Sunday, April 28, 2024

कुकी संगठनों की मांग-घाटी में भी लागू हो AFSPA, सिर्फ पहाड़ी क्षेत्रों में लागू करना ‘एकतरफा’ निर्णय 

नई दिल्ली। मणिपुर अशांत है। राज्य में हिंसक घटनाओं में कमी नहीं आ रही है। दो जातियों के बीच चल रहा संघर्ष किस मोड़ पर रूकेगा कोई नहीं जानता है? लेकिन कुकी समुदाय के लोग अब इस लड़ाई का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं। लेकिन अपने गांव-शहर से पलायन करने के बादजूद हिंसा रोकने या उससे दूर रहने की उनकी कोशिश नाकाम होने लगी है। इसलिए मणिपुर में कुकी समुदाय के नागरिक संगठनों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मांग की है कि राज्य के बाकी छह जिलों में भी सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (ऑफ्स्पा-AFSPA) को लागू किया जाए।

AFSPA अधिनियम देश के किसी अशांत और अराजकता वाले स्थानों पर काबू पाने के लिए लागू किया जाता है। यह कानून सशस्त्र बलों को असीमित शक्ति प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत अराजकता वाले स्थान पर कानून का उल्लंघन होने से रोकना, शांति स्थापित करना, ज़रूरत पड़ने पर बिना किसी वारंट के किसी भी जगह तलाशी/छापेमारी करना और कानून के खिलाफ काम करने वाले किसी व्यक्ति को मारने तक की शक्ति प्रदान करता है।  

मणिपुर में AFSPA को 1 अप्रैल से आने वाले छह महीनों तक के लिए बढ़ा दिया गया था। घाटी के छह जिले पूर्वी इंफाल, पश्चिमी इंफाल, थौबल, बिष्णुपुर, काकचिंग और जिरीबाम, जिसमें 19 पुलिस स्टेशन मौजूद हैं और मैतेई बहुल क्षेत्र हैं, को छोड़कर बचे हुए 10 जिले जो कि पहाड़ी क्षेत्र हैं और ज्यादातर लोग कुकी और नागा समुदाय के हैं बिना किसी सोच-विचार के वहां पर AFSPA को लागू कर दिया गया है। सितंबर में AFSPA को लेकर विचार किया जाना है।

कांगपोकपी जिले के कुकी समुदाय का एक नागरिक समाज संगठन, आदिवासी एकता समिति (सीओटीयू) का मानना ​​है कि जिस तरह से पहाड़ी जिलों में AFSPA को लागू किया गया है, लेकिन घाटी के छह जिलों में नहीं किया गया है ये एकतरफा निर्णय है। छह घाटी जिलों में भी AFSPA को लागू करना “अत्यंत आवश्यक हो गया है” ताकि अर्धसैनिक बलों और सेना सहित कानून-प्रवर्तन एजेंसियां, “हिंसा को और बढ़ने से रोक सकें” और “राज्य में निरस्त्रीकरण” कर सकें। 3 मई को शुरु हुई हिंसा के बाद मणिपुर के कई पुलिस स्टेशनों से बंदूकों और गोलियों को लूटा गया था, और लूटे हुए हथियार अभी तक पूर्णरूप से बरामद नहीं हुए हैं।

9 अगस्त को सदन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भाषण देते हुए कहा था कि “मणिपुर में उपद्रव का सबसे बड़ा वजह म्यांमार से आए कुकी समुदाय के लोग हैं।” इस भाषण के विरोध में शनिवार को सीओटीयू ने रैली निकाली थी और इसके बाद प्रधानमंत्री को 3 पन्नों का ज्ञापन सौंपा भेजा था जिसमें AFSPA को फिर से लागू करने की मांग को रखा गया था।

सीओटीयू का ये पत्र 18 अगस्त को लोगों के बीच आया था, जिस दिन नागा बहुल क्षेत्र के थोवई कुकी गांव में तीन कुकी लोगों को जान से मार दिया गया था और राज्य में ये घटना करीब 13 दिनों के शांति के बाद घटित हुआ था। 3 मई से शुरू हुई हिंसा अभी तक जारी है और अब तक मरने वालों की संख्या बढ़कर 168 पहुंच गई है।

