114 पेज के तालिबानी मैनिफेस्टो ने सार्वजनिक जीवन से गायब किया महिलाओं का वजूद 

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नई दिल्ली। छठी कक्षा के आगे किसी को शिक्षा नहीं मिलेगी। ज्यादातर काम की जगहों पर किसी के लिए रोजगार नहीं और पार्क हो या जिम या फिर सैलून सभी सार्वजनिक जगहें रहेंगी पहुंच से दूर। बगैर किसी पुरुष संबंधी को साथ लिए लंबी दूरी की यात्रा पर पाबंदी। 

अगर ऊपर से लेकर नीचे तक कपड़ों से नहीं ढंकी हैं तो कोई भी घर से बाहर नहीं निकलेगा। यह ताजा-ताजा सामने आया महिलाओं के लिए नया तालिबानी फरमान है, जिसे मैनिफेस्टो के रूप में अफगानिस्तान में जारी किया गया है। 114 पेज के इस मैनिफेस्टो में महिलाओं के लिए और भी बहुत सारी गाइडलाइन तय की गयी हैं।

और इसके साथ ही महिलाओं की बाहर की आवाज को बिल्कुल बंद कर दिया गया है। इस मैनिफेस्टो में महिलाओं से संबंधित सारे नियम और कानून दिए गए हैं। नया कानून महिलाओं की आवाज को छोड़कर इस बात को कारगर तरीके से सुनिश्चित करता है कि महिलाएं बगैर किसी पुरुष संबंधी के अपना घर नहीं छोड़ सकती हैं।

पिछले तीन सालों के अफगान शासन के दौरान बहुत सारी पाबंदियां पहले से ही लागू हैं और इस तरह से धीरे-धीरे अफगानी महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से बिल्कुल बाहर कर दिया गया है। लेकिन देश के पैमाने पर बहुत सारी महिलाओं को इस दस्तावेज का जारी होना, उनके सपनों और आकांक्षाओं के ताबूत पर आखिरी कील के तौर पर महसूस हो रहा है।

कुछ को यह उम्मीद थी कि सत्तारूढ़ जमात अभी भी कुछ कड़ी पाबंदियों को शायद उलट दे। क्योंकि तालिबान के अधिकारियों ने यह संकेत दिया था कि बंदी के बाद हाईस्कूल और विश्वविद्यालय महिलाओं के लिए फिर से खोले जा सकते हैं। बहुत सारी महिलाओं के लिए वह उम्मीद भी अब धराशायी हो गयी है।

1996 से 2001 के शासन का हवाला देते हुए उत्तरी अफगानिस्तान के बाघलान सूबे की एक महिला 23 वर्षीय मुसारत फारामर्ज ने कहा कि हम तालिबान के पहले शासन के दौर की ओर लौट रहे हैं, जब महिलाओं को घर से बाहर निकलने का अधिकार नहीं था। उन्होंने कहा कि मैं सोचती थी कि तालिबान बदल गया है लेकिन हमें पहले के अंधकार काल का फिर से आभास हो रहा है।

जब से अगस्त 2021 में फिर से तालिबान सत्ता में आया है, अधिकारियों ने व्यवस्थित तरीके से महिलाओं के अधिकारों को छीना है- खासकर जो कम रुढ़िवादी शहरी केंद्र हैं- जिसे उन्होंने 20 सालों के अमेरिकी कब्जे के दौरान हासिल किया था।

एक विशेषज्ञ ने कहा कि आज के समय में अफगानिस्तान महिलाओं के लिहाज से दुनिया का सबसे पाबंदी वाला देश हो गया है और अकेला देश है, जिन्होंने लड़कियों के लिए हाईस्कूल तक की शिक्षा पर पाबंदी लगा दी है।

नियमों के प्रकाशन ने लोगों के बीच उन अधिकारियों का भय पैदा कर दिया है, जिन्हें कथित रूप से नैतिक पुलिस के तौर पर जाना जाता है। ऐसे सरकारी अधिकारी गलियों के कोनों पर सफेद वस्त्र पहनकर इस बात को सुनिश्चित करने के लिए खड़े रहते हैं कि देश के नैतिक कानून की वह रक्षा कर सकें।

