सुप्रीमकोर्ट की डांट का असर, केंद्र ने सभी 5 ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरणों के अध्यक्षों की नियुक्ति को दी मंजूरी

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उच्चतम न्यायालय द्वारा एक दिन पहले ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरणों (डीआरएटी) में रिक्तियों को भरने के मामले में हीलाहवाली पर नाराजगी व्यक्त करने के बाद केंद्र सरकार ने ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण (डीआरएटी) में अध्यक्षों की नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने वित्तीय सेवा विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

डीआरएटी इलाहाबाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश दयाल खरे, डीआरएटी चेन्नई में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और डीआरएटी मुंबई के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति एस रवि कुमार, डीआरएटी दिल्ली में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बृजेश सेठी, डीआरएटी कोलकाता में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनिल कुमार श्रीवास्तव तथा डीआरएटी मुंबई में केरल उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अशोक मेनन के नामों को मंजूरी दी गयी है।

नियुक्ति चार वर्ष की अवधि के लिए या सदस्यों के सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, के लिए है। अध्यक्ष प्रति माह ₹2,50,000 के पारिश्रमिक के हकदार होंगे।

उच्चतम न्यायालय के अलावा, बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में डीआरएटी में रिक्तियों के कारण गैर-कार्यात्मक होने के कारण अपीलीय उपचार के बिना छोड़े गए वादियों की सहायता के लिए स्वत: प्रेरणा निर्देश पारित किया था। कोर्ट ने रिक्तियों को भरने के लिए एक रोड मैप मांगा था और जब वह जमा नहीं किया गया था, तो वित्त मंत्रालय (एमओएफ) के सचिव को नियुक्तियों की स्थिति के बारे में अवगत कराने के लिए बुलाने की चेतावनी भी दी थी।

इसके पहले बुधवार 16 फ़रवरी, 21 को ट्रिब्यूनलों में रिक्त पदों को भरने में ढिलाई बरत रहे अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए उच्चतम न्यायालय ने कहा था। न्यायालय ने कहा था कि नौकरशाही इस मामले को हल्के में ले रही और खाली पदों को भरने के लिए कुछ नहीं कर रही। उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ट्रिब्यूनलों में बड़ी संख्या में खाली पड़े पदों को लेकर कई बार चिंता जता चुकी है। पीठ ने कहा, कई बार चिंता जताने पर ट्रिब्यूनलों में कुछ पद तो भरे गए लेकिन उससे कुछ खास नहीं हुआ, हालात कमोबेश पहले जैसे ही हैं।

पीठ ने कहा था कि हमें नेशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए कई याचिकाएं मिली हैं। उनमें कुछ नियुक्तियां तो हुईं लेकिन स्थिति में बदलाव जैसा कुछ नहीं हुआ। हम खाली पड़े सदस्यों के पदों के बारे में कुछ नहीं जानते, जबकि कार्यरत सदस्य भी अवकाश प्राप्त करते जा रहे हैं। मामले की सुनवाई कर रही पीठ में भी हैं। मामले में पीठ का सहयोग कर रहे अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान विभिन्न ट्रिब्यूनलों में रिक्त पदों की संख्या और उनके लिए हाल ही में की गई नियुक्तियों की जानकारी दी। लेकिन इससे पीठ संतुष्ट नहीं हुई।

पीठ ने कहा है कि दो सप्ताह बाद वह मामले की पुन: सुनवाई करेगी। इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से ट्रिब्यूनलों के खाली पड़े पदों को शीघ्र भरने के लिए कहा था। कहा था कि इससे उनकी कार्यप्रणाली पर गंभीर असर पड़ रहा है। इसका असर लंबित मामलों की संख्या पर पड़ रहा है। इससे अंतत: देश के नागरिक प्रभावित हो रहे हैं।

पिछले साल अगस्त में एक सुनवाई के दौरान उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, देश भर के विभिन्न प्रमुख न्यायाधिकरणों और अपीलीय न्यायाधिकरणों में लगभग 250 पद खाली हैं। केंद्र ने सितंबर 2021 में दायर अपने हलफनामे में कहा था कि उसने आईटीएटी और एनसीएलटी सहित छह न्यायाधिकरणों में 84 नियुक्तियां की हैं और फिलहाल उनके पास सर्च कम सेलेक्शन कमेटी (एससीएससी) की कोई सिफारिश लंबित नहीं है।

इसके पहले दिसम्बर 21 में उच्चतम न्यायालय कई राज्यों में ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) और ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण (डीआरएटी) के रिक्तियों के कारण संचालन में कमी को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट से एक अंतरिम उपाय के रूप में रिट क्षेत्राधिकार के तहत सरफेसी के तहत दायर किए गए आवेदनों पर विचार करने का अनुरोध किया था। चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा था कि इस समस्या को हल करने के लिए फिलहाल हम हाईकोर्ट से डीआरटी व डीआरएटी के समक्ष दायर किए जाने वाले आवेदनों पर विचार करने का अनुरोध करते हैं। पीठ ने साथ ही यह भी कहा कि एक बार न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) संचालन की आने में स्थिति में हाईकोर्ट से सभी मामले उनके पास वापस आ जाएंगे। पीठ ने केंद्र सरकार से इस बीच नियुक्ति प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए भी कहा था।

उच्चतम न्यायालय ने एक राज्य के डीआरटी के अधिकार क्षेत्र को दूसरे राज्य के डीआरटी को सौंपे जाने के कारण उत्पन्न कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए यह आदेश पारित किया था। मध्य प्रदेश की बार काउंसिल ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए कहा था कि डीआरटी जबलपुर के अधिकार क्षेत्र को डीआरटी लखनऊ (यूपी) में स्थानांतरित करने से वादियों और वकीलों को भारी कठिनाई हो रही है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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