पुलिस ने बताया कि शुक्रवार को करीब सुबह साढ़े चार बजे “हथियारबंद बदमाशों के बीच हुए गोलीबारी” में तीन व्यक्तिओं की मौत हुई है। ये तीनों रात में गांव की पहरेदारी कर रहे थे और ये तीनों गांव की सुरक्षा टीम के थे। पूर्वोत्तर का एक प्रमुख अलगाववादी समूह, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम (आई-एम) ने शनिवार को ये दावा किया है कि दो उग्रवादी संगठनों “कांगलेई यावोल कन्ना लूप और मणिपुर नागा रिवोल्यूशनरी फ्रंट के लोगों ने” संयुक्त रूप से कथित तौर पर तीनों को मार डाला।

सीओटीयू ने अपने ज्ञापन में AFSPA फिर से लागू करने के लिए कुछ कारणों को भी उजागर किया है। कारण इस तरह से है “ पुलिस स्टेशन से और पुलिस ट्रैनिंग कैंप से लूटे गए 6,000 ऑटोमैटिक हथियारों की बरामदगी और म्यांमार से राज्य के घाटी में घुसपैठ करने वाले अलगाववादी आतंकवादी समूहों का हवाला दिया गया है।” लूटे गए सरकारी हथियारों को बरामद करना बेहद जरुरी है वर्ना इस तरह की हत्याएं होती रहेंगी और लोग बस देखते रहेंगे।

ज्ञापन में कहा गया है कि “पुलिस बल अभी तक केवल 1,000 हथियार ही बरामद कर सकी और ये संख्या लूटे गए हथियारों की करीब 10 प्रतिशत है, जबकि 90 प्रतिशत हथियार अभी भी कट्टरपंथी समूहों के हाथों में हैं जो कि एक चिंता का विषय है। इसके अलावा राज्य में फैले जातीय हिंसा के दौरान म्यांमार के अलगाववादी समूहों ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की है।

जिन छह घाटी जिलों को AFSPA से बाहर रखा गया था, उन जगहों के अंतर्गत आने वाले 19 पुलिस स्टेशन से ही हथियारों को लूटा गया था। सबसे अधिक पश्चिमी इम्फाल के 9 पुलिस स्टेशन से, इसके बाद पूर्वी इम्फाल के 4 पुलिस स्टेशन से, बिष्णुपुर के 3 पुलिस स्टेशन से और थौबल, काकचिंग और जिरीबाम में एक-एक पुलिस स्टेशन से हथियारों की लूट हुई थी।

वर्तमान में राज्य के 97 में से 78 पुलिस स्टेशनों में AFSPA लागू है। सीओटीयू के प्रतिनिधि ने बताया कि घाटी क्षेत्रों में AFSPA ना होने के वजह से केंद्रीय सुरक्षा बलों के लिए तलाशी कर पाना मुश्किल हो रहा है। क्योंकि वो जब भी तलाशी के लिए जाते हैं तो उन्हें औरतें के भीड़ का सामना करना पड़ता है और इनसे निपटना सुरक्षा बलों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है।

7 जून को राज्य के गृह विभाग ने उपायुक्तों को यह आदेश दिया था कि जहां AFSPA लागू नहीं है वे कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को उन क्षेत्रों में अपने अभियानों के दौरान केंद्रीय बलों के साथ जाने के लिए कहें।

यह फैसला अनिवार्य कानून को बनाए रखने के लिए सेना के अनुरोध के बाद लिया गया था। AFSPA क्षेत्रों में कार्यकारी मजिस्ट्रेटों की आवश्यकता नहीं है। पूर्वोत्तर में काम करने वाले अधिकांश संगठन एएफएसपीए अधिनियम को अशांत क्षेत्रों में काम करने वाले सुरक्षा कर्मियों को प्रदान की गई व्यापक शक्तियों के लिए गलत मानते हैं।

सीओटीयू ने रविवार को पहाड़ी जिलों में माल की सुचारू आवाजाही सुनिश्चित करने में केंद्र सरकार की “विफलता” के विरोध में आधी रात से कांगपोकपी से गुजरने वाले एनएच 2 और एनएच 37 की नाकाबंदी को फिर से लागू करने का फैसला कर लिया है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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