7 दिसम्बर, 21 को ज़ारी वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट (World Inequality Report*) 2022 रिपोर्ट ने पिछली सदी के आखरी दशक से ज़ारी नवउदारवादी दौर के सबसे बड़े झूठ का पर्दाफाश करते हुए तथ्यों के आधार पर यह स्थापित किया है कि नवउदारवाद के समर्थक विद्वानों द्वारा पढ़ाया जा रहा ज्ञान कितना बोदा और भ्रामक है। हमें बताया जाता रहा है कि विकास ही गरीबी से मुक्ति की कुंजी है पर सच यह है कि पिछले तीस सालों में विकास के बावजूद गैरबराबरी और विकास में गरीबों की हिस्सेदारी में भारी गिरावट आई है। यूँ तो रिपोर्ट दुनिया के 25 देशों सम्बन्धी तथ्यों का विश्लेषण करती 236 पेज की एक विस्तृत रिपोर्ट है लेकिन हम अपनी चर्चा भारत में बढ़ती गैरबराबरी के सवाल पर ही केन्द्रित करेंगे।
रिपोर्ट के अनुसार आज भारत एक गरीब और सबसे अधिक असमानता वाले देशों की सूची में शामिल हो गया है। 2021 में देश की ऊपरी एक फीसदी आबादी के पास वैशविक स्तर पर क्रय शक्ति समता सिद्धांत (purchasing power parity theory ) के आधार पर राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी हिस्सा है जबकि निचले पचास फीसदी तबके के पास केवल 13 फीसदी है।
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत की वयस्क आबादी की औसत राष्ट्रीय आय भी क्रय शक्ति समता सिद्धांत के आधार 2,04,200 रुपये हैं जबकि निचले तबके की आबादी (50 प्रतिशत) की आय 53,610 रुपये है और शीर्ष 10 फीसदी आबादी की आय इससे करीब 20 गुना (11,66,520 रुपये) अधिक है। रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि “भारत एक गरीब और बहुत ही असमान किन्तु एक संपन्न अभिजात वर्ग वाले देश के रूप में अलग ही दिखता है।”
भारतीय गैर बराबरी की एक झलक रिपोर्ट में दिए गए तथ्यों पर आधारित निम्न दो तालिकाओं से भी मिल जाएगी।
1. वर्तमान में देसी संपत्ति में आबादी के विभिन्न तबकों का हिस्सा
(क्रय शक्ति समता सिद्धांत के आधार पर)

2. वर्तमान में देसी संपत्ति में आबादी के विभिन्न तबकों का हिस्सा
(क्रय शक्ति समता सिद्धांत के आधार पर)

भारत में वर्तमान गैर बराबरी में चर्चा करते समय दो बातों पर और गौर करना चाहिए
रिपोर्ट इस शर्मनाक सच्चाई की तरफ ध्यान दिलाती है कि भारत में आज गैरबराबरी गुलाम भारत में विद्यमान गैर बराबरी से भी ज्यादा है। 1940 के दशक में ऊपरी दस प्रतिशत आबादी का राष्ट्रीय आय में हिस्सा 50 प्रतिशत और निचले 50 प्रतिशत आबादी का हिस्सा लगभग 15 प्रतिशत था। ये गैरबराबरी आज़ादी के बाद के दशकों में कम हुई। उदहारण के लिए 1980 में जहाँ ऊपरी 10 प्रतिशत आबादी का राष्ट्रीय आय में 30/32 प्रतिशत था वहीं निचली 50 प्रतिशत आबादी का का हिस्सा 20/22 था। लेकिन 1990 के बाद से नयी आर्थिक नीति के नाम पर जो जन विरोधी नीतियां सरकार ने अपनाई उसका फायदा केवल ऊपरी 1% आबादी को ही मिला है, गैर बराबरी फिर बढ़ने लगी है। नतीजतन आज 2021 में ऊपरी 10 दस प्रतिशत आबादी का राष्ट्रीय आय में हिस्सा 57 प्रतिशत और निचले 50 प्रतिशत आबादी का हिस्सा केवल 13 प्रतिशत ही है।
यह भी ध्यान रखना होगा कि भारतीय नागरिकों की आय का स्तर दुनिया के कई देशों से काफी कम है। इसलिए गैर बराबरी का बढ़ता स्तर अत्यंत मारक हो जाता है। क्योंकि भारत में गैर बराबरी का अर्थ है कि बहुसंख्यक आबादी के निचले तबके को खाना, कपड़ा, पढ़ाई, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित रखना। यही वजह है कि भारत, 2021 के, वैश्विक भूख सूचकांक में 101वें स्थान पर पहुँच गया है।
रिपोर्ट एक और गैर जनपक्षीय सरकारी रुझान की तरफ ध्यान दिलाती है। पिछले तीन सालों से सरकार द्वारा जारी किये गए गैर बराबरी सम्बन्धी आंकड़ों की गुणवत्ता में भी गिरावट आई है। रिपोर्ट कहती है ‘जिसके चलते हालिया समय में गैर बराबरी में हुए परिवर्तनों का आकलन विशेष रूप से कठिन हो जाता है।” लगता है बढ़ती गैरबराबरी पर चर्चा को बाधित करने की नीयत से भारत में शासक वर्गों की नई रणनीति गैर बराबरी सम्बन्धी सूचनाओं तक पहुंच को कम करने की बन रही है।
*World Inequality Report पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में विश्व असमानता लैब की एक रिपोर्ट है जो विश्व असमानता डेटाबेस द्वारा संकलित सबसे हालिया निष्कर्षों के आधार पर वैश्विक आय और धन असमानता का अनुमान प्रदान करती है। जो साथी World Inequality Report 2022 का पूरा मज़मून देखना चाहें वो निम्न लिंक देख सकते हैं :
(रवींद्र गोयल दिल्ली विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं। और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)