पहली बार मैनिफेस्टो चीजों को लागू करने की व्यवस्था को परिभाषित करता है। जिसका पुलिस अफसर इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे पहले वो लगातार समय-समय पर आदेश देते रहते थे। अब उन्हीं अफसरों को लोगों की संपत्ति को ध्वस्त करने या फिर उन्हें तीन दिनों तक हिरासत में लेने का अधिकार मिल गया है। अगर वो बार-बार नैतिक कानूनों का उल्लंघन करते हैं तो।

कानूनों की घोषणा से पहले उत्तरी अफगानिस्तान के बादखशन सूबे में रहने वाली 20 वर्षीय फ्रेश्टा नसीमी ने उम्मीद के एक टुकड़े को पकड़ रखा था, जो उन्हें मिल सकता था। 

एकबारगी उन्होंने उस अफवाह से भी उम्मीद बनाए रखा था, वह भी तब ध्वस्त हो गया जब देश के पूर्व में स्थित खोस्त सूबे में अधिकारियों ने इसी साल की शुरुआत में उन कार्यक्रमों को प्रतिबंधित कर दिया। इसने इस बात के संकेत भी दिए कि देश के दूसरे हिस्से भी इस तरह की पाबंदी को लागू कर सकते हैं।

अब नये कानून के लागू होने के बाद नसीमी कहती हैं कि वह घर में कैद हो गयी हैं। अब उनको इस बात की चिंता है कि कोई भी टैक्सी ड्राइवर उनसे इस डर से नहीं बोलेगा कि तालिबान द्वारा उसको फटकार लगायी जाएगी। उन्होंने कहा कि अब कोई दुकान वाला भी उनसे बातचीत स्वीकार नहीं करेगा। 

उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि उनकी इंजीनियर बनने की उम्मीद- थोड़ी आय और उससे आने वाली स्वतंत्रता- अब खत्म हो गयी है।

मेरा भविष्य अब बिल्कुल खत्म हो चुका है। घरेलू महिला के तौर पर रहने और बच्चे पालने के अलावा मेरा अब कोई भविष्य नहीं है।

विश्लेषक कहते हैं कि नैतिक कानून का प्रकाशन तालिबान नेता शेख हैबतुल्लाह अखुंदजदा द्वारा स्थापित शरिया कानून का अतिवादी विजन है और यह प्रत्येक मंत्रालय के कोडिफिकेशन के एक बृहत्तर सरकारी प्रयास का हिस्सा है।

जानकार कहते हैं कि दस्तावेज तालिबान के सत्ता में लौटने के पहले ही अफगानिस्तान में अमेरिका समर्थित सरकार के किसी भी पश्चिमी सिद्धांत को निकाले जाने के प्रयास का ही एक हिस्सा है।

 महिलाओं पर लगी पाबंदियों को कमजोर करने के लगातार पड़ रहे बाहरी दबावों को तालिबान ने पूरी ताकत से खारिज कर दिया है। यहां तक कि नीतियों ने भी अफगानिस्तान को पश्चिम से बिल्कुल अलग कर दिया है।

तालिबान अधिकारी कानूनों का बचाव करते हुए कहते हैं कि यह कानून इस्लामिक कानूनों की नींव है, जिसके जरिये देश को चलाया जा रहा है। एक बयान में सरकार के प्रवक्ता डैबुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि अफगानिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र है, और इस्लामिक कानून इसके समाज के भीतर अपने आप निहित हैं।

लेकिन यह नियम मानवाधिकार संगठनों और अफगानिस्तान स्थित यूनाइटेड नेशंस मिशन की ओर से आलोचना के निशाने पर है। मिशन के हेड रोजा ओटुंबायेवा ने इसे अफगानिस्तान के लिए एक बेहद पिछड़ा विजन करार दिया है। जो महिलाओं के अधिकारों के प्रति पहले से ही चली आ रही बर्दाश्त न की जाने वाली पाबंदियों को और विस्तारित करता है।

पिछले तीन सालों में बिलबोर्ड के विज्ञापनों से महिलाओं के चेहरों को हटा दिया गया है। स्कूल की दीवारों पर लगे मूरल्स को पेंट कर दिया गया है और शहर की गलियों में लगे पोस्टरों को फाड़ दिया गया है। 

