Sunday, April 28, 2024

2021 में 12-18 वर्ष के बीच की 55 हजार बच्चियां हुईं गायब

नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार हमारे देश में 2021 में 69 हजार 014 बच्चे गायब हुए या गायब कर दिए गए। इसमें 55 हजार 120 बच्चियां थीं। इसका मतलब हुआ गायब हुए कुल बच्चों में 80 प्रतिशत बच्चियां थीं। कल्पना करें कि आपका बच्चा या बच्ची गायब हो जाए या गायब कर दी जाए, तो आप पर क्या गुजरेगी। आपके लिए नार्मल जिंदगी जीना कितना मुश्किल हो जाएगा। इंसान अपने बच्चे की मौत को भी बर्दाश्त कर लेता है, क्योंकि उसकी मौत माता-पिता के सामने होती है। लेकिन जब बच्चा या बच्ची गायब हो जातें हैं, तो आजीवन उसकी दुखदाई याद को वो भूल नहीं पाते हैं।

सवाल सिर्फ उन माता-पिता का नहीं है, जिनके बच्चे या बच्चियां गायब होते हैं। उससे बड़ा सवाल उन बच्चे-बच्चियों का है जो गायब हो जाते हैं या गायब कर दिए जाते हैं। उनका आगे का जीवन कहां और कैसे और किन हालातों में बीतता है, इसके बारे में सिर्फ कल्पना की जा सकती है। ज्यादातर कल्पनाएं भयावह ही होंगी। रूह कंपा देने वाली। इस देश में हर साल औसतन 75 हजार बच्चे गायब होते हैं। यह उन बच्चों की सूची है जिनके गायब होने की सूचना दर्ज कराई जाती है। 

लड़कियों के मामले में जब माता-पिता या कोई अन्य गार्जियन गायब होने या गायब कर दिए जाने की एफआईआर दर्ज कराने पुलिस के पास जाता है, तो पुलिस की पहली प्रतिक्रिया होती है कि किसी लड़के के साथ भाग गई होगी। अक्सर पुलिस कोई त्वरित कार्रवाई नहीं करती। परिणाम की कल्पना आसानी से की जा सकती है। ऐसी बच्चियों को या तो सेक्स कारोबार के लिए बेंच दिया जाता है या उन्हें किसी की दुल्हन के रूप में बेंच दिया जाता है।

कई मामलों में उन्हें घरेलू नौकरानी बना दिया जाता है या लेबर के रूप में उनका इस्तेमाल किया जाता है। इस दौरान बच्चियों को मारा-पीटा जाता है। उनका यौन उत्पीड़न होता है। कई मामलों में बच्चियां कई बार खरीदी और बेंची जाती हैं और बार-बार बलात्कार का शिकार होती हैं।

देश के कई प्रदेशों और सामाजिक समूहों (जातियों) में लैंगिक अनुपात बहुत विषम है। उन्हें दुल्हन के रूप में ऐसी लड़कियों की जरूरत होती है, जिनकी कोई पहले से पहचान न हो। जैसे गुजरात के पटेलों में लैंगिक अनुपात बहुत ही विषम है। पिछले दिनों द हिंदू में यह विस्तृत रिपोर्ट आई थी कि कैसे गुजरात की दलित, आदिवासी और ओबीसी बच्चियों-लड़कियों की तस्करी होती है। उन्हें पटेल लड़कों की दुल्हन के लिए बेंच दिया जाता है। यही स्थिति हरियाणा के जाटों की है। लैंगिक अनुपात विषम होने के चलते उनके यहां विभिन्न प्रदेशों से लड़कियां दुल्हन के लिए खरीदी जाती हैं।

बहुत सारी लड़कियों को वेश्यालयों में बेंच दिया जाता है। 

गायब होने वाले ज्यादात्तर बच्चे और बच्चियां गरीब लोगों और सामाजिक तौर पर वंचित सामाजिक-धार्मिक समूहों के होते हैं। वैसे भी इनके बारे में भारतीय राज्य और समाज ज्यादा चिंतित नहीं होता है। कहने के लिए इन बच्चे-बच्चियों को बचाने के लिए बहुत सारी संस्थाएं और कानून बने हुए हैं। इनके नाम पर कई सारे एनजीओ खुल हुए हैं। इन बच्चे-बच्चियों को बचाने के नाम पर अच्छा-खासा पैसा कमाया जाता है। देश-दुनिया में नाम कमाया जाता है।

भारत में कुछ एक को इन बच्चों को बचाने के नाम नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है। लेकिन सारी कवायद ढांक के तीन पात साबित होती है। क्योंकि मामला गरीबों और वंचित समूहों की बच्चियों का है। जिनकी उपेक्षा भारतीय राज्य और समाज की जेहनियत में शामिल है।

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