Wednesday, April 24, 2024

13 करोड़ परिवारों को भूख, कुपोषण एवं अकाल से बचाने के लिए चिदंबरम का सुझाव

लॉक डाउन के चलते पैदा हुए आर्थिक हालात के चलते पहले से ही गरीबी रेखा के नीचे या कगार पर खड़े भारत के 13 करोड़ परिवार भूख, कुपोषण और अब अकाल की स्थिति की तरफ बढ़ रहे हैं। यदि प्रति परिवार औसत संख्या 4 मानी जाए तो भी ऐसे लोगों की कुल संख्या 52 करोड़ होती है।

पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम का कहना है कि राष्ट्रीय लॉक डाउन के चलते इन 13 करोड़ परिवारों को गरीबी एवं भुखमरी का शिकार होने से कोई रोक नहीं सकता है, यदि समय रहते आवश्यक कदम नहीं उठाए गए। 

चिदंबरम की इस बात का समर्थन अलग-अलग शब्दों में भारत के नामी-गिरामी अर्थशास्त्रियों ने भी की है। इन अर्थशास्त्रियों में नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी एवं अमर्त्य सेन और भारत सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन, शंकर आचार्य, कौशिक बसु, ज्यां द्रेज़ आदि शामिल हैं।

चिदंबरम का आकलन है कि इन परिवारों के पास न तो पोषण के लिए आवश्यक खाद्यान्न है और न ही उनके पास पैसे हैं। ऐसी स्थिति में इन 13 करोड़ परिवारों को अकाल की स्थिति से बचाने के लिए चिदंबरम ने सरकार को दो कदम उठाने की सलाह दी है- पहला सभी परिवारों को अनिवार्य तौर पर फ्री ( निशुल्क) राशन मुहैया कराया जाए। दूसरा पोषण की अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रति परिवार 5 हजार रुपये की आर्थिक सहायता मुहैया कराई जाए।

चिदंबरम का यह भी कहना है कि भारत सरकार 13 करोड़ परिवारों को भूख, कुपोषण और संभावित अकाल से बचाने के लिए यह दोनों कदम उठाने में पूरी तरह सक्षम है।

उन्होंने खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 524.5 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न उपलब्ध है, जिसमें 289.5 लाख मीट्रिक टन चावल और 235 लाख मीट्रिक टन गेहूं है। इसके अलावा 287 लाख मीट्रिक टन धान उपलब्ध है।  

यह इतना अधिक है कि इसका बहुत थोड़ा हिस्सा निकालकर 13 करोड़ परिवारों की जरूरत बहुत आसानी से पूरी की जा सकती है। चिदंबरम ने यह भी याद दिलाया कि यह सारा खाद्यान्न खेतिहर मजदूरों एवं किसानों की मेहनत से उपजाया गया है और जनता द्वार दिए जाने वाले कर से इसे किसानों से खरीदा गया है और उसका रख-रखाव हो रहा है। चिदंबरम की बात का निहितार्थ यह है कि जिनके खून-पसीने की कमाई का यह खाद्यान्न है, उन्हें ही भूख, कुपोषण और अकाल से बचाने के लिए इसकी आज जरूरत है और उनकी जरूरत पूरी करके अकाल के कगार पर खड़े इन लोगों को बचाया जाना चाहिए।

चिदंबरम ने गणना करके यह भी बताया कि यदि इन 13 करोड़ परिवारों को 5 हजार दिया जाता है, तो कुल खर्च 65,000 करोड़ रूपया आएगा। 

चिदंबरम ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि 13 करोड़ परिवारों यानि करीब 52 करोड़ लोगों को सरकार, स्वयं सेवी संस्थाओं, सामाजिक-धार्मिक संस्थाओं और व्यक्तियों द्वारा बने-बनाए भोजन का इंतजाम करके नहीं बचाया जा सकता है। इसके निम्न कारण हैं-

पहला तो 50 करोड़ से अधिक लोगों को दो जून का पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराना किसी भी शासन-प्रशासन या अन्य संस्थाओं-व्यक्तियों के लिए संभव नहीं है।

दूसरी बात यह कि इन परिवारों के सभी लोग पंक्ति लगाकर दोनों जून खाना खाने नहीं जा सकते हैं, क्योंकि परिवार में बच्चे, बूढ़े और बीमार लोग भी होते हैं। इसके अलावा सभी महिलाओं के लिए भी लाइन में खड़े होकर प्रतिदिन दोनों टाइम भोजन करना किसी भी सूरत में संभव नहीं है।

सिर्फ एक मात्र रास्ता यह है कि उनके घरों में पर्याप्त राशन हो और अन्य चीजें खरीदने के लिए नकदी हो। अन्न के अलावा एक परिवार को पोषण के लिए ईंधन, नमक, चीनी, तेल, मसाला, चाय पत्ती आदि की भी जरूरत होती है, जिसके लिए नकदी चाहिए।

13 करोड़ परिवारों यानि 52 करोड़ लोगों को भूख, कुपोषण एवं अकाल से बचाने के लिए चिदंबरम ने जो दो सुझाव दिए हैं, वे आसानी से पूरे किए जा सकते हैं। हमारा खाद्यान्न भंडार भरा है और 65,000 करोड़ भारत सरकार के कुल खर्च में उतना ही स्थान रखता है, जितना दाल में नमक। यह केंद्र सरकार के 2019-20 के बजट का सिर्फ 2.3 प्रतिशत है। केंद्र सरकार का 2019-20 का कुल बजट 27 लाख 87 हजार 349 करोड़ रुपये का है। 

क्या भारत के करीब 52 करोड़ लोगों को लॉक डाउन के चलते भूख, कुपोषण और अकाल से बचाने के लिए बजट का 2.3 प्रतिशत खर्च नहीं किया जा सकता और खाद्यान्न भंडारों में भरे खाद्यान्न का एक छोटा हिस्सा दिया नहीं जा सकता। जबकि ये दोनों चीजें उन्हीं लोगों की गाढ़ी कमाई का है, जिन्हें आज सबसे अधिक जरूरत है।

यहां यह तथ्य एक बार फिर याद कर लेना जरूरी है कि यह वही नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार है, जिसने कार्पोरेट घरानों को टैक्स के रूप में 1 लाख 50 हजार करोड़ रुपये और मध्यवर्ग को आयकर के रूप में 40 हजार करोड़ रुपये का छूट बजट में दे  चुकी है।

(इस लेख का स्रोत पी चिदंबरम का इंडियन एक्सप्रेस में आज प्रकाशित स्तंभ लेख है। इसके अनुवादक और प्रस्तुतकर्ता जनचौक के सलाहकार संपादक डॉ. सिद्धार्थ हैं।)

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