बाकी काम भी करना पड़ता है जिससे परेशानी काफी बढ़ जाती है। पानी की व्यवस्था कैसे हो इसको लेकर सरकार को विचार करना चाहिए, हमलोग बहुत परेशानी से रहते हैं।

वहीं मासधारी गांव के ग्राम प्रधान बैदा पहाड़िया ने कहते हैं कि गांव में पानी की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रशासन को कई बार बोले हैं। पानी टंकी जो बनाया गया और अधूरा रह गया उसको लेकर भी बोले लेकिन अभी तक काम पूरा नहीं हुआ। ऐसे में हमलोग झरना और बरसाती कुआं का पानी पीने के लिए मजबूर हैं। गांव के लोग झरने का दूषित पानी पीने के लिए रतजग्गा कर गांव से लगभग आधा किलोमीटर पहाड़ के नीचे से ऊबड़-खाबड़ पथरीली रास्ते से पानी लाने को विवश है।

ग्रामीण बामरा पहाड़िया ने बताते हैं कि गर्मी के मौसम में पानी की घोर समस्या उत्पन्न हो जाती है। गांव में सिर्फ एक ही झरना कूप है। जो गर्मियो में सूखने के कगार में पहुंच जाती है। ऐसे में गर्मी के समय पहाड़ से नीचे उतर कर लगभग दो किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है।

करमाटाड़ पंचायत के मुखिया माड़ी पहाड़िन ने बताती है कि पहाड़ी इलाकों में पीने के पानी के लिए ग्रामीणों को काफी परेशान होना पड़ रहा है। इन सभी समस्या का निदान के लिए लगातर प्रयास किया जा रहा है। उम्मीद है कि ग्रामीणों को जल्द ही समस्या से निजात मिलेगा।

राज्य में भीषण गर्मी के कारण नदी, नाला, तालाब सब सूखने लगे हैं। इसका असर लोगों के रोजमर्रा की जिन्दगी पर पड़ रहा है। इसका उदाहरण हम सरायकेला में रसुनिया पंचायत के कई गांवों में देख सकते हैं। जहां पानी की किल्लत से त्राहिमाम मचा हुआ है। स्थिति यह है कि लोगों को नहाना भी मुश्किल हो गया है। लोगों के साथ-साथ पशुओं को भी पानी की मार झेलना पड़ रहा है।

बामनी नदी सुख जाने से रसुनिया पंचायत के दर्जनों गांव पर प्रभाव पड़ा यहां के ग्रामीणों को एक बूंद पानी के लिये तरसना पड़ रहा है महिलाओं को एक बाल्टी पानी के लिये घंटो अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। पानी के लिये धूप में कतार में खड़ा होना पड़ रहा। सबसे अधिक परेशानी सुखसारी, तिरुलडीह, रसुनिया, हाथीनादा, रुयानी, पियाल्डीह, कुंगलाठाड़ गांव में हैं।

यहां की महिलाओं को प्रतिदिन डेकची, हांडी और बाल्टी लेकर दूर दराज जाना पड़ता है और पानी जमा कर माथे पर ढोकर घर वापस आना पड़ता है। यही नहीं इस इलाके में पशु भी प्यास बुझाने के लिये जलाशयों के आस-पास चक्कर काटते रहते हैं। पीएचईडी की ओर से 15 करोड़ की लागत से चार लाख लीटर क्षमता की जलमीनार पिछले करीब पांच वर्षों से बनकर तैयार है। पर लोगों को पेयजल सप्लाई नहीं हो पा रही है। जबकि इस जलमीनार से तीन हजार से ज्यादा घरों को पानी सप्लाई करने की योजना है। इसी सरकारी कुव्यवस्था के कारण क्षेत्र में जलसंकट छाया हुआ है।

बताते चलें कि सरकार ने पिछले साल 226 सूखा प्रभावित प्रखंडों के लिए 1200 करोड़ रुपये खर्च किए। यदि यह पैसा छोटे चैक डैम और वर्षा जल संचयन जैसे अवधारणात्मक कार्यों पर खर्च किया गया होता, तो हर साल पानी की कमी नहीं होती। यहां हर साल बारिश का पानी करीब 1200 से 1400 मिमी. उसी पानी से सारी जरूरतें पूरी करनी पड़ती हैं। इसमें 23,500 एमसीएम सतही जल के रूप में तथा 500 एमसीएम भूजल के रूप में प्रतिवर्ष उपलब्ध होता है। भौगोलिक स्थिति के कारण 80 प्रतिशत सतही और 74 प्रतिशत भूजल राज्य के बाहर चला जाता है, जो यहां के 38 प्रतिशत सूखे का मुख्य कारण है।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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