यहां तक कि नया मैनिफेस्टो आने के पहले नैतिक पुलिस के जरिये धमकी का खतरा पहले से ही हवाओं में गूंजने लगा था, क्योंकि महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों से ज्यादा से ज्यादा बेदखल कर दिया गया था।

बाघलान की एक महिला पारामर्ज ने कहा कि मैं घर में एक कैदी की तरह रहती हूं। उन्होंने कहा कि मैं अपने घर से तीन महीने से नहीं निकली हूं।

अधिकारों का छान लिया जाना शायद लड़कियों के लिए सबसे ज्यादा कठिनाई का सबब बन गया है। खास कर उनके लिए जिन्हें अमेरिकी कब्जे के दौरान कुछ अवसर मिले हुए थे।

कुछ महिलाओं ने किसी भी कीमत पर अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने का दृढ़ निश्चय कर लिया है। और इसके लिए उन्हें एडहॉक रास्ता भी मिल गया है। लड़कियों के लिए भूमिगत स्कूल, अक्सर कम और एक दर्जन के आस-पास छात्राएं और एक ट्यूटर लोगों के निजी घरों से जुड़े होते हैं।

और यह पूरे देश के पैमाने पर फैल गया है। जबकि दूसरे आनलाइन कक्षाओं की ओर मुड़ गए हैं। जबकि इंटरनेट कट भी बाहर और भीतर होता रहता है।

तालिबान के सत्ता पर कब्जा करने के एक साल बाद 18 वर्षीय मोहादिसा हसानी ने एक बार फिर से अपनी पढ़ाई शुरू कर दी है। उसने अपने दो पूर्व सहपाठियों से बात की जो अमेरिका और कनाडा चले गए हैं। यह सुनकर कि वे लड़कियां अपने स्कूल में क्या पढ़ रही हैं, पहले तो उसको ईर्ष्या हुई लेकिन उसके बाद उसने उसमें एक अवसर देखा। 

उसने अपनी मित्रों से प्रत्येक सप्ताह एक घंटा उसे उन भौतिक शास्त्र और रसायन शास्त्र के पाठों को पढ़ाने के बारे में पूछा जिसे उनको स्कूल में पढ़ाया जा रहा है। वह सुबह छह बजे ही उठ जाती है। और बाहर रह रही मीना तथा मुर्सद द्वारा टेक्स्टबुक की भेजी गयी फोटो को देखने और उसे समझने में जुट जाती है।

हसानी ने कहा कि मेरी कुछ दोस्त पेंटिंग कर रही हैं। वो भूमिगत होकर ताइक्वांडो की कक्षा ले रही हैं। हमारा डिप्रेशन हमेशा बना रहता है। लेकिन हमें बहादुर बनना पड़ेगा।

उसने कहा कि मैं अफगानिस्तान से प्यार करती हूं, मैं अपने देश से प्यार करती हूं। मैं अपनी सरकार से प्यार नहीं करती हूं और लोग अपनी मान्यताओं को दूसरों पर थोप रहे हैं।

43 वर्षीय रहमानी जो बदले की आशंका से केवल अपने सरनेम से जाने जाने की इच्छुक हैं, ने कहा कि अवसाद को खत्म करने के लिए मैंने रोजाना रात में नींद की गोलियां लेनी शुरू कर दी हैं।    

विधवा रहमानी, तालिबान के सत्ता में आने से पहले 20 सालों तक, एक गैरलाभकारी समूह के लिए काम कीं। और उससे उनके चार बच्चों का खर्च चल जाता था। वह कहती हैं कि अब इस तरह के समूहों के साथ काम करने से मनाही के बाद वह न केवल उनके खर्चे उठा सकने अक्षम हो गई हैं, बल्कि उन्होंने अपना वजूद भी खो दिया है।

मैं उन दिनों को मिस करती हूं, जब मैं खुद को कुछ महसूस करती थी। जब मैं कुछ कमाकर जीवन चला सकती थी और अपने देश की सेवा करती थी। उन्होंने तो समाज से हमारी मौजूदगी को ही खत्म कर दिया है। 

(न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित।)

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